‘छावला गैंगरेप केस’ में मौत की सजा पाए तीनों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

देश में निर्भया कांड के बाद ‘छावला गैंग रेप’ केस 2012 को दिल्ली का दूसरा जघन्यतम कांड कहा गया था. इस संपूर्ण केस में सुनवाई के बाद दोषियों को मौत की सजा दी गई थी.

इन तीनों ने फरवरी 2012 में 19 साल की महिला का अपहरण करने के बाद गैंग रेप करके बेरहमी से उसके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया था.

साल 2014 में दिल्ली की एक अदालत ने इस मामले को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ मानते हुए तीनों आरोपियों रवि, राहुल और विनोद को मौत की सजा सुनाई थी.

किंतु आज 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीनों को रिहा कर देने के कारण मामला गरमा गया है. मूलतः उत्तराखंड की रहने वाले महिला जो गुरुग्राम के साइबर सिटी में काम करती थी,

जब वह रात में काम करने के बाद कुतुब विहार अपने घर लौट रही थी तभी घर के पास एक कार में सवार पहले से घात लगाकर बैठे लोगों ने उसका अपहरण कर लिया.

जब बेटी घर पर नहीं लौटी तो मां-बाप ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. 3 दिनों की खोज के बाद हरियाणा के रेवाड़ी में महिला की लाश बरामद हुई.

जब महिला की ऑटोप्सी की गई तो उस पर किसी ठोस वस्तु से हमला करने तथा बदन में कांच की बोतलें घुसाने के साक्ष्य मिले.

यहां तक कि लड़की को सिगरेट से भी जलाया गया था, उसकी आंखों और चेहरे पर तेजाब उड़ेला गया था.

इस केस में पुलिस ने 3 आरोपियों रवि (23 वर्ष), राहुल (27 वर्ष), विनोद (23 वर्ष) को गिरफ्तार करके सजा दी गई थी.

छानबीन करने के बाद पुलिस ने बताया कि रवि ने महिला को प्रपोज किया था जिसको महिला द्वारा ठुकरा देने के बाद बदले की भावना से ऐसा निर्ममतापूर्ण अपराध किया गया.

दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2014 में इस केस को रेयर द रेयरेस्ट मानते हुए तीनों आरोपियों को किडनैपिंग, रेप और हत्या का दोषी करार देकर कहा कि

“तीनों आरोपी रहम के हकदार नहीं है. इन्हें उम्र कैद की सजा काफी नहीं है बल्कि इनको मौत की सजा मिलनी चाहिए.”

इसके साथ ही तत्कालीन एडिशनल जज वीरेंद्र भट ने प्रत्येक आरोपी पर 1.6 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था.

बाद में आरोपियों ने दया याचिका के आधार पर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया किंतु इसने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि

“यदि ऐसे अपराधियों को छोड़ा गया तो बलात्कारियों को इससे बढ़ावा मिलेगा तथा पीड़िताएं न्याय से वंचित हो जाएंगी.”

उसके पश्चात यह केस सुप्रीम कोर्ट में गया जिसकी सुनवाई जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रविंद्र भट्ट तथा जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने सुनवाई करते हुए 6 अप्रैल, 2022 तक फैसला सुरक्षित रख लिया.

आज यूयू ललित भारत के चीफ जस्टिस बन गए हैं जिन्होंने अपने आखिरी दिन की सेवा में छावला रेप केस में फैसला देते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया.

फिलहाल इस निर्णय पर मृतक महिला की मां ने रोते हुए कहा है कि 11 वर्षों के बाद मेरी बेटी के केस से जुड़ा फैसला आया है.

हम हार गए, अब मुझे जीने की कोई वजह नहीं दिखती है. मुझे लग रहा था कि मेरी बेटी को न्याय मिलेगा.

आपको यहां याद दिला दें कि गुजरात की बिलकिस बानो के केस में भी आरोपियों को छोड़े जाने के बाद जिस तरीके से उनका फूल-मालाओं से स्वागत किया गया था,

उसको देखकर बिलकिस ने कहा था कि मेरा न्याय से विश्वास उठ गया है. आखिर हमारी न्यायपालिका के निर्णय किधर जा रहे हैं? लोगों का विश्वास कैसे कायम हो यह अब एक पहेली बनती जा रही है.

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