BY-THE FIRE TEAM
उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने संसदीय प्रणाली में उच्च सदन के महत्व का उल्लेख करते हुये कहा कि विधान परिषदों का विस्तार अब सभी राज्यों की विधायिका तक होना चाहिये।
नायडू ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में एक साल के कार्यकाल के अनुभवों पर आधारित अपनी पुस्तक ‘‘मूविंग ऑन मूविंग फॉरवर्ड’’ के विमोचन कार्यक्रम में रविवार को कहा ‘‘यह सही समय है जब कि हमें सभी राज्यों की विधानसभाओं में उच्च सदन की जरूरत को देखते हुये इनके गठन के लिये एक राष्ट्रीय नीति बनाने पर पर विचार और फैसला करना चाहिये।’’
नायडू ने संसदीय व्यवस्था में समय की मांग के मुताबिक माकूल बदलाव की जरूरत का हवाला देते हुये कहा कि उच्च सदन विधायिका में संतुलन की अनिवार्य कड़ी है। उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है जिस पर समय रहते ध्यान दिया जाना चाहिये। इस दिशा में कुछ राज्यों में उच्च सदन के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी है।
नायडू ने कहा कि इस दिशा में एक सार्वभौमिक नीति बनाकर आगे बढ़ने के लिये यह उपयुक्त समय है। उल्लेखनीय है कि देश के सात राज्यों, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र की विधायिका दो सदन वाली है।
संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत किसी भी राज्य की विधानसभा उच्च सदन के रूप में विधानपरिषद के गठन का प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित कर संघीय संसद के समक्ष भेज सकती है। इस प्रस्ताव को अनुच्छेद 171 के तहत संसद के दोनों सदनों से साधारण बहुमत से पारित किये जाने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर उक्त राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है।
राजस्थान और असम की विधानसभा द्वारा पारित इस आशय के प्रस्तावों को संसद से मंजूरी का इंतजार है। वहीं, तमिलनाडु और ओडिशा में भी यह कवायद फिलहाल प्रक्रिया के दौर में है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी विधान परिषद के गठन के लिये 2011 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था।
(पीटीआई-भाषा)