सामाजिक कार्यकर्ता ‘चिपको आंदोलन’ के प्रणेता को ‘कोरोना’ ने बनाया अपना शिकार, अब नहीं रहे हमारे बीच

(सईद आलम खान की कलम से)

  • क्या है जंगल के ऊपर, मिट्टी, पानी और बयार, यही हैं जिंदा रहने के आधार

कहते हैं प्रकृति ने मनुष्य को वह सब कुछ दिया है जिसका वह हकदार है. झील, झरने, वनस्पतियां, जंगल, जमीन आदि ये सारे भौतिक संसाधन सभी जीवो के लिए प्रकृति ने बनाया है,

किंतु मनुष्य इतना अवसरवादी निकला कि उसने सदैव प्रकृति का दोहन करना ही अपना उद्देश्य रखा. जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा ने आजीवन वनस्पतियों और जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष किया.

सुंदरलाल बहुगुणा की जीवनी | Sunderlal Bahuguna Biography in Hindi

चिपको आंदोलन उनकी इसी लड़ाई का परिचायक है. दरअसल बहुगुणा विराट व्यक्तित्व के धनी थे जिनके इस धन को उनकी पत्नी विमला ने और अधिक समृद्ध किया.

1956 में इन्होंने उत्तराखंड के टिहरी शहर में ठक्कर बाप्पा हॉस्टल बनाया जिसमें युवाओं के पढ़ने के लिए हर तरीके की सुविधाएं जुटाई.

यहां से इन्होंने महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अतिरिक्त कई तरह के सर्वोदयी आंदोलन चलाकर जनता के बीच लोकप्रिय हो गए.

बहुगुणा ने भूदान आंदोलन को भी उत्तराखंड के जिलों में प्रसारित किया किंतु यह आंदोलन बहुत आगे तक नहीं जा सका फिर भी इन्होंने पहाड़ी समाज के मुद्दे को अच्छी तरीके से पहचाना और उसे धार देने के लिए हर संभव प्रयास किया.

पेड़ों की रक्षा करने के लिए एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट के साथ इन्होंने जो चिपको आंदोलन चलाया वह जनता के दिलों में घर कर गया.

कालांतर में इन दोनों समाजसेवियों के बीच कुछ मनमुटाव भी देखने को मिला किंतु उनके कार्य करने के उद्देश्यों में कहीं भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सका.

हुआ यह था कि आपातकाल के दौरान जयप्रकाश इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे जबकि कुछ लोग विनोबा भावे के साथ रह कर काम करना चाहते थे और यह आपातकाल का समर्थन कर रहे थे.

बहुगुणा के संघर्षों का ही यह परिणाम था कि 1980 में जब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो चिपको आंदोलन के अधिकतर मांगों को उसने मान लिया.

1982 में बहुगुणा ने कश्मीर से कोहिमा तक की यात्रा किया जो संपूर्ण हिमालई इलाकों को आपस में जोड़ते हुए उनकी बुनियादी समस्याओं पर बात करने के लिए चलाई जाने वाली एक मुहिम के रूप में दिखाई देती है.

इन्होंने टिहरी बांध का विरोध करने के लिए लम्बा संघर्ष किया जिसका आम समाज की जागरूकता पर गहरा असर पड़ा. बहुगुणा ने कई किताबें लिखी और लोगों को प्रकृति के दृष्टिगत रक्षा हेतु नए विचार दिया.

वास्तविकता तो यह है कि पर्यावरण को स्थाई संपत्ति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ माना जाता है. वृक्षों की रक्षा करने के कारण

विश्व भर में इन्हें ‘वृक्ष मित्र’ के रूप में पहचाना गया. इनके कार्य से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इन्हें पुरस्कृत भी किया.

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