21वीं सदी में देशवासियों को राशन कार्ड बाँटने पर एक समाजसेवी का व्यंग

21वीं सदी की तीसरी दहाई में हम राशन कार्ड बांट रहे हैं एवं उसके नए नियम बना रहे हैं क्या यही 75 साल की हमारी विकास यात्रा है?

मेरे सुझाव से इस समय मनुष्यता की रक्षा होनी चाहिए जिसके लिए ऐसा कदम बेहतर सिद्ध होगा- 1. समानता कायम करना: कृषि योग्य और बिना कृषि योग्य जमीन

समान रूप से लोगों में बाट दी जाय. जमीन बराबर बाटते ही बेरोजगारी की 80%समस्या समाप्त हो जाएगी. विषमता में डूबता भारत बच जाएगा, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों पर जीवन गुजार रहे लोगों को घर निर्माण के लिए जमीन मिल जाएगी.

2. जीवन एवं मानवता की रक्षा: जीएसटी अधिकतम 2-4-6-8-10-12 प्रतिशत करें. जीएसटी गरीबों के पेट की अंतड़ी निकाल रहा है.

जीएसटी समाप्त कर पूर्व की भांति एक्साइज एवं वैट लगा दिया जाए. जीएसटी पर सदन में बहस हो. आटा, गेहूं, चावल, दाल, तेल, नमक, चीनी,

दवा, हवा, पानी, लकड़ी, वन उत्पाद, फल, दूध, दही, घी, मट्ठा, मक्खन “जो जीवन है एवं “जिससे जीवन बचता” है.

“कयामत के दिन तक कोई टैक्स नहीं” का कानून बना दिया जाए ताकि भविष्य का कोई क्रूर शासक जीवन को छीनने वाला कानून न बना सके.

जब टैक्सेशन संसद का विषय है तब वित्त मंत्री ने क्यों और किस आधार पर जीएसटी परिषद की मीटिंग में नए सामान पर जीएसटी लगाने एवं जीएसटी की दर में वृद्धि का असंवैधानिक निर्णय लिया.?

कम से कम जीएसटी की 47वीं बैठक चंडीगढ़ में जिन नए सामानों पर जीएसटी लगाने एवं जीएसटी वृद्धि का निर्णय लिया गया है उसे तत्काल वापस लिया जाए.

3. टोल टैक्स: मैं किससे पूछूं कि इस देश में डेमोक्रेसी का क्या किया जा रहा है? किससे पूछ कर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर ने इतना हैवी टोल टैक्स इंपोज कर दिया?

जब एक भारवाही ट्रक पर ₹900 तक टोल टैक्स (लूट टैक्स) ले लीजिएगा तब महंगाई को कौन नियंत्रित करेगा? किस फार्मूले से महंगाई नियंत्रित होगी?

इतना टोल टैक्स लगाने की जरूरत क्या है? हमारे पास रोजगार नहीं है. हम गरीब हैं, हम रोज करके, रोज खाते हैं.

हमने आपसे अमेरिका की तरह एक्सप्रेस वे की मांग कभी नहीं की हमें भी जीने दीजिए और हिंदुस्तान को आबाद रहने दीजिए.

फोरलेन, सिक्सलेन, एक्सप्रेस वे तो रह जाएंगी लेकिन मनुष्यता मर जाएगी. मनुष्यता कराह रही है मरती जा रही है.

देश के अर्थशास्त्री एवं आर्थिक सलाहकार कहां हैं? टोल टैक्स थिअरी यह है कि टोल हमेशा “रिड्यूजिंग रेट में लगता है” टोल टैक्स बीच में बढ़ाया ही नहीं जा सकता.

यह हमेशा घटते क्रम में ही होगा और सामान्य तौर पर 10 वर्ष में एक सड़क की लागत निकल आती है और उसे टोल फ्री कर दिया जाता है.

टोल टैक्स अवैज्ञानिक और अलोकतांत्रिक लूटतंत्र का नमूना हो गया है. टोल टैक्स पर कोई कानून ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर द्वारा रतन के बाहर सड़क पर बनाना असंवैधानिक है.

टोल टैक्स कानून पर सदन में बहस कराया जाए, सामान ढोने वाले ट्रकों पर जीएसटी अधिकतम ₹1 प्रति किलोमीटर कर दिया जाए.

निजी गाड़ियों पर टोल टैक्स क्यों लेते है? थोड़ी सी भी शर्म है जब आप हमारे वोट से माननीय बनकर अपनी गाड़ियों पर टोल टैक्स नहीं देते.

इसके साथ ही देश के 38 VIP टोल टैक्स नहीं देते फिर लोगों से टोल टैक्स क्यों लिया जाता है? यह तो ऐसा कानून है जैसे हैंडपाइप हमारा हो और हमें ही उससे पानी लेने पर टैक्स लगा दिया जाए.

जमीन हमारी, पैसा हमारा, श्रम करके सड़कें हमने बनाई, हमने आपको वोट देकर माननीय बनाया फिर हमारी गाड़ियों पर टोल टैक्स क्यों लेते हैं.?

क्या ऐसा करना अनुशासित एवं नैतिक है? वैसे भी निजी गाड़ियों पर टोल टैक्स हमारी समानता, स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है, असंवैधानिक है.

4. वीआईपी आधार पर डिस्क्रिमिनेशन का उल्लेख समानता के मौलिक अधिकार में नहीं है. इसी प्रकार जब टोल टैक्स रूपी बेड़ी

हमारे पैरों में डाल देंगे तब हम “कहीं भी आने-जाने के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार” का उपयोग कैसे कर पाएंगे?

निजी गाड़ियों पर टोल टैक्स कहीं भी आने-जाने की हमारी स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है, इसलिए इसे समाप्त कर दिया जाए.

प्रधानमंत्री जी कुछ दिन के लिए एक्सप्रेस वे एवं इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण को रोकिये या निर्माण की गति धीमी करके जीवन के लिए जरूरी शिक्षा, चिकित्सा एवं संचार पर फोकस कीजिए.

5. देश में शराब बिक्री बंद किया जाए: यह बुद्ध, कबीर, रहीम, नानक, विवेकानंद, गांधी का देश है यहां 50% महिलाएं रहती हैं.

बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ आपका निजी स्लोगन है. जब आप विदेशी मदिरा की मॉडल् शॉप सड़कों के किनारे खोलकर सरकारी दुकानों में शराब बेचिएगा तब आपके उक्त स्लोगन का क्या होगा?

नारी बलात्कार एवं हिंसा कैसे रुकेगी? शराब बेचकर देश को धनी एवं सशक्त बनाने का विचार को मैं क्या कहूं?

पुरानी पैसेंजर गाड़ियां, पुरानी मेल गाड़ियां, पुराने किराए पर चला दी जाय. आपने भारत की स्थानीय अर्थव्यवस्था एवं लोगों का संचार ही छीन लिया.

बुलेट एवं वंदे भारत चलाइये परंतु पुरानी पैसेंजर गाड़ियों एवं मेल गाड़ियों के बंद कीमत पर नहीं. “जन संचार साधन” को कमाई का साधन” बनाना असंवैधानिक है.

शिक्षा, स्वास्थ्य, निःशुल्क करिए क्योंकि यह जीवन की जरूरत है. ये छोटे-छोटे उपाय हैं जिसके द्वारा मनुष्यता की रक्षा की जा सकती है.

(DISCLAIMER: यह सब संपूर्णानंद मल्ल के निजी विचार हैं AGAZ BHARAT NEWS का इससे कोई सरोकार नहीं है) 

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