मीडिया जगत की बड़ी हस्ती, चुनावी विश्लेषक विनोद दुआ की हालत हुई नाजुक

(ब्यूरो चीफ सईद आलम खान की कलम से)

मिडिया जगत की जानी-मानी हस्ती, टीवी एंकर, राजनीतिक-रणनीतिकार, चुनावी विश्लेषक, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की

भूमिका के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाले विनोद दुआ आज जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं.

एक साथ इतने सारे क्षेत्रों का अनुभव विनोद दुआ के कड़े संघर्ष तथा चुनौतियों से लड़ने का माद्दा उनके व्यक्तित्व से देखने को मिल जाता है.

वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले उनका परिवार दक्षिण वजीरिस्तान के एक छोटे से शहर डेरा इस्माइल खान में रहता था

जिसे बाद में तालिबान में तब्दील कर दिया गया. आजादी के बाद उनका परिवार मथुरा आया जहां शुरुआत के दिनों में इनके पिता धर्मशाला के दो

कमरे किराये पर लेकर जो ₹4 प्रति माह थी, में अपना गुजर-बसर करने लगे. भारत में इनके पिता ने सेंट्रल बैंक आफ इंडिया में

एक क्लर्क के रूप में अपना कार्य करना शुरू किया और शाखा प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए.

विनोद ने अपने स्कूल और कॉलेज की प्रतियोगिताओं में भाग लिया था तथा 1980 के दशक के मध्य इन्होंने कई थिएटर प्रोग्राम भी किए.

श्री राम कला सांस्कृतिक केंद्र में बच्चों के लिए लिखे गए इनके दो नाटक सूत्रधार पपेट थिएटर द्वारा प्रदर्शित किया गया था.

वर्ष 1974 में विनोद दुआ ने पहली बार टेलीविजन पर युवा मंच नामक एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसे दूरदर्शन पर हिंदी भाषा में प्रसारित किया गया था.

1981-84 के मध्य तक इन्होंने ‘संडे मॉर्निंग फैमिली’ मैगजीन में कार्य करना प्रारंभ किया. 1984 के बाद इन्होंने टीवी चैनलों में चुनाव विश्लेषण के लिए गेस्ट एंकर के रुप में बुलाया जाने लगा.

जनवाणी कार्यक्रम की शुरुआत करने के साथ ही 1985 में उन्होंने सामान्य लोगों को सीधे मंत्रियों से सवाल करने का अवसर प्रदान किया.

अपने कैरियर की ऊंचाई को छूते हुए 1987 में इंडिया टुडे समूह की एक कंपनी ‘टीवी टुडे’ में मुख्य निर्माता के रूप में शामिल हुए.

मुख्य तौर पर बजट विश्लेषण, समसामयिक मुद्दों तथा पर लिखी फिल्मों के आधार पर विनोद ने 1988 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी

‘द कम्युनिकेशन ग्रुप’ को शुरू किया जिससे इनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई. 1992 से 1996 तक डीडी दूरदर्शन पर प्रसारित एक साप्ताहिक कार्यक्रम में विश्लेषण करते थे.

2000 से 2003 तक वह सहारा टीवी से जुड़े जिसके कारण उन्होंने प्रतिदिन और परख कार्यक्रम की मेजबानी भी किया.

इसी क्रम में विनोद दुआ ने एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम ‘जाएका इंडिया’ के दौरान विभिन्न शहरों और राजमार्गों पर स्थित ढाबों पर बने लजीज व्यंजनों का स्वाद चखा और लोगों के बीच में ले गए.

वर्ष 2008 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार के द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

इसके अतिरिक्त आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने इन्हें डी लीट की उपाधि से भी सम्मानित किया.

‘द वायर हिंदी’ वेबसाइट में इन्होंने जन-गण-मन की बात कार्यक्रम की शुरुआत किया जो लगभग 10 मिनट तक चलता रहता था.

इसके माध्यम से विनोद समसामयिक मुद्दों पर एक विश्लेषण कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे जिसमें सरकार की आलोचना भी खूब की जाती थी.

जनपक्षधरता की बात रखने के कारण ही इन्होंने पत्रकारिता के द्वारा जनता की बात रख कर अत्यधिक लोकप्रियता अर्जित किया.

यही वजह है कि मुंबई प्रेस क्लब के द्वारा उन्हें वर्ष 2017 में रेड इंक पुरस्कार से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन्हें सम्मानित किया.

विवादों से भी विनोद दुआ का संबंध रहा है, बता दें कि इनके द्वारा किए जा रहे हैं यूट्यूब शो में सांप्रदायिक दंगों के कारण हिमाचल प्रदेश

में उनके विरुद्ध याचिका दायर करते हुए देशद्रोह का आरोप लगाया गया था किन्तु कोविड 19 के प्रोटोकॉल के कारण इन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका.

इसके अतिरिक्त एक महिला ने आरोप लगाया था जब #me too आंदोलन पूरी दुनिया में चल रहा था.

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