25 दिसंबर-मनुस्मृति दहन दिवस पर बहुजन संगठनों ने मनुस्मृति के साथ मनुवादी-पूंजीवादी गुलामी थोपने के कानूनों-प्रावधानों-नीतियों का किया दहन

25 दिसंबर, 2020 मनुस्मृति दहन दिवस पर मनुस्मृति के साथ मनुविधान थोपने के एजेंडों जैसे तीनों कृषि कानून, चारों श्रम संहिता, नई शिक्षा नीति-2020,
निजीकरण, कॉलेजियम सिस्टम, ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर प्रावधान, सवर्ण आरक्षण, सीएए, यूएपीए जैसे काले कानूनों का दहन करते हुए प्रतिकार किया गया.
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यूपी के मऊ में मनुस्मृति दहन दिवस कार्यक्रम के मौके पर रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव और किसान नेता बलवंत यादव ने कहा कि- “मनुस्मृति भारत के अतीत का मसला नहीं है, यह वर्तमान का मसला भी है.”
आज भी भारत में मनुसंहिता पर आधारित वर्ण-जाति व्यवस्था का श्रेणीक्रम पूरी तरह लागू है. भारत में बहुसंख्यकों की नियति आज भी इससे तय होती है कि उन्होंने किस वर्ण-जाति में जन्म लिया है.
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वर्तमान लोकसभा में 21 प्रतिशत सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 42.7 प्रतिशत है. ग्रुप-ए के कुल नौकरियों के 66.67 प्रतिशत पर 21 प्रतिशत सवर्णों का कब्जा है.
ग्रुप बी के कुल पदों के 61 प्रतिशत पदों पर सवर्ण काबिज हैं. कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में शिक्षक से लेकर प्रिंसिपल-कुलपति तक के पद पर सवर्णों का दबदबा है.
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न्यायपालिका (हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट) में 90 प्रतिशत से अधिक जज सवर्ण हैं. मीडिया भी सवर्णों के कब्जे में ही है. राष्ट्रीय संपदा में सवर्णों की हिस्सदारी 45 प्रतिशत है, कुल भूसंपदा का 41 प्रतिशत सवर्णों के पास है.
नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से सवर्ण वर्चस्व और बहुजनों की चौतरफा बेदखली का अभियान बढ़ रहा है. सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार) के अर्जुन शर्मा और अंजनी ने कहा कि-
“ब्राह्मणवाद व पूंजीवाद के गठजोड़ के हमले के बीच सवर्ण वर्चस्व और देशी-विदेशी पूंजीपतियों के द्वारा देश के संपत्ति-संसाधनों पर कब्जा आगे बढ़ रहा है.”
अंतिम तौर पर बहुजनों की चौतरफा बेदखली के साथ सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी बढाया जा रहा है, जबकि सत्ता-शासन की संस्थाओं, शिक्षा, संपत्ति-संसाधनों में बहुजनों की आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी पहले से ही कम है.
बिहार के भागलपुर में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ.विलक्षण रविदास ने कहा कि 25 दिसंबर, 1927 को डॉ. अंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति में दहन का कार्यक्रम किया था.
डॉ. आंबेडकर मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद की मूल संहिता मानते थे. उनका कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है, वह मनुस्मृति के आधार पर है.
मनुस्मृति द्विजों को जन्मजात श्रेष्ठ और पिछडों, दलित एवं महिलाओं को जन्म के आधार पर दोयम दर्जा देती है. आज भी भारतीय समाज-संस्कृति, अर्थतंत्र व राज व्यवस्था में मनुस्मृति अस्तित्व में है.
इसका नाश कर ही नया समाज-नया भारत बनेगा. ब्राह्मणवादी, जातिवादी, सांप्रादायिक व पितृसत्तावादी हिंसा नये सिरे से ऊंचाई छू रही है. भागलपुर जिला के बिहपुर प्रखंड में गौतम कुमार प्रीतम की
पहलकदमी से दीपक रविदास, गौरव पासवान, अनुपम आशीष, रूपक यादव आदि के नेतृत्व में आज के दिन दर्जन से ज्यादा गांवों में मनुस्मृति दहन दिवस पर कार्यक्रम आयोजित हुआ.

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