सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोनावायरस को बताया राष्ट्रीय आपदा कहा, कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता है

मिली जानकारी के मुताबिक देश में फैलते कोरोनावायरस संक्रमण के कारण लोगों की असामयिक मृत्यु ने न्यायालय को झकझोर कर रख दिया है.

आज देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी, टीकाकरण की कोई ठोस व्यवस्था ना होने, अस्पतालों में बेड की कमी, पीपीई किट का उपलब्ध ना होना,

इलाज के अभाव में मरीजों का मरते जाना, शमशान घाटों और कब्रिस्तान में बिछती लाशों को देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि

“देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से निपटने के लिए बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे की उपलब्धता और दवाइयों सहित वैक्सीन की क्या स्थिति है?”

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोनावायरस वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों पर भी सवाल उठाते हुए पूछा है कि इसके पीछे का आधार क्या है”

इस राष्ट्रीय संकट और महामारी की स्थिति में वैक्सीन को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि सभी लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सके.

आपको यहां बता दें कि 1 मई, 2021 से वे सभी व्यक्ति जिनकी आयु 18 वर्ष से ऊपर है, उनका टीकाकरण प्रारंभ होगा. इस विषय में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय

विशेष पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया है कि कोरोनावायरस प्रबंधन के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र संज्ञान की कार्यवाही करके जानने का प्रयास किया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में आखिर चल क्या रहा है?

ऐसा करके सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता को कहीं से भी बाधित नहीं किया है. ऑक्सीजन के औद्योगिक प्रयोग पर भी पाबंदी लगाकर कहीं न कहीं किसके उत्पादन को प्रभावित करने का प्रयास किया गया है. इसे किए जाने की जरूरत है.

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