(सईद आलम खान की कलम से)
- क्या है जंगल के ऊपर, मिट्टी, पानी और बयार, यही हैं जिंदा रहने के आधार
कहते हैं प्रकृति ने मनुष्य को वह सब कुछ दिया है जिसका वह हकदार है. झील, झरने, वनस्पतियां, जंगल, जमीन आदि ये सारे भौतिक संसाधन सभी जीवो के लिए प्रकृति ने बनाया है,
किंतु मनुष्य इतना अवसरवादी निकला कि उसने सदैव प्रकृति का दोहन करना ही अपना उद्देश्य रखा. जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा ने आजीवन वनस्पतियों और जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष किया.
चिपको आंदोलन उनकी इसी लड़ाई का परिचायक है. दरअसल बहुगुणा विराट व्यक्तित्व के धनी थे जिनके इस धन को उनकी पत्नी विमला ने और अधिक समृद्ध किया.
1956 में इन्होंने उत्तराखंड के टिहरी शहर में ठक्कर बाप्पा हॉस्टल बनाया जिसमें युवाओं के पढ़ने के लिए हर तरीके की सुविधाएं जुटाई.
यहां से इन्होंने महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अतिरिक्त कई तरह के सर्वोदयी आंदोलन चलाकर जनता के बीच लोकप्रिय हो गए.
पर्यावण के सच्चे हितैषी को आगाज़ भारत न्यूज की तरफ से श्रद्धांजलि……
क्या है जंगल के ऊपर, मिट्टी, पानी और बयार यही हैं जिंदा रहने के आधार pic.twitter.com/V6TElg2h4e
— AGAZ BHARAT NEWS (@agaz_news) May 22, 2021
बहुगुणा ने भूदान आंदोलन को भी उत्तराखंड के जिलों में प्रसारित किया किंतु यह आंदोलन बहुत आगे तक नहीं जा सका फिर भी इन्होंने पहाड़ी समाज के मुद्दे को अच्छी तरीके से पहचाना और उसे धार देने के लिए हर संभव प्रयास किया.
पेड़ों की रक्षा करने के लिए एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट के साथ इन्होंने जो चिपको आंदोलन चलाया वह जनता के दिलों में घर कर गया.
कालांतर में इन दोनों समाजसेवियों के बीच कुछ मनमुटाव भी देखने को मिला किंतु उनके कार्य करने के उद्देश्यों में कहीं भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सका.
चिपको आंदोलन के प्रणेता, पर्यावरण संरक्षण के लिए आजीवन समर्पित पर्यावरणविद श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी के निधन का समाचार दुखदाई है।
उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए किये कार्यों के प्रति हमेशा याद किया जाएगा।
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। pic.twitter.com/7PUeM4EeDY— Virender Kanwar (Modi ka Parivar) (@vskanwar04) May 22, 2021
हुआ यह था कि आपातकाल के दौरान जयप्रकाश इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे जबकि कुछ लोग विनोबा भावे के साथ रह कर काम करना चाहते थे और यह आपातकाल का समर्थन कर रहे थे.
बहुगुणा के संघर्षों का ही यह परिणाम था कि 1980 में जब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो चिपको आंदोलन के अधिकतर मांगों को उसने मान लिया.
1982 में बहुगुणा ने कश्मीर से कोहिमा तक की यात्रा किया जो संपूर्ण हिमालई इलाकों को आपस में जोड़ते हुए उनकी बुनियादी समस्याओं पर बात करने के लिए चलाई जाने वाली एक मुहिम के रूप में दिखाई देती है.
इन्होंने टिहरी बांध का विरोध करने के लिए लम्बा संघर्ष किया जिसका आम समाज की जागरूकता पर गहरा असर पड़ा. बहुगुणा ने कई किताबें लिखी और लोगों को प्रकृति के दृष्टिगत रक्षा हेतु नए विचार दिया.
वास्तविकता तो यह है कि पर्यावरण को स्थाई संपत्ति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ माना जाता है. वृक्षों की रक्षा करने के कारण
विश्व भर में इन्हें ‘वृक्ष मित्र’ के रूप में पहचाना गया. इनके कार्य से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इन्हें पुरस्कृत भी किया.