एक तरफ ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के तहत पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की 75वीं हुई वर्षगांठ मना रहा है तो वहीं उत्तराखंड से
एक ऐसी भी खबर आ रही है जहां एक परिवार को और 38 साल पहले शहीद हुए सैनिक के अंतिम दर्शन और संस्कार करने का मौका मिल रहा है.
बता दें कि एक ऑपरेशन के दौरान सियाचिन की वर्षों तक कुछ सैनिकों कोई जान से हाथ धोना पड़ा था.
काफी खोजबीन करने के बावजूद जब सैनिक नहीं मिला तो सेना ने इसे शहीद मानते हुए इसकी खबर परिजनों को दिया.
किंतु आज उसी सैनिक का पार्थिव शरीर सेना को 38 वर्षों के बाद मिल गया है जिसे सेना उसके घर भेज रही है.
बता दें कि मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले रानीखेत तहसील के अंतर्गत जनता हाथीखुर गांव निवासी लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला 1971 में भर्ती हुए थे.
मई 1984 में लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के नेतृत्व में 19 जवानों का दल ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकला हुआ था जिसमें अपने साथियों के साथ हरबोला शहीद हो गए थे.
हालांकि ऑपरेशन मेघदूत में सेना ने 14 जवानों के शव रिकवर कर लिए थे किंतु 5 जवानों के शव नहीं मिल पा रहे थे, इसी में जवान हरबोला भी शामिल थे.
इस संबंध में सैनिक की बेटी कविता ने बताया है कि पिता की मौत के समय वह बहुत छोटी थी. उसे अपने पिता का चेहरा याद नहीं है.
आज जब उनका पार्थिव शरीर जब घर पहुंचेगा तभी वह अपने पिता का चेहरा देख सकेगी. शहीद जवान के अन्य परिजनों का कहना है कि
सियाचिन में पोस्टिंग के दौरान किए गए ऑपरेशन मेघदूत का हिस्सा थे जो बर्फीले तूफान में लापता हो गए.
सेना ने निर्णय लिया है कि शहीद जवान के अंतिम संस्कार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ रानी बाग स्थित चित्रशाला घाट पर किया जाएगा.
इस संबंध में एसडीएम मनीष कुमार सिंह और तहसीलदार संजय कुमार समेत प्रशासन की टीम रामपुर रोड डहरिया
स्थित सरस्वती विहार में उनके घर पहुंचकर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए परिजनों को हौसला दिया है.