(सईद आलम खान की कलम से)
पत्रकारिता जगत को देश में चौथा स्तंभ स्वीकार किया गया है जिसका मूल कारण यह है कि यह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका
जो हमारे देश को संचालन करने उसके लिए बनाई गई नीतियों, उनका क्रियान्वयन आदि को लेकर टिप्पणी करने के साथ ही जनता और सरकार के बीच एक पुल का काम करता है.
एक तरफ जहां पत्रकार सरकार की बनाई गई योजनाओं, परियोजनाओं, लागू की गई नीतियों आदि को जनता तक पहुंचाने का कार्य करता है.
वहीं योजनाओं का कितना कल्याणकारी प्रभाव जनता पर पड़ रहा है, इसकी भी पड़ताल करके प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से एक दूसरे को बताया और दिखाया जाता है.
आज 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाते हैं जिसके उपलक्ष में अनेक तरह के गोष्ठियों का आयोजन भी किए जाते हैं.
खींचो ना कमानो को न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो॥
आप सभी पत्रकार साथियों को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं… #hindijournalismday pic.twitter.com/iMo24oObUc— Ramsevak suryawanshi (@Ramsevak9826) May 30, 2022
हिंदी पत्रकारिता के उत्थान की दिशा में समर्पित लोगों के लिए निश्चित तौर पर यह एक महत्वपूर्ण दिन है.
आइए जानते हैं हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाने के पीछे क्या मूल वजह है?
आज ही के दिन 30 मई यानि 1826 को हिंदी भाषा का प्रथम समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड” प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था.
यह यानि दौर था जब भारत में उर्दू, अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी भाषा का प्रचार प्रसार तो हो रहा था.
किंतु हिंदी भाषा के पाठकों के लिए इस तरह का कोई समाचार पत्र नहीं था. कहने का अर्थ यह है कि हिंदी भाषा के उत्थान के लिए यह अपने आप में एक प्रयोग के समान था.
इस समाचार पत्र के संपादक और प्रकाशक एक ही व्यक्ति थे जिनका नाम पंडित जुगल किशोर शुक्ल था.
यह कानपुर के रहने वाले थे तथा पेशे से अधिवक्ता थे. उस समय भारत की राजधानी कोलकाता हुआ करती थी.
यहां शुक्ल जी ने भारतीयों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से आवाज उठाने का विचार किया जिसके प्रतिफल के रूप में उदंत मार्तंड की शुरुआत हुई.
हालांकि कुछ समय तक चलने के बाद आर्थिक तंगी की वजह से इस समाचार पत्र का प्रकाशन बंद करना पड़ा.
कोलकाता बांग्ला भाषा बहुल क्षेत्र है, ऐसे में यहां हिंदी पाठकों की संख्या का कम होना भी दूसरी वजह रही.
तीसरे कारण के रूप में अगर देखें तो इस समाचार पत्र को डाक के द्वारा भेजना पड़ता था जिससे यह महंगा होता था.
इसका खर्च निकालना भी मुश्किल होता जा रहा था. इस विषय को लेकर शुक्ल जी ने सरकार से अनुरोध भी किया था कि हिंदी पाठकों तक समाचार पत्र पहुंचाने के लिए डाक खर्च पर कुछ रियायत जारी करें.