प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘आपदा में अवसर ढूंढने का प्रयास करना चाहिए’ को बखूबी अस्पताल के लोगों ने समझा है.
शायद यही वजह है कि कोविड वैक्सीन की कालाबाजारी से लेकर बेड, वेंटीलेटर्स और ऑक्सीजन की आपूर्ति तक में भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ द्वारा यह आदेश जारी किया गया था कि कोविड-19 के संक्रमण से मरने वाले मरीजों के दाह संस्कार विभिन्न घाटों और कब्रिस्तानों में मुफ्त किया जाएगा.
इस आदेश की प्रति को प्रदेश के सभी जिला अधिकारियों, नगर आयुक्त सहित नगर पालिका और नगर पंचायत के प्रत्येक अधिशासी अधिकारी को भेज दिया गया है,
किंतु खुद प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ही इस आदेश की धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं. क्योंकि यहां शवों का अंतिम संस्कार ठेकेदारों के द्वारा पैकेज के तहत संचालित हो रहा है जिसकी न्यूनतम कीमत ₹ 6000 तक निर्धारित की गई है.
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 114 (20) तथा नगरपालिका अधिनियम 1916 की धारा 7(G) का हवाला देते हुए बताया गया है कि-
“सभी नगरीय निकायों की सीमा के अंतर्गत मृतकों के अंतिम संस्कार हेतु अंत्येष्टि स्थलों का विस्तार और श्मशान घाटों की व्यवस्था करना नगरीय निकायों का मूल कर्तव्य है किंतु धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है.”
पैकेज में अंतिम संस्कार का सामान जहां ₹6000 में बिकता है तो वहीं अर्थी बनाने का चार्ज 1100 रुपए है. अर्थी को कंधा देकर जलाने का खर्च ₹4500 हैं जबकि फ्रिजर का रेट 24 घंटे के लिए ₹3000 प्रतिदिन के हिसाब से वसूल किया जा रहा है.
आज अस्पतालों में बेड की कमी, वेंटिलेटर का अभाव, ऑक्सीजन की आपूर्ति में भारी किल्लत आदि की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं.
शायद यही वजह है कि योगी सरकार ने श्मशान घाटों पर कोरोना संक्रमित मृतकों का अंतिम संस्कार मुफ्त में करने का आदेश जारी किया था, किंतु सरकार का यह आदेश भी अन्य आदेशों की तरह झुनझुना ही साबित हो रहा है.