BY– THE FIRE TEAM
2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद आज तेलंगाना ने अपनी पहली विधानसभा भंग कर दी।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल द्वारा विधानसभा को भंग करने से संबंधित जो प्रस्ताव पास किया गया था उसको राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने स्वीकार कर लिया।
राजभवन की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया; “राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद की अनुशंसाओं को स्वीकार करते हुए के.चंद्रशेखर राव और उनकी मंत्रिपरिषद से एक कार्यवाहक सरकार के तौर पर पद पर बने रहने को कहा है, चंद्रशेखर राव ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया है।”
राज्यपाल के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के साथ ही तेलंगाना की पहली निर्वाचित विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो गया।
पिछले कुछ दिनों से विधानसभा भंग करने की अटकलें काफी तेज हो गईं थीं।
समय से पूर्व विधानसभा भंग करने से संबंधित प्रस्ताव पर विपक्षी दलों ने एतराज जताया है।
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि मुख्यमंत्री को स्पष्टीकरण देना चाहिए कि ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि उन्होंने विधानसभा को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया।
तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख प्रवक्ता श्रवण दासोजु ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राव के बीच संदिग्ध समझौता हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा के साथ-साथ तेलंगाना विधानसभा का चुनाव भी समय सारणी के अनुसार अगले साल होता तो यह चुनाव राहुल गांधी बनाम मोदी में बदल जाता और तेलंगाना जैसे राज्य में इसका फायदा कांग्रेस को मिलता।
वहीं तेलंगाना भाजपा प्रवक्ता कृष्णा सागर राव ने दावा किया कि तकनीकी रूप से यह संभावित नहीं होगा कि जिन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर दिसंबर में होने हैं उनके साथ तेलंगाना का चुनाव आयोजित कराया जाए। उन्होंने कहा,”मैं नहीं सोचता कि अगर मतदाता किसी खास पार्टी को वोट देने की सोच रहे हैं तो चुनाव की नियमित समय सारणी में बदलाव से वह अपना मन बदल लेंगे।”
आपको बताते चलें कि 2 जून 2014 को तेलंगाना, आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत के 29वें राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था।
तेलंगाना का विधान सभा भवन हैदराबाद में स्थित है। यहां पर कुल मिलाकर 119 विधानसभा सीटें हैं।
तेलंगाना उन राज्यों में शामिल है जिनमें द्विसदनीय व्यवस्था पाई जाती है।
source-PTI