देश के प्रमुख महिला संगठनों जैसे भारतीय महिला फेडरेशन एडपा, एपवा आदि ने उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा और लव जिहाद पर बने कानून को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करते हुए इसका पुरजोर विरोध किया है.
यहां तक कि महिला संगठनों ने किसान आंदोलन में सरकार द्वारा उठाये गए कदम के विरुद्ध आक्रोश जताते हुए सरकार से तीनों कृषि विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग रखी है.
उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा तथा लवजिहाद कानून के खिलाफ महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंद की। pic.twitter.com/IitjMYQLZE
— Meena Singh (@aipwa_meena) December 9, 2020
महिला संगठनों ने राजधानी लखनऊ के विभिन्न हिस्सों जैसे हजरतगंज, मुंशी पुलिया, आलमबाग, सर्वोदय नगर आदि में महिला कानून की विषय में अभियान चलाते हुए विभिन्न महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं से बातचीत किया.
सुबे की प्रमुख महिला संगठनों का कहना है कि आज यूपी जंगलराज का पर्याय बन चुका है प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की विभिन्न घटनाओं ने हम सबको स्तब्ध कर दिया है.
यह कहीं ना कहीं सरकार की विफलता है कि वह भयमुक्त समाज अथवा बेटी बचाओ या मिशन शक्ति का नारा देने के बावजूद खोखला साबित हो रहा है.
वास्तविकता यह है कि आज उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म देखकर इंसाफ तय किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संविधान के मूलभूत सिद्धांतों की अवहेलना करते हुए कानून बना रहे हैं, जिसका निशाना एक विशेष समुदाय बन रहा है.
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 एक क्रूर संविधान विरोधी अध्यादेश है जो संविधान की धारा 21 और 25 पर भी हमला करता है, जिसमें संविधान ने व्यक्ति के निजी स्वतंत्रता जीवन के अधिकार की गारंटी दे रखी है.
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— CPIML Liberation – Lucknow (@CpimlLucknow) December 9, 2020
संविधान की धारा 25 विश्वास की स्वतंत्रता और किसी भी धर्म को अंगीकार करने व्यवहार में अपनाने तथा प्रचार करने की क्षमता देता है.
वास्तविकता यह है कि लव जिहाद पर बने कानून पितृसत्तात्मक मूल्यों और लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है. सुबे की सरकार को सरकार की भूमिका में रहना चाहिए ना कि खाप पंचायतों के रूप में.
विवाह चाहे अपने धार्मिक समानता रखने वाले व्यक्तियों के साथ स्थापित किया जाए अथवा अंतर धार्मिक यह दो वयस्क व्यक्तियों की सहमति के साथ स्थापित किया जाना चाहिए.
आपको बता दें कि महिलाओं के मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों ने प्रेस वार्ता के जरिए सरकार से मांग किया है कि इस संविधान विरोधी अध्यादेश को वापस लिया जाए,
क्योंकि धोखाधड़ी के द्वारा और जबरन धर्म परिवर्तन करके विवाह करने के संबंध में पहले से ही कानून मौजूद हैं. सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक ने भी
इस संबंध में अपना फैसला दिया है कि राज्य दो व्यस्क व्यक्ति की निजी मामलों में दखल देने का अधिकार नहीं रखता है.