नेहरू जी की सरकार ने रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए आजीवन पेंशन का प्रावधान किया था.
किन्तु पेंशनधारी अटल जी के समर्थन में आए और अटल जी की सरकार ने पेंशन समाप्त कर दी.
अटल जी समझ गए थे कि यह पेंशनधारी जब नेहरू की कांग्रेस के ना हुए तो मेरे क्या होंगे, इसलिए अटल जी ने पेंशनधारियों को नमक हरामी की सजा दे दी.
अब पिछले 17 साल से पेंशनधारी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
नेहरू जी की सरकार में SC/ST को आरक्षण मिला और वीपी सिंह की सरकार में मण्डल कमीशन लागू हुआ.
दलित और पिछड़े समाज के लोग बड़ी तादाद में कांग्रेस और समाजवादियों को छोड़कर मोदी जी के साथ आ गए.
मोदी जी ने आरक्षण का झगड़ा ही ख़त्म करने की ठान ली, उन्होंने एक-एक करके सरकारी संस्थान बेच दिए.
2024 तक उम्मीद है कि देश के सभी सरकारी संस्थान बिक जाएँगे और आरक्षण पर होने वाली बहस हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी.
इंदिरा गांधी ने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके बैंककर्मियों को सरकारी नौकर बनाया, लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी पसंद नहीं आयी.
बैंककर्मियों ने पूरे ज़ोर शोर से हर-हर मोदी, घर-घर मोदी के नारे लगाए फिर उसके बाद मोदी जी सत्ता में आए और उन्होंने एक-एक करके बैंक ही समाप्त करने शुरू कर दिए.
ज़ब सरकारी बैंक ही नहीं बचेंगे तो एहसान भूलने वाले बैंककर्मी भी नहीं बचेंगे. मध्यम वर्ग ने जितनी तरक़्क़ी मनमोहन सरकार में की, उतनी इतिहास में कभी नहीं हुई.
इंजिनयरिंग, MBA आदि करते ही 30-40 हज़ार की नौकरी और फिर 1-2 साल में ही सैलरी एक लाख तक पहुँचना आम बात हो गयी.
करोड़ों परिवार ग़रीबी रेखा से ऊपर उठकर, उनकी सरकार में मध्यम वर्ग में आ गए. खाए पिये लोगों को यह तरक़्क़ी हज़म नहीं हुई
और इसी वर्ग ने मोदी-मोदी के नारे लगाकर मोदी जी के हाथ में अपनी क़िस्मत सोंप दी. पिछले सात साल से मोदी जी 18-18 घंटे काम करके मध्यम वर्ग को ख़त्म करने के लिए काम कर रहे हैं.
करोड़ों लोग वापस ग़रीबी रेखा में आ गए हैं, उम्मीद है 2024 तक बचे हुए लोग भी ग़रीबी रेखा के नीचे आ जाएँगे.
भाजपा ने हमेशा उन लोगों को सुधारने की कोशिश की है जो एहसान को भूल गए थे
लेकिन यह लोग अभी भी पूरी तरह से सुधर नहीं रहे हैं.
लगता है सम्पूर्ण सुधार के लिए मोदी जी के 1-2 और कार्यकाल की और ज़रूरत है ताकि जो कुछ भी कसर बाकि रह गई है उसकी चक्र वृद्धि ब्याज समेत अदाएगी हो जाये.
(DISCLAIMER: इस वायरल पोस्ट को सोशल मिडिया से लिया गया है)