आइये जानते हैं निजीकरण बनाम सार्वजनिक संस्थानों के मायने

यदि निजीकरण अच्छा होता तो सरकारी बैंकों से ज्यादा भीड़ प्राइवेट बैंको में होती, यदि वास्तव में निजीकरण अच्छा होता तो रोडवेज बस की तुलना में ज्यादा लोग प्राइवेट बस में चलना पसन्द करते.

यदि निजीकरण अच्छा होता तो सरकारी अस्पताल से ज्यादा भीड़ प्राइवेट अस्पताल में होती, यदि निजीकरण अच्छा होता तो लाखों स्टूडेंट्स #NEET #IITJEE की तैयारी न करते सीधे प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेते.

यदि निजीकरण अच्छा होता तो लोग #GOVT जॉब छोड़कर प्राइवेट जॉब करते, यदि निजीकरण अच्छा होता तो जवाहर नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालयों का रिजल्ट प्राइवेट स्कूलों से अच्छा नहीं होता.

निजीकरण के बाद:

क्या प्राइवेट कंपनी अपने किसी कर्मचारी को महंगाई बढ़ने के साथ-साथ सैलरी बढ़ाएगी? क्या कोई प्राइवेट कंपनी वेतन सहित मेडिकल लीव देगी?

क्या कोई प्राइवेट कंपनी हर साल वेतन वृद्धि करेगी? क्या कोई प्राइवेट कंपनी अपने कर्मचारियों को आपदा के समय वेतन देगी? क्या कोई प्राइवेट कंपनी अपने मृतक कर्मचारी के आश्रित को जॉब पर रखेगी?

क्या कोई प्राइवेट कंपनी घाटे में जाने पर अपना व्यवसाय जारी रखेगी? ये निजीकरण नहीं देश को गुलामी की ओर धकेलना है.

आज बड़े-बड़े भारतीय पूंजीपति देश के संसाधन खरीद सकते हैं लेकिन यदि ये संसाधन और घाटे में गए तो विदेशियों को बेच देंगे यही अंतिम सत्य है.

अतः भविष्य की आने वाली चुनौतियों का अनुमान करके निजीकरण का विरोध करो तथा भारत को गुलाम होने से बचाओ, ऐसी मेरी जागरूक नागरिक तौर पर अपील है.

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