मूल रूप से दरभंगा की रहने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में खुद को घोषित मुख्यमंत्री कहा था. उन्होंने पटना के बांकीपुर और मधुबनी की बिस्फी सीट से चुनाव लड़ा किंतु दुर्भाग्य यह है कि यह दोनों ही सीट से अपनी जमानत राशि भी नहीं बचा पायीं.
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बहुत पीड़ा पहुंची है जिसको उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए शेयर किया है. पुष्पम ने लिखा है कि- “आज सुबह हो गई लेकिन बिहार में सुबह नहीं हुई है.”
मैं बिहार वापस एक उम्मीद के साथ आई थी की अपने बिहार और अपने बिहार वासियों की जिंदगी को अपने नॉलेज, हिम्मत, इमानदारी और समर्पण के बल पर बदलूंगी.
अपनी और पार्टी की हार से दुखी पुष्पम प्रिया चौधरी ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है।https://t.co/bBTpGcj5xi#PushpamPriyaChoudhary #pushpampriya #pushpampriyachaudhary #BiharElectionResults2020
— Oneindia Hindi (@oneindiaHindi) November 11, 2020
मैंने बहुत ही कम उम्र में अपना सब कुछ छोड़ कर यह पथरीला रास्ता चुना क्योंकि मेरा एक सपना था बिहार को पिछड़ेपन और गरीबी से बाहर निकालने का.
वास्तव में बिहार के लोगों को एक ऐसी इज्जत भरी जिंदगी देना मेरे जिंदगी का मकसद था जिसके वास्तव में वह हकदार हैं. बिहार के गरीब बच्चों को वैसे स्कूल और विश्वविद्यालय देना जिनमें मैंने पढ़ाई की है.
गांधी, सुभाष चंद्र बोस, अंबेडकर नेहरू, पटेल, मजहर-उल-हक, जेपी-लोहिया जैसे नेताओं ने पढ़ाई किया था. किंतु आज वह सपना टूट गया, 2020 के बदलाव की क्रांति विफल हो गई है.
आपको यहां बताते चलें कि पुष्पम प्रिया लंदन के मशहूर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर की डिग्री ली है और वह मार्च से ही बिहार में चुनाव को लेकर काफी सक्रिय रहीं.
बिहार में बदलाव को लेकर जो मेरे अंदर बेचैनी थी वह कुछ हद तक बिहार के लाखों लोगों में भी देखने को मिली. मेरे साथियों ने लोगों से मिलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा किंतु हम हार गए.
मीडिया मेरे कपड़ों और मेरी अंग्रेजी से ज्यादा नहीं सोच पाई बाकी पार्टियों के लिए मैं चीयरलीडर्स ही बनी रही और लोग नीतीश, लालू और मोदी से आगे नहीं बढ़ पाए.
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आपकी आवाज तो मैं बन गई लेकिन आप मेरी आवाज नहीं बन पाया शायद आपको मेरे आवाज की जरूरत नहीं थी. आज अंधेरा बरकरार है और 5 साल और क्या पता शायद 30 साल या आपकी पूरी जिंदगी तक यही अंधेरा रहेगा.
आप मुझसे बेहतर जानते हैं, आज जब अपनी मक्कारी से इन्होंने हमें हरा दिया है मेरे पास दो ही रास्ते हैं या तो मैं उससे लड़ूँ किंतु अब लड़ने के लिए कुछ नहीं बचा है ना ही पैसा और ना ही आप पर विश्वास.
दूसरा बिहार को इस कीचड़ में छोड़ दूँ हालाँकि दोनों ही निर्णय लेना थोड़ा मुश्किल है. फिर मेरा भरोसा लाखों कार्य कर्ताओं और समर्थकों के साथ है.
फिलहाल आप अंधेरे में अंधेरे का जश्न मनाए और चौपट राजाओं के लिए ताली बजाएं…..