पूर्वाञ्चल गांधी डॉ सम्पूर्णानन्द मल्ल ने नेताओं ‘विशेषकर’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशान साधते हुए कहा है कि सत्ता रूपी अलोकतांत्रिक भूख ने भारत को महंगाई की आग में झोंक दिया है.
आज लगभग 100 करोड़ गरीब पानी में तरकारी बनाकर, ‘रोटी’ को पानी में सानकर खाने के लिए विवश हैं. 23 करोड़ कुपोषित हैं, महंगाई “अपराध” का रूप ले चुकी है.
‘जीवन’ एवं ‘मनुष्यता’ निगल रही है. क्या 800 सांसद बहरे/गूंगे हैं? क्या किसी में ‘मनुष्ययता’ शेष नहीं? लोगों के पेट पर लात बजाकर संसद क्यों चलाई जा रही है?
इस संसद के प्रति मेरे भीतर उतना ही सम्मान है जितना भगत सिंह, अशफ़ाकउल्ला एवं गांधी में. इन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र लिखते हुए कहा कि
“महोदया”, मैंने बार-बार लिखा कुछ लोकतंत्र हमें कल के लिए भी रखना चाहिए, परंतु राष्ट्रपति भवन पत्रों का जवाब नहीं देता “कैसा लोकतंत्रात्मक गणतंत्र”? यह स्वेच्छाचारी “मनमानी” सत्ता है.
प्रश्न पूछना मेरा मौलिक अधिकार है और उत्तर देना आप का कर्तव्य. समान एवं फ्री “शिक्षा, चिकित्सा, रेल, संचार, कानून बनाएं.
“जीवन” जीने के लिए जितना जरूरी खाना, पानी, ऑक्सीजन है उतना ही जरूरी दवाई, पढ़ाई एवं संचार है. लगता ही नहीं कि इस देश में संविधान है.
एक तरफ गिनती के लोगों के लिए दून, ‘डीपीएस, मोंटेसरी पब्लिक स्कूल हैं तो दूसरी तरफ गरीब, निम्न मध्यमवर्गियों के परिषदीय प्राइमरी विद्यालय जहां “मिड डे मील” का सड़ा-गला खाना खिलाया जाता है.
एक तरफ मुट्ठी भर धनी लोगों का इलाज ‘मेदांता,’ अपोलो,’ ‘एम्स’, जसलोक एवं अन्य निजी हॉस्पिटल्स में होता है तो दूसरी तरफ 120 करोड़ गरीब एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के बीमार एक गोली के अभाव में मर जाते हैं.
आयुष्मान” का दुरुपयोग समाज के चोर ‘एवं ठग’ कर रहे हैं. थोड़े से लोग जहाज एवं ट्रेनों में प्रथम श्रेणी वातानुकूलित में यात्राएं करते हैं
दूसरी तरफ 95% लोगों की पैसेंजर गाड़ियां या तो बंद कर दी गई या किराए में 3 गुने से अधिक की वृद्धि कर दी गई है.
फ्री शिक्षा, चिकित्सा एवं रेल संचार लोगों का मौलिक अधिकार है, इसे मुफ़्त करें. आटा, चावल, गेहूं, दाल, तेल, चीनी, दवा, हवा, पानी “जीवन” है इस पर कर लगाने का अर्थ है “जीवन छीन लेना.
जीवन हमारा मौलिक अधिकार (आर्टि 21) है. जीवन पर “कर” जीवन संविधान का कत्ल है. देश के 142 करोड़ लोगों में किसने “जीवन”पर जीसटी की मांग किया.?
यदि नहीं की तो जीवन पर “सेवा एवं सामान कर”(GST) क्यों लगाया? जीवन पर जीएसटी “क्रिमिनल ऑफेंस”है, जीवन पर जीएसटी समाप्त कर दें.
जब राष्ट्रपति, सांसद, विधायक सहित 38 VIP की गाड़ियों पर टोल टैक्स नहीं लगता तो लोगों की गाड़ियों पर क्यों? ऐसा करना “राइट टू इक्वलिटी एवं राइट टू फ्रीडम” का वायोलेशन है.
जमीन लोगों की, टैक्स दिया लोगों ने, श्रम कर सड़क बनाई लोगों ने परंतु सड़कों पर डाका के अड्डे खोलकर कहीं आने-जाने पर टैक्स लगाया सत्ता ने.
क्या यही डेमोक्रेसी, इक्वलिटी और फ्रीडम” है? हमारे वोट से माननीय बनकर हमारी गाड़ियों पर टैक्स और अपनी गाड़ियां टैक्स फ्री?
545 एवं 242 सांसदों, चार हजार विधायकों और 142 करोड़ लोगों में से किसने टोल टैक्स मांगी? किसी ने नहीं, फिर मनमाने ढंग से टोल टैक्स क्यों लगाया? निजी गाड़ियों पर टोल टैक्स समाप्त कर दें.
जैसे अंग्रेज भू लगान (लैंड रिवेन्यू) लगाते थे ठीक उसी प्रकार हिंद के हिंदुस्तानी लुटेरे डीजल, “सीएनजी, “खाना बनाने के गैस सिलेंडर पर टेक्स लगाए हैं.
आज डीजल ₹50/ली, सीएनजी ₹62/ली, गैस रु500/ सिलेंडर एवं मारवाही ट्रकों पर 1रु/km/टोल, टोल टैक्स कर दें, महंगाई मर जाएगी.
भारत को विदेशी मदिरा बेचने का देश क्यों बनाया? आजादी “एवं शराबबंदी आंदोलन” साथ-साथ चल रहा था. आजादी के 75 वर्ष बितते-बितते हमने गांधी को इतना नीचे दफन कर दिया?
शराब के कारण दुर्घटना, मृत्यु, विकलांगता, गरीबी, नारी बलात्कार एवं हिंसा बढ़ी है. मदिरा की मॉडल शॉप को “मिल्क की मॉडल शॉप” में तब्दील कर दी जाए.
“महोदया” पहले भी लिख चुका हूं कि महंगाई के विरुद्ध संसद पर सत्याग्रह करूंगा परंतु “स्वेच्छाचारी” सत्ता मेरे हर निवेदन को कूड़े में फेंक देती है. पुनः निवेदन करता हूं कि जीवन, “समानता, “मानवता” की उक्त मांगें मान ली जाएं.