कहानी TATA की नहीं, ना ही किसी BIRLA या BAJAJ की. कहानी है BATA की, हर भारतीय को लगता है BATA भारतीय कंपनी है. लेकिन कभी एहसास ही नहीं हुआ BATA विदेशी कंपनी है और इस भव्य कंपनी की स्थापना चमार जाति के TOMAS BATA ने 1894 में की थी.
हैरान परेशान होने की जरूरत नहीं है. BATA परिवार चमार जाति से हैं. BATA परिवार 8 पीढ़ियों से जूते चप्पल और चमड़े बनाने के कारोबार से जुड़ा है. यानी BATA परिवार 300 वर्ष से महान और पवित्र कार्य चमड़ों के उत्पादन से जुड़े हैं.
TOMAS BATA का जन्म 1876 में CZECHOSLOVAKIA के एक छोटे शहर ZLIN में हुआ. पूरा परिवार मोची के कार्य से जुड़ा था. इस छोटे से शहर में BATA परिवार के अलावा बेहतरीन जूते, चप्पल कोई नही बना सकता था. चमड़े के कार्य में BATA परिवार का मान सम्मान था.
CZECHOSLOVAKIA देश में चर्मकार को नीच या अछूत नहीं समझा जाता, उन्हें समाज में बराबरी का मान सम्मान था बल्कि यूरोप, अमेरिका में किसी भी श्रम उत्पादन कार्य जुड़े लोगों का पुजारी वर्ग से अधिक मान सम्मान है. घोड़ी पर चढ़ने और मूंछ रखने पर वहां हत्या नहीं होती.
बराबरी के महान समाज में TOMAS BATA ने भी अपने परिवार का पेशा अपनाया और मोची बन गए. TOMAS बेहद सस्ते और अच्छे गुणवत्ता के जूते-चप्पल बनाकर बेचते. बिक्री ज्यादा होती पर मुनाफा कम होता.
TOMAS BATA ने जूते, चप्पल निर्माण की कंपनी खोलनी चाहिए. कंपनी खोलने में आर्थिक सहायता का काम उनकी माँ ने किया और भाई बहन उनके सहयोगी बने.
अपने घर के एक कमरे में 1894 में BATA कंपनी की नींव डाली. अच्छे गुणवत्ता के जूते सस्ते दामों में बेचने के कारण TOMAS BATA को नुकसान हुआ. कंपनी चलाने का गुण सीखने के लिए लंदन में एक जूते की फैक्टरी में मजदूर बनकर काम किया.
मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी, प्रोडक्शन, डिस्ट्रीब्यूशन और विज्ञापन का गुण सीखकर उन्होंने दुबारा अपने देश आकर BATA कंपनी में जान फूंक दी. अच्छे गुणवत्ता के जूते चप्पल सस्ते दामों में बेचना जारी रखा. ज्यादा सेल होने के कारण कंपनी को मुनाफा हुआ.
उस वक़्त अच्छे गुणवत्ता के वस्तुओं का अर्थ था महंगे दामों में बिकने वाली वस्तु जो केवल अमीर आदमी खरीद सकते थे. चमार जाति के काबिल उद्योगपति TOMAS BATA ने इस धारणा को ध्वस्त कर नई धारणा गढ़ी, अच्छे और बेहतरीन गुणवत्ता की वस्तुएं भी सस्ते दामों में मिल सकती है और BATA के जूते चप्पल इनमें से एक थे.
आज से 100 साल पहले तक जूते हो या चप्पल इसे अमीरों की पहनने वाली वस्तु समझा जाता था. गरीब तो नंगे पांव ट्रैन में सफर कर बम्बई, कलकत्ता में मजदूरी करने आते थे.
TOMAS BATA का सपना है अमीर हो या गरीब BATA के जूते हर पैर में होने चाहिए. पूरे भारत में फैल कर कंपनी ने अफ्रीका में भी अपना विस्तार किया जहां कई कंपनियां जाने से इसलिए कतराती थीं कि गरीब अफ्रीकी जिनके पास खाने को नहीं है वे जूते, चप्पल कहां से खरीदेंगे ?
लेकिन TOMAS BATA ने अफ्रीका महाद्वीप के पूरे देश में सस्ते दामों में जूते चप्पल बेचकर हर गरीब के पांव में जूते, चप्पल पहना दिया.
1932 में TOMAS BATA की हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उनके निधन के बाद उनके भाई और उनके पुत्र ने BATA कंपनी को हर देश में सबकी पसंदीदा कंपनी बना दिया.
BATA केवल जूते-चप्पल का ब्रांड नहीं, भरोसे का भी ब्रांड है. चर्मकार TOMAS BATA ने कहा था मुनाफे के साथ वो उपभोक्ताओं का भरोसा भी कमाना चाहते हैं. BATA आज भी भरोसे का नाम है.
अंतिम पंक्ति: TOMAS BATA का जन्म अगर भारत में हुआ होता तो यहां भेदभाव करने वाला धर्म, जातीय वर्ण व्यवस्था वाला समाज TOMAS BATA को उद्योगपति नहीं केवल मोची बने रहने का अधिकार देता.