भाजपा के विरुद्ध धर्म-निरपेक्षता की राज-नीति से नहीं लड़ा जा सकता: कँवल भारती (भाग-2)

भाजपा ने अपनी राजनीति को नया तेवर या नई धार पिछली सदी के अंतिम दशक में दी, जब उसने 1990 में सामाजिक न्याय की राजनीति के विरोध में राम-मंदिर की राजनीति आरम्भ की.

विडम्बना देखिए कि भाजपा के इस राजनीतिक आन्दोलन में आरएसएस ने पिछड़ी जातियों के ही नेताओं और नौजवानों को झोंका जिनके आर्थिक उत्थान के लिए सामाजिक न्याय का आन्दोलन शुरू हुआ था.

Breaking: All Accused Acquitted In Babri Masjid Demolition Case; Act Not Pre-Planned, Says Court

कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमा भारती सामाजिक न्याय के विरुद्ध प्रमुख चेहरा बनकर उभरे. सवर्णों के नेतृत्व में पिछड़ी जातियों के नौजवान सड़कों पर तोड़फोड़ कर रहे थे और स्कूल-कालेजों और छात्रावासों में दलित छात्रों को बेरहमी से मार रहे थे.

इसी हिन्दू उन्माद ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाई, जिसके कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट पर प्रतिबंध लगा और विद्यार्थी परिषद को खुली छूट देकर आक्रामक बनाया गया.

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1992 में 6 दिसंबर को संविधान-शिल्पी डा. आंबेडकर के निधन के दिन, संविधान को ठेंगा दिखाकर आरएसएस और भाजपा ने अपनी भेजी हुई उस भीड़ से जिसमें बहुसंख्या पिछड़ी जातियों के नौजवानों की थी, बाबरी मस्जिद गिरवा दी.

तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी पर कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाया. इस मुद्दे पर वह भाजपा को घेर भी नहीं सकती थी क्योंकि वह तो उसका ही मुद्दा था.

One in every four in rural India unemployed, urban joblessness at 1-month low

मंदिर आन्दोलन के दौरान आरएसएस ने अपनी तमाम तिकड़मी हथकंडों में पिछड़ी जातियों को शामिल किया. दस सालों के अंदर आरएसएस ने दलित-पिछड़ी जातियों के दिमागों में मुस्लिम-विरोध पर खड़ा हिंदुत्व ऐसा रचा-बसा दिया कि उसे अब कोई साबुन साफ़ नहीं कर सकता.

अब प्रश्न है कि भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कैसे किया? कांग्रेस, भाजपा की परम सहायक पार्टी थी, आज़ादी के बाद से ही वह धर्मनिरपेक्ष पार्टी बनकर रही और ब्राह्मणवाद का विस्तार करने में भी सबसे ज्यादा काम उसी ने किया.

हिंदुत्व की जो फसल आज लहलहा रही है, उसकी जमीन कांग्रेस ने ही तैयार की. तब भाजपा ने कांग्रेस का विरोध किस आधार पर किया? इसी को समझना होगा.

कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की रणनीति आरएसएस ने तैयार की थी. उसने कांग्रेस-विरोध का मुद्दा भ्रष्टाचार को बनाया. उसके लिए उसने दिल्ली में आन्दोलन के लिए अन्ना हजारे को तैयार किया.

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रातोंरात ऐसा जादू हुआ कि देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली पहुँचने लगे. रामलीला मैदान खचाखच भर गया. कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार की रणनीति कामयाब हो गई. आरएसएस जनता का जैसा मानस बनाना चाहता था, वैसा ही बन गया.

भ्रष्टाचार ने कांग्रेस को अर्श से फर्श पर लाकर पटक दिया. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से सब कुछ सुरक्षित रहता है—ब्राह्मणवाद भी, और वर्णव्यवस्था भी. भाजपा की विजय हुई. भाजपा उसी एजेंडे को लेकर सत्ता में आ गई, जो कांग्रेस का ‘गुप्त’ एजेंडा था.

सत्ता में आने के बाद भाजपा ने भ्रष्टाचार का राग बंद कर दिया और आक्रामक हिंदुत्व को अपना एजेंडा बना लिया. जब ब्राह्मणों और सवर्णों की अपनी पार्टी सत्ता में आ गयी, तो कांग्रेस के ब्राह्मण-सवर्ण भी भाजपा में शामिल हो गए.

अब भाजपा की राजनीति में हिन्दूवाद मुख्य है, यही राष्ट्रवाद है, और यही देश-भक्ति है. इसलिए भाजपा की सरकार में हिंदुत्व का विरोध राष्ट्र और देश का विरोध है.

जो हिंदुत्व का विरोध करेगा, उसके खिलाफ आरएसएस के लोग कहीं भी राष्ट्र-द्रोह का मुकदमा लिखवा सकते हैं. जनता के बीच एक सीमा-रेखा खींच दी गयी है—जो भाजपा के साथ नहीं है, वह राष्ट्र के साथ नहीं है.

अमेरिका में ट्रम्प के नियंत्रण में बहुत सी चीजें नहीं थीं. पर भारत में सब भाजपा के नियंत्रण में है—सेना, पुलिस, चुनाव आयोग और न्यायपालिका तक. इसलिए भारत में उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, जो अमेरिका में हो गया.

यहाँ यह लम्बी भूमिका लिखने का मतलब यह है कि धर्मनिरपेक्षता की राजनीति से भाजपा से नहीं लड़ा जा सकता. क्योंकि आरएसएस और भाजपा ने बहुत चालाकी से हिंदुओं के दिमाग में यह डाल दिया है कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति का मतलब हिन्दूवाद का विरोध या मुसलमानों का समर्थन करना है.

जैसे ही आप एनआरसी का विरोध करेंगे, दिल्ली दंगों में सरकार की भूमिका पर सवाल उठाएंगे, आपके खिलाफ आरएसएस के अराजक तत्वों की बयानबाजी शुरू हो जायेगी और आपको देशद्रोही करार दे दिया जायेगा.

ऐसे लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्षतावादी लोगों के लिए, उन्होंने ‘अर्बन नक्सल’ का खतरनाक शब्द गढ़कर रखा हुआ है. आप हैरान हो सकते हैं यह जानकार कि फेसबुक पर भाजपा-विरोधी एक पोस्ट पर महादलित संगठन का एक नेता मुझे ‘अर्बन नक्सल’ लिख चुका है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरएसएस और भाजपा ने दलित-पिछड़े लोगों के दिमागों को किस कदर हिंदुत्व से भर दिया है कि उनकी समझ में कुछ नहीं आने वाला है.

बिहार में तेजस्वी यादव ने एक राह दिखाई है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने जिस तरह बिना हिंदुत्व का विरोध किए केवल रोजगार के मुद्दे पर नितीश कुमार और भाजपा को घेरा, उससे काफी हद तक जनता का ध्रुवीकरण किया.

हमें यह समझना होगा कि जाति और धर्म दो ऐसे संवेदनशील मुद्दे हैं जिनसे लोगों की भावनाएं जल्दी आहत हो जाती हैं, भले ही वे उनकी बर्बादी का कारण भी हों.

हमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, अधिनायकवाद, आर्थिक सवालों जैसे-निजीकरण तथा वित्तीय पूंजी का विस्तार आदि पर ही आरएसएस और भाजपा को घेरना होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तेजस्वी के रोजगार के मुद्दे ने ही विचलित किया, जो उन्होंने तेजस्वी को ‘जंगलराज के युवराज’ की बहुत ही घटिया उपाधि दी. मोदी इसके सिवा कुछ कह भी नहीं सकते थे.

आरएसएस और भाजपा की कमजोर नस रोजगार और आर्थिक मुद्दे हैं. पर इन मुद्दों पर दलित-पिछड़ों को कैसे लाया जायेगा, यही वह प्रश्न है, जिस पर हम सबको विचार करना होगा.

(Remaining…. part 2)

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