गोरखपुर: क्षेत्र खोराबार अंतर्गत ग्राम सभा डांगीपार में चौताल, डेढ़ताल, बैसवाड़ा व उलारा की खूब बही बयार जिसमें गांव के ही लोक गायकों ने ढोल, झाल पर गाया.
इन सभी होली गीतों को सूरजतारा प्रोडक्शन के बैनर तले लाइव रिकॉर्ड किया गया जिसे जल्द ही इस यूट्यूब चैनल पर इन सभी गीतों को सुनने और देखने को मिलेगा.
कार्यक्रम की शुरुआत परंपरागत तरीके से सुमरनी से हुआ जिसमें बाबा गोरखनाथ की महिमा पर आधारित चौताल “हम सुमिरत गोरखनाथ हरो दुख भारी…” लोक गायक जगदीश सिंह पटेल द्वारा गाया गया.
उसके बाद डेढ़ताल “रंगवां देबें असों के फगुनवां मां, आजादी के रंगवां में प्यारी चुनरिया तुम्हारी..” सखि बोलत काग अंगनवां हमारे आवत प्रितम प्यारे,
ऋषिराज सिंह ने बैसवाड़ा “हरी के शिया सुंदर नारी…पनियां भरन मति जाओ, जुलुम डंका न बजाओ…..बहे पुरवइया हवइया समइया हे बादल की,
गोरी दरवजवा ठाढ़ लहरले काजर जी…,अर्जुन सिंह ने चौताल झूमर “केवट तो मानत नाहीं खड़े हैं दोऊ भाई…” आदि परंपरागत होली गीतों को गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया.
वैसे दिन-प्रतिदिन आधुनिकता की चकाचौंध में जो पुराने लोक परंपरागत होली गीत हैं जैसे चौताल, डेढ़ताल, बैसवाड़ा, झूमर उलारा आदि हैं.
जैसे-जैसे पुराने लोग खत्म होते जा रहे हैं वैसे-वैसे ही उनकी विरासत को संभालने वाला इस नई पीढ़ी में कोई तैयार नहीं है जिससे ओ सारी विधाएं धीरे धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं.
ऐसे में इस समय जो भी लोग उन विरासतों को संभालते हुए इन सभी गीतों को गा रहे हैं तो वे बधाई के पात्र हैं अन्यथा जल्द ही इन परंपरागत होली गीतों पर विराम लग जाएगा.
आजकल के युवा नये-नये धुनों पर होली गीतों को गा रहे हैं और परंपरागत गीतों को छोड़ते जा रहे हैं जबकि पहले के होली गीतों में मिठास, उल्लास व प्यार हुआ करता था.
होली के पंद्रह बीस दिन पहले से ही गांव में हर दिन किसी न किसी के घर होली हुआ करता था जिनमें प्रमुख वाद्य यंत्रों में टिमकी, नगाड़ा बजता था.
लेकिन आज के समय में ना तो टिमकी, नगाड़ा मिलता है और ना ही इसको बजाने वाले लोग मिल रहे हैं. टीमकी नगाड़ा ना मिलने
की वजह से सिर्फ ढोल, झाल, हारमोनियम पर यह गीत हुआ है नहीं तो होली गीतों का रस कुछ और नजर आता.
कार्यक्रम में कैमरामैन कृष्ण मुरारीलाल, ढोलक धरम, संगत झीनक सिंह, प्रदीप कुमार हारमोनियम अर्जुन सिंह व प्रदीप, निर्देशन प्रदीप जायसवाल, बेचन सिंह, सहयोग धर्मू, तारकेश्वर आदि मौजूद रहे.