राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में संसद प्रवेश पर रोक के खिलाफ पत्रकारों ने खोला मोर्चा

  •  तानाशाह भ्रष्ट लुटेरी सरकार ने गोदी मीडिया के चमचे पत्रकारों को भी उनकी औकात दिखाई

दिल्ली में सैकड़ों पत्रकारों ने गुरुवार को सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ संसद तक मार्च किया. इससे पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब के भीतर एक सम्मेलन भी किया जिसमें प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त,

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर, वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब, राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा,

महासचिव विनय कुमार, भारतीय महिला प्रेस कोर की विनीता पांडेय, दिल्ली पत्रकार संघ के एसके पांडे आदि ने सरकार के इस रवैये की तीखी आलोचना की और किसान आंदोलन की तरह पत्रकारों का आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया.

शुक्रवार को भी पत्रकारों ने पैदल मार्च किया और सरकार से संसद का कवरेज करने देने की अनुमति देने की गुहार लगाई.

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है लेकिन असली सरकार की मंशा है कि संसद के अंदर उठने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं की खबरें मीडिया नहीं कवर कर सके.

सरकार के द्वारा भ्रष्ट कार्यों की जानकारी आम लोगों को नहीं दे सके. सरकार द्वारा लूटपाट एवं तानाशाही पूर्ण हरकतों को सामने लाने से रोका जा सके.

कोरोना के नाम पर यदि मीडिया संसद के अंदर नहीं आ पाएगा तो विपक्ष की खबरें न आएंगी और केवल सरकारी खबरें आएंगी.

उनका कहना था कि पहले सरकार ने सेंट्रल हॉल का पास बन्द किया ताकि पत्रकार सांसदों, नेताओं से मिलकर असली अंदरूनी खबर न दे सकें.

वक्ताओं ने कहा कि अब वे पत्रकारों को पहले की तरह प्रवेश नहीं दे रहे जबकि सांसद और संसद के कर्मचारी और उनके परिजन आराम से खुलकर आ रहे हैं.

एक तरफ तो सरकार ने सिनेमा हॉल, रेस्तरां, मॉल खोल दिये, दूसरी तरफ पत्रकारों पर रोक क्यों? गिने-चुने पत्रकार कोरोना का टेस्ट कराकर जा रहे तो सबको प्रवेश क्यों नहीं?

वक्ताओं का कहना था कि लोकसभा और राज्यसभा की दर्शक दीर्घा, राजनयिक दीर्घा और सभापति तथा अध्यक्ष की दीर्घाएँ खाली हैं तो वहां पत्रकारों को बिठाया जा सकता है लेकिन सरकार की मंशा कुछ और है.

सरकार ने पहले ही पीटीआई, यूएनआई की सेवा बंद कर रखी है, उसे केवल सरकारी खबरें चाहिए इसलिए पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगी.

इतना ही नहीं, प्रेस सूचना कार्यालय द्वारा पत्रकारों के कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो रहा है. पत्रकारों ने सभा के अंत में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें इस लड़ाई को अंजाम देने तक लड़ने की सबसे अपील की.

पत्रकारों का कहना था कि यह केवल संसद में प्रवेश की लड़ाई नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है क्योंकि बिना स्वतंत्र मीडिया के लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता.

पत्रकारों की मांग इस प्रकार है

  1. जिन पत्रकारों के पास स्थायी पास है उन्हें संसद परिसर तथा राज्यसभा और लोकसभा की पत्रकार दीर्घा में प्रवेश की अनुमति दी जाए ताकि वे पहले की तरह सदन की कार्यवाही नियमित रूप से कवर कर सकें

2. जुलाई में लोकसभा अध्यक्ष ने यह निर्णय लिया था कि स्थायी पास-धारकों को संसद कवर करने के लिए पत्रकार दीर्घा के पास पहले की तरह बनेंगे, उस फैसले को लागू किया जाय

3. संसद के सेंट्रल हॉल के पास बनने पर जो पाबंदी लगी है उसे हटाकर पहले की तरह नए पास बनाए जाएं. वरिष्ठ पत्रकारों की लंबी सेवाओं को देखते हुए इस सुविधा को बहाल किया जाए

4. दीर्घावधि समय तक संसद कवर करनेवाले पत्रकारों के विशेष स्थायी पास फिर से पहले की तरह बनें जो उनके पेशे की गरिमा और सम्मान के अनुरूप है, फिलहाल सरकार ने इसपर भी रोक लगा रखी है

5. जिन पत्रकारों के सत्र की पूरी अवधि के लिए जो पास बनते थे, उन्हें पहले की तरह पास बनाए जाएं ताकि वे सदन की कार्यवाही कवर कर सकें

क्योंकि सरकार द्वारा पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगाने से उनकी नौकरी और सेवा पर भी असर पड़ा है जिससे उन्हें छंटनी का भी सामना करना पड़ा है

6. दोनों सदनों की प्रेस सलाहकार समितियों का नए सिरे से गठन हो क्योंकि दो साल के बाद भी उनका गठन नहीं हुआ

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