आप बिल गेट्स, एलन मस्क, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान लोगों के बारे में पढ़िएगा तो वे कहते हैं अगर आपको आगे बढ़ना है तो किताबों से दोस्ती करिए इसके बिना आप आगे बढ़ नहीं सकते.
दुनिया का ज्ञान और खजाना किताबों से होकर गुजरती है लेकिन क्या करें आज का भारत युवाओं का भारत है. डिजिटल भारत है, एक क्लिक में पूरी दुनिया के दर्शन हो जाते हैं.
एक क्लिक में आप और हम देश और दुनिया के भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल को जान लेते हैं, क्योंकि आपके हाथों में एक चमत्कारिक चीज है “मोबाइल फोन”
जब मोबाइल फोन आया तो इसके पीछे उद्देश्य था लोगों के दूरियों को कम किया जाए. लाने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा कि जो मोबाइल फोन लोगों के जिंदगियों को बदलने का काम करेगी.
पति-पत्नी दूर रहकर भी मोबाइल के जरिए करीब होने का अहसास करेंगे, मां-बाप से दूर रहकर भी बेटे हर रोज हाल चाल पूछेंगे, वही मोबाइल युवाओं के हाथों से किताबों को छीन कर रील्स वीडियो,
ऑनलाइन गेम में उलझा कर उनके जिंदगियों को तबाह कर दिया है. हाय, हेलो, बाबू, सोना खाना खाया कि नहीं करते- करते कितने सपनों को तबाह कर देगी, ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा.
मेरे इस लेख से कुछ मित्रों को ठेस पहुंचेगी लेकिन पिछले कुछ दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जो लिखना जरूरी हो गया है. दो दिन पहले ही मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा,
दीपक तुम पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हो ना, मैंने कहा, हां क्यों..उसने कहा तुम रील्स वीडियो नहीं बनाते हो गानों पर आजकल बहुत पत्रकारिता के छात्र बनाते हैं.
मुझे लगा पत्रकारिता की पढ़ाई वाले सिलेबस में रील्स वीडियो भी सिखाया जाता होगा, उनके इस प्रश्न को ध्यान से पढ़िए तो समझ आएगा लोगों ने क्या धारणा बना ली है.
रील्स वीडियो को शिक्षा मान लिया गया है जिसे कुछ कॉरपोरेट लोगों ने युवाओं को उलझा कर रखने की नीति बना रखा है. मुझे याद है एक प्रोफेसर ने मुझसे कहा था कि-
“भारत के युवा इसलिए पिछड़ जाते हैं क्योंकि यहां कॉपी-पेस्ट होता है. यहां के युवाओं के पास अपने आइडिया बहुत कम होते हैं क्योंकि ये आज भी अंग्रेजों के बनाई चीजों पर अपना समय गुजारते हैं.”
उन्होंने कहा कि फेसबुक, इंस्टाग्राम व्हाट्सएप वही चीज हैं, ऐसी चीजें इसलिए लाई जाती हैं ताकि युवाओं को उलझा कर रखा जाए. वे कहते हैं कि आप सबसे पॉपुलर एप के नाम का लिस्ट बनाइए तो पता चलेगा कि सभी अमेरिका के लोगों ने बनाए हैं.
वे यही चाहते है की पूरी दुनिया के लोग इसी पर अपना समय खर्च करे किताबों से दूर रहें. एक सर्वे में बताया गया कि एक यूजर प्रतिदिन 2 घंटे 15 मिनट अपना समय सोशल मीडिया पर खर्च करता है.
जबकि पूरी दुनिया के सोशल मीडिया यूजर की बात करें तो प्रतिदिन 10 लाख साल के बराबर अपना समय खर्च करते हैं. आप इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि
2020 में प्रिंट मीडिया की कमाई मात्र 3 फीसदी बढ़ी जबकि डिजिटल मीडिया की 28 फीसदी. आज फेसबुक, इंस्टा ग्राम जैसे बड़े सोशल मीडिया नेटवर्कों ने रील्स वीडियो का सिस्टम तैयार कर लिया है.
15-15 सेकेंड के वीडियो के जरिए लोगों को आकर्षित कर रहा है, सबसे बड़ी बात है उसने एक प्लेटफॉर्म दे दिया लेकिन हम आपस में ही बर्बाद करने पर तुले हुए हैं.
एक हफ्ते पहले मेरी बात किताब प्रकाशित करने वाली एक पब्लिकेशन से हो रही थी. मैंने उनसे पूछा कि आजकल हिंदी भाषीय राज्यों के किताबों की क्या डिमांड हैं.
उन्होंने कहा, हिंदी क्षेत्र के लोगों ने किताबों को पढ़ना कम कर दिया है या ना के बराबर हो गई है. मैंने पूछा ऐसा क्यों, वे कहते हैं आजकल सोशल मीडिया का ट्रेंड है सभी उसी में उलझ कर रह जाते है.
आप किसी भी क्षेत्र के छात्रों को देख लीजिए रील्स वीडियो बनाते दिख जायेंगे, मै कई ऐसे मित्रों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं जो अच्छे विश्वविद्यालयों से पत्रकारिता की पढ़ाई किए हैं
लेकिन आज भी उनसे उनके सिलेबस से ही किसी टॉपिक पर सवाल उठा कर उनसे पूछ लिया जाए तो जबान बंद मिलेगी क्योंकि वो कॉलेज पढ़ने नहीं ऑनलाइन गेम खेलने आए थे, रील्स वीडियो बनाने आए थे.
आज भारत में बेरोजगारी चरम पर है यही देश के युवा चिल्लाते हैं नौकरी दे दो, नौकरी दे दो, कहां से देगी सरकार नौकरी? गुणवत्ता क्या है, किताबों के नाम पर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और फेसबुक यूनिवर्सिटी का ज्ञान?