शासकवर्ग के आपसी अंतर्विरोध से कभी-कभी ऐसा सच भी सामने आ जाता है जिससे इस वर्ग के निर्लज्ज, षड्यंत्रकारी व शैतानी चेहरे से नक़ाब उतर जाता है.
लम्बे समय से भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रही जेडीयू को अभी तक भाजपा के काले कारनामों से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि चुप रहने से ही उसे सत्ता की मलाई मिलती रह सकती थी.
लेकिन अब जब जेडीयू ने बिहार में सत्ता पाने के लिये दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया है तब वे भाजपा व एनडीए के ‘अच्छे दिन’ ‘राष्ट्रवाद’ व ‘जय जवान’ जैसे नारों की असलियत सामने लाने लगे हैं.
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मंत्री आलोक मेहता बोले-पुलवामा अटैक हुआ नहीं, कराया गया था: कहा-बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए हमला करवाया, अब कोई उपाय नहीं https://t.co/bgKpMobC2A pic.twitter.com/bnsWNNU7Fw
— JITENDRA SINGH (@imjitendrasingh) October 22, 2022
अब बिहार सरकार के मंत्री आलोक मेहता ने बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाते हुए यह कहा कि “पुलवामा अटैक हुआ नहीं था, कराया गया था, यह बीजेपी ने किया था.
उन्होंने कहा कि BJP को लेना-देना सिर्फ मंदिर और मस्जिद से है. जब देश मे बीजेपी की हालत सबसे खराब थी तो 2019 में उन्होंने पुलवामा पर अटैक करा दिया. इतना बड़ा हमला करा कर जिसमें कई सैनिकों की मृत्यु हो गई थी, बीजेपी ने चुनाव जीतने का प्रयास किया.”
जिस हैरतंगेज़ तरीक़े से तरह पुलवामा हमला हुआ था, जिस तरह से ऐन चुनाव से पहले यह हमला हुआ था, उसमें जितनी सुरक्षा चुकें नज़र आयीं थी, जिस तरह से इस हमले को चुनावों में भुनाया गया,
जिस तरह भाजपा नियंत्रित एनआईए द्वारा इस हमले की जाँच को गोल-मोल घुमाया था उससे खुले दिमाग़ से सोचने वालों के लिये पहले ही स्पष्ट था कि इस हमले को किसने करवाया होगा.
लेकिन अब भाजपा के पूर्व सहयोगी पार्टी के मन्त्री द्वारा किये गये इस रहस्योद्घाटन से इस हत्याकांड से रहा सहा पर्दा भी उठ गया.
देश के सैनिक, देश की प्रतिष्ठा, देशप्रेम, राष्ट्रवाद आदि इन सत्ताधारियों के लिये सत्ता प्राप्त करने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाली सीढ़ी से अधिक कुछ भी नहीं है.
इनका असली लक्ष्य सम्पत्ति जमा करने, सरकारी पदों पर बने रहने, अपने चहेते पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाना ही होता है.
उसके लिये इन्हें जो भी षड्यन्त्र करने पड़ें ये जरा भी संकोच नहीं करते हैं. पुलवामा में अपने ही देश के सैनिकों पर करवाया गया हमला इसका एक जीता जागता उदाहरण है.
क्या किसी पार्टी के राजनैतिक स्वार्थों के लिये मरवा दिये गये जवानों व उनके परिजनों को कभी न्याय मिल पायेगा? क्या देशवासियों के साथ धोखा करने की सजा इन शैतानों को कभी मिल पायेगी?
क्या ऐसे षड्यन्त्र फिर न हों इसकी कोई पुख़्ता व्यवस्था हो पायेगी? निजी स्वार्थों पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था में इसकी उम्मीद करना खुद को धोखे में रखने की अलावा कुछ भी नहीं है.
(DISCLAIMER-धर्मेंद्र आजाद के निजी विचार हैं ‘आगाज़ भारत न्यूज’ का इससे कोई सरोकार नहीं है)