योगी आदित्यनाथ को सिविल अस्पताल में भर्ती होना चाहिए ताकि वह रूबरू हो सकें ध्वस्त हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था से

रिहाई मंच ने कोरोना संक्रमित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पॉज़िटिव होने के बाद सिविल अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी है.

नेताओं एवं अन्य मंत्रियों को सिविल अस्पताल में इलाज करवाने की भी नसीहत दिया है, इससे वे बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत से रूबरू होते हुए आम जनता के दर्द को समझ सकेंगे.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि- “कोरोना संक्रमण में तेज़ी ने कोरोना से लड़ने की तैयारियों की पोल खोल दी है, संक्रमितों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल पा रही है.”

डॉक्टरों और स्टाफ की कमी के कारण मरीज़ों की उचित देखभाल नहीं हो पा रही है. मरीज आक्सीजन की कमी के चलते मरने को मजबूर हैं.

ये मौतें नहीं हत्याएं हैं जो सरकार की नीतियों के चलते हो रही हैं. दूसरी ओर श्मशान घाटों का अंतिम संस्कार के लिए जगह और सामग्री की कमी के कारण बुरा हाल है. लोग अपनों का अंतिम संस्कार खुले में करने और सामग्री जुटाने को विवश हैं.

मंच महासचिव ने कहा कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है और सरकारें लगातार स्वास्थ्य बजट घटाती रही हैं. अस्पतालों के सम्बंध में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों के झूठे दावों की पोल खुलती जा रही है.

उन्होंने कहा कि एक तरफ आम जनता का बुरा हाल है तो दूसरी तरफ नेता, मंत्री संक्रमित होने के बाद होम आइसोलेशन में चले जाते हैं और पांच सितारा सुविधाओं के साथ डॉक्टरों की टीम उनकी देखभाल करती है.

राजीव यादव ने कहा कि कोरोना की पहली लहर के दौरान अखिलेश यादव की पार्टी के एमएलसी ने पीजीआई में भर्ती पूर्व काबीना मंत्री स्व० चेतन शर्मा के

इलाज का विवरण प्रस्तुत करते हुए विधान परिषद को अस्पतालों की खस्ता हालत बयान किया था लेकिन न तो सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के लिए उचित कदम उठाए और न ही प्रतिपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया.

उन्होंने कहा कि महामारी के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुए जिस तरह से लाखों श्रद्धालुओं को हरिद्वार में स्नान के लिए भाजपा सरकार के मूक समर्थन से इकट्ठा होने दिया गया देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

हरिद्वार में संक्रमण के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. दरअसल भाजपा सरकार ने महामारी को अपने राजनीतिक हित के लिए इस्तेमाल करने का खतरनाक चलन शुरू कर दिया है.

महामारी का साम्प्रदायिक खेल खेलने के अलावा अपने विरोधियों को साधने और अपने छुपे हुए एजेंडे को आगे बढ़ाने में कोई संकोच नहीं किया.

पैंडामिक एक्ट को लागू करने के दो अलग प्रतिमान बन चुके हैं एक सत्ता और उसके पालतुओं के लिए है और दूसरा आम जनता के लिए.

कारोना की पहली लहर को सीएए विरोधी आंदोलनों को कुचलने के लिए किया गया था तो वहीं दूसरी लहर का प्रयोग किसान आंदोलन को खत्म करने के प्रयास के बतौर किया जा सकता है.

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