सूचना के अधिकार अधिनियम को भले ही जनता का एक हथियार माना जाता रहा हो किंतु दिल्ली हाई कोर्ट ने इस अधिनियम को लेकर के एक बड़ी टिप्पणी की है.
इस संबंध में अदालत ने कहा है कि- “आरटीआई के तहत आवेदन करने पर आवेदक को सूचना को हासिल करने का उद्देश्य बताना होगा. इसके अतिरिक्त आवेदक को इस बात का भी स्पष्टीकरण देना होगा कि वह जानकारी किन उद्देश्यों को लेकर के प्राप्त करना चाह रहा है.”
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दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक आरटीआई आवेदक की याचिका पर सुनवाई करते हुए किया है जिसमें उस व्यक्ति ने आरटीआई के तहत सीआईसी से राष्ट्रपति सचिवालय में नियुक्तियों के संबंध में जानकारी मांगी थी.
हालांकि जब उस व्यक्ति को जानकारी नहीं दी गई तो उसने हाईकोर्ट में याचिका लगा दिया. ऐसे में जिस व्यक्ति ने आरटीआई के माध्यम से राष्ट्रपति सचिवालय में नियुक्त हुए लोगों की जानकारी मांगी थी,
उसकी खुद की बेटी ने भी राष्ट्रपति सचिवालय में मल्टी टास्किंग स्टाफ के लिए आवेदन किया था जिसमें उसका चयन नहीं हुआ. वह व्यक्ति खुद भी राष्ट्रपति सचिवालय में 2012 से 2017 तक काम कर चुका था.
आवेदक ने चयनित स्टाफ के विषय में निजी जानकारियां भी मांगी थी जिसके तहत चयनित लोगों के नाम, उनका संपर्क मोबाइल नंबर, पिता का नाम, घर का पताआदि शामिल था.
सीआईसी ने आवेदन करने वाले लोगों के नाम की तो जानकारी दे दिया जिनका चयन हुआ था किन्तु उनकी व्यक्तिगत जानकारी नहीं दिया जिसके कारण वह हाईकोर्ट चला गया.
पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत जानकारियों की मांगे जाने पर जुर्माना लगाया जाएगा.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8-1 जे के तहत किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारी की सुरक्षा आवश्यक है
और ऐसा नहीं करने पर वह व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन समझा जाएगा. इसी को दृष्टिगत रखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी किया है.