भारत में जर्जर हो चली महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए जिस महिला मुक्ति आंदोलन का प्रारंभ सावित्रीबाई ने किया वह आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है.
स्त्री विरोधी कुरीतियों को ध्वस्त कर महिलाओं में शिक्षा व समानता की अलख जगाने वाली प्रथम महिला शिक्षिका क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले को उनकी पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन।
सामाजिक चेतना और महिला सशक्तिकरण के लिए उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा। pic.twitter.com/5K34ID5tvs
— SHAKTI SINGH PUNDALSAR (@Shaktipundalsar) March 11, 2021
इन्होंने दलित और पिछड़े वर्ग की बस्तियों में न केवल पीड़ितों की सेवा किया बल्कि महिलाओं को शिक्षित भी करने के लिए उन्होंने पहला कन्या विद्यालय खोला.
आज उन्हीं की कोशिशों का परिणाम है कि लड़कियां बड़े-बड़े मुकाम हासिल कर पाने में सफल हुई हैं. बताया जाता है कि जब सावित्रीबाई ने लड़कियों के अधिकारों की रक्षा
तथा उन्हें शिक्षित करने के लिए मुहिम छेड़ी तो ब्राम्हणवादी मानसिकता के लोगों तथा ब्राह्मणों ने उनके ऊपर कीचड़ और गंदगीयां फेंकी.
सावित्री सदैव अपने पास 1 जोड़ी कपड़े रखा करती थीं, जब कूड़े और कचरो से स्कूल जाते समय उनके कपड़े खराब हो जाते थे तो अपने थैले में रखे हुए दूसरे कपड़े निकाल कर पहन लेती थीं.
देश की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि पर शत-शत नमन #SavitribaiPhule #savitribai #Savitribaifule pic.twitter.com/8RFGWqXxZX
— Khoji News (@khoji_news) March 10, 2021
उन्होंने फूल और सब्जियों बेचकर, गद्दे और रजाई तथा कपड़े सील कर अपने परिवार का भरण पोषण किया. सावित्री ने अपने पति ज्योतिबा राव के साथ मिलकर पहली कन्या पाठशाला खोला था तत्पश्चात 18 अन्य बालिका विद्यालय को भी चलाने का कार्य किया.
ऐसी सूचना मिलती है कि ज्योतिबा राव जब मात्र 13 वर्ष के थे तभी 10 वर्षीय सावित्री बाई के साथ उनका विवाह हो गया था. इस बाल विवाह की कुरीति को भी समाप्त करने के लिए फुले दंपत्ति ने लंबी लड़ाई लड़ा.
दरअसल सावित्रीबाई ने सिर्फ शिक्षा का ही दीपक नहीं जलाया बल्कि पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था को ध्वस्त करने, अत्याचार को रोकने एवं दलितों की बस्तियों और गरीबों की सेवा करने का मार्ग भी प्रशस्त किया.
प्लेग जैसी संक्रमित बीमारी से ग्रसित रोगियों की देखभाल करने में भी इन्होंने कोई कोताही नहीं बरती. यही वजह है कि यह भी संक्रमण का शिकार हो गईं तथा 66 वर्ष की अवस्था में अपने प्राण त्याग दिए.
दुखद पहलू यह है कि सावित्री जिस सम्मान की हकदार थीं वह उन्हें आज तक नहीं मिला है. इन्होंने सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं बल्कि जातिवाद, पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था समाप्त करने,
हर तरह के भेदभाव, अत्याचार बाल विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध भी अपनी आवाज उठाई. बलात्कार की शिकार होकर मां बनने वाली महिलाओं के बच्चों के लिए सावित्री ने केयर सेंटर खोला जिसके कारण उनके ऊपर कीचड़ उछाला गया.
इन्होंने समाज में अछूत के रूप से बहिष्कृत किए जाने वाले लोगों को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से अपने घर में ही कुएं की व्यवस्था करने तथा अंतरजातीय विवाह के लिए काम किया.
पंडो, पुरोहितों और दहेज लोलुप व्यक्तियों के विरुद्ध सावित्री ने अपने पति के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज की स्थापना भी किया.