29 श्रम कानूनों को ख़त्म कर जो नए चार लेबर कोड या श्रम संहिताएं बनाई गई हैं, उसके तहत भारत में
1- बाल श्रम कानूनी हो गया है
2- ठेकेदारी प्रथा अब ग़ैरकानूनी नहीं रहा
3- बोनस एक्ट खत्म होने के साथ ही मालिकों की मज़बूरी भी ख़त्म हो गई है
4- सबसे अहम कि आठ घंटे के काम के अधिकार को ख़त्म कर मालिकों को ओवर टाइम लगाने की अनिवार्यता की इजाज़त दे दी गई है
5- अब महिलाएं रात्री पाली में असुरक्षित स्थिति में काम करेंगे
6- 05 प्रवासी मजदूर कहीं एक राज्य से दूसरे राज्य में रोजगार के लिए जाएंगे तो, उनका पंजीकरण आवश्यक नहीं
7- फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को बढ़ावा के चलते, नौकरी हुआ असुरक्षित
8- एक टर्म पूरी होने पर मालिक चाहेगा तो रखेगा, अन्यथा नहीं
9- निजी कंपनी मालिक अपने लोगों को लगाकर यूनियन चलाएगा एबं कामगारों का शोषण करने के लिए रास्ता हुआ उन्मुक्त
10- जहाँ 100 था अब हुआ 300, जहाँ 300 से कम लोग काम करेंगे वहाँ प्रबंधन कभी भी सरकार को बिना बताए लोगों का छटनी कर सकती है, रास्ता हुआ साफ
11- श्रम संघों को मजदूरों के हित के लिए हड़ताल करना नहीं रहा आसान, भले ही लोग अधिकार से बंचित रहे या मर भी जाए
12- किसी भी समय किसी की भी नौकरी जा सकती है, परफॉर्मेंस के आड़ में, नियम हुआ आसान
13- जहाँ 20 से कम लोग काम करेंगे, वहाँ बोनस डिमांड नहीं किया जा सकता है
14- जहाँ 300 से कम कामगार काम कर रहे हैं, वहाँ स्टैंडिंग ऑर्डर की आवश्यकता खत्म, अत्यंत खतरनाक है
15- सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग को छोड़कर एव कुछ गिने चुने निजी उद्योग को छोड़ देने के बाद बाकी 98% उद्योग/ कारखाने स्टैंडिंग ऑर्डर प्रतिबंध से मुक्त हो गए
16-बर्तमान में ESI, EPF जैसे 06 कल्याणकारी योजनाएं अच्छी तरह काम कर रहे, सरकार उस ब्यवस्था को कमजोर करने के लिए एबं EPF अर्थ को समाप्त करने के लिए कई आम (स्कीम) योजना को सम्मिलित करना, मजदूरों के लिए घातक सिद्ध होगा
17- इजी ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर, (easy of doing business) इजी ऑफ एम्प्लाइज किलिंग (easy of employees Killing) के लिए रास्ता हुआ प्रसस्त
18- 3M मोटर व्हीकल, माईन एबं माइग्रेशन समन्धित विषय में यदि ठेकेदार/ मालिक/ दलाल 05 लोगों को नियोजित करता है तो पंजीकरण/ लाइसेंस की जरूरत नहीं
19- जहाँ ठीकेदार 50 से कम लोगों को काम में लगाएगा वहां प्रिंसिपल एम्प्लॉयर का भूमिका खतम, एक प्रकार क्रीतदास (बंधुआ) प्रथा की पुनः प्रारंभ कहना अनुचित नहीं होगा
20- सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि राज्य सरकार अपने हिसाब से इस 04 कानून में अपने आवश्यकता के आधार पर फेरबदल करने की प्रावधान रखा गया है. एक देश एक कानून केवल भाषणों में सीमित रह जाएंगे, इत्यादि
पूंजीपतियों के अत्याचार के सामने हड़ताल करना मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार होता है. इंडंस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत उनके इस अधिकार पर सबसे बड़ी चोट की गई है. एक तरीके से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है.
इस कोड में प्रावधान है कि कोई भी मजदूर 60 दिन का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता है. साथ ही किसी विवाद पर अगर ट्राइब्यूनल में सुनवाई चल रही है तो उस सुनवाई के दौरान और सुनवाई पूरी होने के 60 दिनों के बाद तक भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं.
इस तरह से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को एक तरीके से समाप्त कर दिया गया है. श्रम सुधारों के बहाने इस कानून का लागू होने के बाद मजदूर/एम्प्लाइज एक वस्तु/ कमोडिटी/ प्रोडक्ट बनकर रह जाएगा.
सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रची है. जब देश में बेरोजगारी समस्या चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मत मुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा.
इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा क्योंकि इससे मजदूरों की रोजगार और सामाजिक सुरक्षा दोनों ही खत्म हो जाएंगे.
इस कोड़ में रही विसंगतियों के कारण, स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही मजदूर अधिकारों की संघर्ष एक झटके में खत्म हो जाएगा.
भारत सरकार, लोगों को मौलिक अधिकार से वचित करके पूंजीपतियों के हाथ को मजबूत करने के लिए, जल्दबाजी में श्रम संघो से बिना बिधिबद्ध परामर्श करते हुए कानून लाई है.
दूसरे तरफ, सरकार बिभिन्न भविष्यनिधि में जमा राशि को घरोई संस्थाओं को संचालन दे कर, शेयर बाजार में निवेश करने की योजना कर रही है.