जी हां, खबर आम है कि श्रीलंका से सबक लेते हुए, राज्यों को अपने मुफ्तखोरी की योजनाओं से बचने की सलाह, अफसरों ने प्रधानमंत्री को दी है.
पहला आश्चर्य यह कि महाबली को सलाह देने वाले अफसर पैदा हो गए और दूसरा आश्चर्य की हाई लेवल मीटिंग की सलाह लीक भी हो गयी.
सात सालों में देश का कर्ज 52 लाख करोड़ से बढ़कर 125 लाख करोड़ हो चुका है. इस दौर में शिक्षा, स्वास्थ्य, डीजल पेट्रोल,
बिजली, फर्टिलाइजर हर क्षेत्र की सब्सिडी खत्म है. जीएसटी का कलेक्शन हर माह रिकार्ड तोड़ रहा है तो कर्ज कैसे बढ़ा?
क्या स्कूटी, लैपटॉप, मोबाइल बाँटने से या मुफ्त राशन की योजना चलाने से? हिसाब लगाइए तभी वास्तविकता समझ आएगी.
अगर देखा जाए तो प्रत्येक राज्य की मुफ्तिया योजनाओं का खर्च इतने बरसों में 20 हजार करोड़ से अधिक नहीं होगा, यानि कि बस “एक” सेंट्रल विस्टा का बजट..
जी हां जनाब! गरीब मूलक योजनाएं कभी देश को बर्बाद नहीं करती क्योंकि गरीब पर हुए खर्च की पाई-पाई अंतड़ी फाड़कर सरकार के खजाने में कई गुना वापस जाती है, उससे वसूल की जाती है.
वह दो रुपये प्रोडक्शन कॉस्ट की बिजली आठ रुपये की खरीदता है. 35 रुपये का पेट्रोल 110 में खरीदता है.
वह शिक्षा, स्वास्थ्य अपने पैसे से खरीदता है, सड़क को टोल देकर बनवाता है. हर वह काम, जिसका पैसा सरकार टैक्स में पहले ही झटक चुकी है, उसका दोबारा पेमेंट करता है तो सरकार का पैसा कहां जाता है?
दरअसल अफसरों ने यह नहीं बताया कि 25 हजार करोड़ के हाइवे पर असल में दस हजार करोड़ ही लगते हैं तो ऐसे 100 प्रोजेक्ट से देश पर कर्ज बढ़ता है.
वह गैर जरूरी एयरपोर्ट, छटाँक भर दूरी की बुलेट ट्रेन, घाटे के शो पीस मेट्रो रेल औऱ गलत जगह पर बने पोर्ट से बढ़ता है. वह कमाई के स्रोत, भंगार के भाव बेचने से बढ़ता है.
मुकम्मल योजना के बगैर, चुनावी भीड़ से बोली लगवा, उनके बीच सवा लाख करोड़ की बोटी फेंकने से बढ़ता है.
कर्ज गरीबों को आटा देने से नहीं बढ़ता है साहब. अपने क्रोनीज को हर साल लाख, पचास हजार करोड़ का कर्ज माफ करने से बढ़ता है. दिन रात प्रचार रैलियों, चैनल पर पैसा फूंकने से बढ़ता है.
असल में कर्ज तो 400 करोड़ का रॉफेल जेट 1500 करोड़ में खरीदने से बढ़ता है.
तो देश भर की सारी सरकारों के सारी मुफ्तखोरी की योजनाओं को जोड़ दें,
तो इसका हिस्सा जीडीपी का 1% भी नहीं, वह आर्थिक संकट का सबब नहीं. तो जो खबर आप पढ़ रहे हैं, वह अफ़सरो ने सरकार को नहीं बताया, यह सरकार ने अफसरों औऱ पत्रकारों को बताया है.
जीएसटी बंटवारे की धूर्त नीति से राज्यों के पैसे पर बैठी केंद्र सरकार, अब उनके बकाया को खा जाने का प्रीटेक्स्ट बुन रही है. उनकी आर्थिक नीतियों पर आपत्तियों का बहाना ढूंढ रही है.
उस खबर को पढ़ते हुए आप समझ लें कि फ्रीबीज पाने का हक, बस उन्हें है जिसके पैसे से यह सरकार खड़ी है.
और जनता. ?? उसे तो नफरत मुफ्त बांटी जाएगी, बाकी सबके पैसे लगेंगे.
(मनीष सिंह)
(DISCLAIMER: यह लेखक के निजी विचार हैं जिनसे ‘आगाज़ भारत न्यूज़’ का कोई सरोकार नहीं हैं)