‘पिंजरा तोड़’ की कार्यकर्ता, जेएनयू छात्रा नताशा नरवाल पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद पहुँची तिहाड़ जेल

  • इस तस्वीर को फेसबुक पर देख दिल रोमांचित हो जाता है और कह उठता है कि ऐ भगत सिंह तू जिंदा है
  • इंसानियत का जिक्र कहीं तह खाने में फेंक दी गई संवेदना को जगाने की ताकत रखता है इसीलिए सत्ता इस शब्द को बर्दाश्त नहीं कर सकती है

वैसे तो ‘पिंजरा तोड़’ से मीडिया माध्यमों और साथियों द्वारा परिचित था पर नताशा नरवाल या उनके साथियों से नहीं. नागरिकता आंदोलन के दौरान सीलमपुर धरने में नताशा और उनके साथियों से मुलाकात हुई.

आज नताशा की तस्वीर देख पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि दिल्ली दंगों की जो साजिश सरकार ने की उसमें कहीं न कहीं उसके खिलाफ लड़ने वाले हम जैसे अपने को लोकतांत्रिक कहने वाली आवाजें भी उसकी शिकार बनीं.

दिल्ली दंगों के बारे में उसके साजिश कर्ताओं के नाम पर हमारे नौजवान साथियों पर जो आरोप लगाए गए हैं उसमें सोशल मीडिया पर भेजे गए मैसेजों को भी आधार बनाया गया.

लंबे अरसे से यूुएपीए जैसे केसों को करीब से देखने के अनुभव और नए यूएपीए के संसोधन, अगर गलत नहीं हूं तो जिसका समर्थन कांग्रेस ने भी राज्य सभा मे किया था, से इतना तो समझ आ गया था कि हो न हो कोई षणयंत्र रचा जा रहा है.

अशफाक-बिस्मिल की शहादत दिवस 19 दिसंबर के बाद के अनुभवों ने काफी समृद्ध किया कि राज्य कैसे आपके खिलाफ षणयंत्र रच सकता है.

जो साथी जेल गए उनको सलाम, जो विषम परिस्थिति में लड़ रहे उनके हर कदम साथ रहने के वादे के साथ कहना चाहूंगा कि हमें अपने आंदोलनों के दौरान

सचेत रहना चाहिए कि हम विरोधियों की किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहे. हमें अपने साथियों पे गर्व है जिन पर झूठे आरोपों को लगाकर जेल में डाल दिया गया है.

एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता की जब गिरफ्तारी हुई तो उनकी ‘रिहाई मंच’ के समर्थन में एक पोस्टर निकाला गया था.

जब उस पोस्ट को देखा तो मेरे होश उड़ गए, उसमें ऐसा कुछ था कि रिहाई मंच मुस्लिम एक्टविस्ट जो गिरफ्तार होते हैं उस पर नहीं बोलता.

इसे देख मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था लेकिन ने उस दरम्यान और जो गिरफ्तारियां हुईं थी उनके पोस्टर मांगकर पोस्ट किया. सच मुझे उस वक़्त बहुत रोना आ रहा था.

खैर थोड़ी देर में उस साथी ने माफी मांगते हुए पोस्ट हटा दी, ठीक ऐसा ही कई बार दलित साथी भी लिख देते हैं या कह देते हैं कि हम मुसलमान के सवाल को ही उठाते हैं, मुझे संघी भी कह देते हैं.

साफ तौर पर हम संविधान को बचाने और उसे लागू करवाने के लिए लड़ते हैं. हमको अपने आंदोलनों में साथियों को वैचारिक रूप से भी मजबूत करना होगा ये लड़ाई फासीवाद-साम्राज्यवाद-मनुवाद के खिलाफ है.

ऐसे में हमारी वैचारिक प्रतिबद्धता ही तय करेगी कि हम अपने वक़्त में क्या सही थे.

(रिहाई मंच, राजीव यादव की कलम से)

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