AFSPA: इस कानून को हटाने के लिए नागालैंड विधानसभा में प्रस्ताव पारित

पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर में काफी लंबे वर्षों से लागू किये गये सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को सदैव निरस्त

किए जाने की मांग स्थानीय लोगों के द्वारा की जाती रही है. हालांकि केंद्र सरकार ने सदैव इस मांग को ख़ारिज किया है.

नागालैंड विधान सभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया है जिसमें भारत सरकार से अनुरोध किया गया है कि

पूर्वोत्तर विशेष करके नागालैंड में लागू एएफएसपीए को निरस्त किया जाए तथा भारत- नागालैंड राजनीतिक संवाद के वार्ताकारों के बीच यह सहमति बनाई जाए कि यहां तनाव ग्रस्त क्षेत्रों में शांति की बहाली कैसे की जाए.?

आपको बता दें कि इस कानून को अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है जिसके बाद सेना को अतिरिक्त शक्तियां मिल जाती हैं कि वह किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी और नजर बंदी कर सकता है.

हालांकि इस कानून को जब से लागू किया गया है तब से सेना पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं कि उसने जांच, शांति स्थापित करने की बहाली को लेकर आम नागरिकों पर अत्याचार ही किए हैं.

बीते 6 दिसम्बर, 2021 को सुरक्षाबलों द्वारा 14 आम नागरिकों की हत्या के बाद से ही लोगों में आक्रोश था कि इस कानून को हटाया जाए.

सदन ने यह भी कहा कि जो भी प्राधिकारी इस तरह के हत्याकांड में लिप्त थे वे हिंसा से पीड़ित लोगों से माफी मांगे तथा ऐसे लोगों को न्याय की सुविधा तत्काल मुहैया कराया जाए.

नागालैंड विधानसभा ने मोन जिले के लोगों, सिविल सोसाइटी, राज्य की जनता और सामाजिक संगठनों से अनुरोध किया है कि अशांत क्षेत्रों में शांति बहाली के लिए राज्य सरकार के साथ सहयोग करें.

क्या है AFSPA कानून?

यह कानून आजादी से पहले का है जिसे अंग्रेजों ने 1942 में लागू किया था किंतु आजादी के बाद भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जारी रखा.

1958 में एक अध्यादेश पारित करके यह बताया गया कि पंजाब, जम्मू कश्मीर में बढ़ती हिंसक घटनाओं के कारण इसे लागू किया गया है.

हालांकि सबसे पहले इसे पंजाब से ही हटाया गया, इसके अतिरिक्त त्रिपुरा और मेघालय से भी इसे हटा दिया गया है.

किंतु वर्तमान समय में मिजोरम, मणिपुर, असम, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल और नागालैंड के कुछ क्षेत्रों में अभी भी लागू है.

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