संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्वशांति और मानवता की स्थापना के लिए प्रयास करना चाहिए

दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों को विशेष रूप से अफगानिस्तान के मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और हिंसा और अंहिसा, लोकतंत्र और विश्व मानवाधिकार, सामाजिक अन्याय और भ्रष्टाचार

विश्व के विकसित और संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई सदस्य देशों की चुप्पी अफगानिस्तान की दुर्दशा और उसकी बर्बादी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है?

क्योंकि ताकत यदि गलत हाथों में आ जाऐ तो उसका गलत ही इस्तेमाल होता रहा है. हिंसा-प्रतिहिंसा और क्रूरता का दौर जो दुनिया के सामने तालिबान ने पेश किया है,

उसको आपने इस अमानवीय व धर्म विरूद्ध कृत्य कार्य के लिए उचित समय पर अपने ही सहयोगियों के साथ अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.

क्योंकि जो प्रकृति के नियमों का उल्लंघन अपने स्वार्थ, लालच और महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए करते हैं उनको ईश्वर के द्वारा ही दण्ड दिया जा सकता है.

अफगानिस्तान के मामले पर दुनिया के देशो की खामोशी किसी बडे हादसे को दावत दे रही है. समय रहते यदि इस मामले पर दुनिया के शांति प्रिय देशो के द्वारा

यदि विश्व शांति हेतु कठोर निर्णय व कठोर कदम उठाते हुए नैतिक मूल्यों के आधार पर लोकशांति हेतु खुले तौर पर विधि के शासन के तहत लोकतंत्र शासन प्रणाली की व्यवस्था स्थापित किया जाना चाहिए,

ताकि नागरिकों को सुरक्षित माहौल मिल सके और गौरवपूर्ण बुनियादी सुविधाओं के साथ जीवन जीने का अधिकार मिल सके जिससे स्वतंत्रता को बल मिल सके.

अफगानिस्तान में जिंदगी और मौत एक साथ सफर नही कर सकते, शांति के लिए यदि युध्द भी लड़ना पडे तो संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी सुरक्षा परिषद के साथ वो सारे कदम उठाने की जरुरत है

जिससे विश्व मानवाधिकार आयोग को नागरिकों के मौलिक नैसर्गिक अधिकारों का संरक्षण प्रदान कर स्वतंत्रता को बल प्रदान किया जा सके.

किसी दूसरे देश पर बंदूक की ताकत से कब्जा करने के बाद, लाखों बेगुनाह और निर्दोष नागरिक को एक पल में अपने ही देश में शर्णाथी बना देना,

सरेआम दुनिया के सामने मजहब की आड़ में कत्ले-आम करना और हिंसा व दमन व क्रूरता के साथ निर्दोष नागरिक का कत्ल करना किसी मुल्क पर हथियार के बल पर कब्जा कर लेना

उसके उपरान्त अब शांति की बात कहकर दुनिया को गुमराह कर रहे आंतकवादियों के साथ मिलकर हिंसा को बढावा देना यह संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई सदस्य देशो व उसके सहयोगी देशो के साथ छल करने जैसा है.

हिंसा और बंदूक की ताकत से सत्ता हासिल करना लोकतांत्रिक व्यवस्था के नैतिक मूल्यों के विपरीत है. शांति के लिए दुनिया के सामने पाकिस्तान को धन्यवाद करना ऐ तालिबान के दोहरे चरित्र को उजागर करता है.

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