आज पूरी दुनिया में महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है, ऐसे में टर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यब एरडोगन ने इस देश को एक ऐसे समझौते से अलग कर लिया है जो महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित था.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे ‘काउंसिल ऑफ यूरोप एकॉर्ड’ अथवा ‘इस्तांबुल समझौता’ के नाम से जाना जाता है. इस समझौते की खास बात यह है कि इसके द्वारा महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने तथा लैंगिक समानता को स्थापित करने की बात की जाती है.
आपको यहां बताते चलें कि- टर्की ने यह समझौता वर्ष 2011 में स्वीकार किया था किंतु आज जब इस देश में महिलाओं के प्रति हिंसा सामान्य घटना हो गई है वैसे में इस्तांबुल समझौते से अलग होने का कृत्य कौन सा संदेश दे रहा है?
हालांकि इस समझौते के विषय में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि टर्की के संविधान और कानून में महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक समानता के पर्याप्त प्रावधान हैं तथा
देश में एक सशक्त न्याय प्रणाली की भी व्यवस्था है जो गुनाहगारों को सजा देने का कार्य करती है. इसलिए इस समझौते से बंधे रहने का कोई औचित्य नहीं था.
दुनिया में तुर्की एक ऐसा देश है जहां महिलाओं की हत्या के आंकड़े सरकारी तौर पर रखे ही नहीं जाते हैं. इस विषय में विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि टर्की में 38 परसेंट से अधिक
महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं जबकि यूरोप में यह औसत 25 परसेंट है. यद्यपि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के द्वारा घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को लेकर संवेदना व्यक्त की जाती है,
तथा राष्ट्रपति भी महिलाओं की हत्या की भर्त्सना करते हैं किंतु दुखद पहलू यह है कि इसे रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता है.
जानकारी के लिए बता दें कि इस समझौते से अलग होने वाला पहला देश टर्की नहीं है क्योंकि इसके पहले पोलैंड भी यह कदम उठा चुका था.