- समता मूलक समाज की स्थापना संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात किए बिना असंभव- मसीहुद्दीन संजरी
- संवैधानिक मूल्यों को आमजन तक पहुंचाने में ग्रामीण इलाकों के शिक्षण संस्थानों की भूमिका हो सकती है महत्वपूर्ण- उमैर अंजर
दाउदपुर/संजरपुर, आजमगढ़: संविधान दिवस के अवसर पर दाऊदपुर स्थित फरहत क्लासेज में संवैधानिक मूल्यों पर आयोजित एक परिचर्चा में
बोलते हुए रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि- “आज हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां है. स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेताओं का मजाक उड़ाया जा रहा है.
संविधान की मर्यादा के विरूद्ध बहुत कुछ घटित हो रहा है. सामाजिक न्याय पर हमले बढ़े हैं और यह लड़ाई पीछे छूटती दिख रही है.
लेकिन संघर्ष जारी है और संविधान हमें इसको जारी रखने के लिए प्रेरित करता है.”
संविधान को आधार बना कर ही संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सकता है और विजय प्राप्त की जा सकती है.
मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि-“समतामुलक समाज की स्थापना बिना संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात किए आकार नहीं ले सकती. इसकी शुरुआत हमें अपने घर और पड़ोस से करनी पड़ेगी.”
संविधान की प्रस्तावना में स्वंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय का उल्लेख उस समय तक कोई मायने नहीं रखता जब तक हम खुद इस
कसौटी पर पूरा उतरने का प्रयास नहीं करते और साथ ही समाज के सबसे निचले स्तर तक उसे ले जाने में अपना योगदान नहीं देते.
परिस्थितियां बहुत अनुकूल नहीं हैं लेकिन पीछे मुड़कर देखने की गुंजाइश भी नहीं है. फरहत क्लासेज के संचालक उमैर अंजर ने कहा कि-
“आमजन तक संवैधानिक मूल्यों को पहुंचाने के लिए ग्रामीण स्तर पर ऐसी चर्चाओं की बहुत जरूरत है. इस मामले में प्राइमरी स्कूलों और दूसरे छोटे शिक्षण
संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी हो सकती है. अगर लिखित सामग्री उपलब्ध हो सके तो इसे दूसरों तक पहुंचाने में आसानी होगी.“