ये लो कर लो बात… अब विपक्ष वालों को ‘नमो भारत’ नाम पर भी आब्जेक्शन है. मोदी जी देश में परिवहन क्रांति ला रहे हैं-इन्होंने वह नहीं देखा.
मोदी जी दिल्ली से मेरठ करीब एक घंटे में पहुंचाने का जुगाड़ जमा रहे हैं, इन्होंने वह भी नहीं देखा. बुलेट ट्रेन से भी पहले मोदी जी सेमी हाई स्पीड ट्रेनों से दिल्ली को,
आस-पास के शहरों से जुड़वा रहे हैं, इन्होंने यह भी नहीं देखा. मोदी जी राजधानी के आस-पास वालों को ए.सी. वाली गाड़ियों की हवा खिलवाने जा रहे हैं, इन्होंने यह भी नहीं देखा.
और तो और, विपक्ष वालों ने तो यह भी नहीं देखा कि चुनाव के सीजन के बीचो-बीच मोदी जी, टैम निकाल कर कुल सत्रह किलोमीटर की दूरी तय करने वाली आरआरटीएस बाकायदा पटरी पर चलवा कर दिखा रहे हैं.
फिर विपक्ष वालों ने क्या देखा?
विपक्ष वालों ने देखा तो सिर्फ एक और नामांतरण कि मोदी जी की सरकार ने एक और नाम बदल दिया. ट्रेन चालू होने से दो दिन पहले तक नाम रैपिडेक्स था,
मोदी जी के उद्घाटन करने से सिर्फ एक दिन पहले बदलकर ‘‘नमो भारत’’ कर दिया. जैसे नाम में ही सब कुछ रखा हो, नयी ट्रेन में नहीं.
बेचारे शेक्सपियर समझा-समझा के मर गए कि नाम में कुछ नहीं धरा है पर इन विपक्ष वालों ने पढ़ा भी होगा, तो गुनाह बिल्कुल नहीं है.
वर्ना नाम की ऐसे रट नहीं लगाते, जैसे सब कुछ नाम में ही धरा हो. मान लीजिए कि सब कुछ नाम में ही धरा है तब भी विपक्ष वालों को ‘‘नमो भारत’’ पर ही ऐसी क्या आपत्ति है?
बल्कि विपक्ष वालों से पहले तो यह पूछा जाना चाहिए कि ‘‘रैपिडेक्स’’ नाम से ही उन्हें ऐसी क्या मोहब्बत है? आखिर, जब तक बदलकर नाम ‘‘नमो भारत’’ नहीं किया गया था,
तब तक तो रैपिडेक्स ही था तो विपक्ष वाले खुलकर कहें कि उन्हें रैपिडेक्स नाम ही चाहिए. लेकिन क्यों? क्या वह नाम अंगरेजी के जैसा नहीं लगता है?
सिर्फ इसलिए कि मोदी जी के नाम का भी संक्षिप्त रूप नमो बनता है और यह नमो नये नाम में आगे-आगे है. विपक्ष वाले चाहते हैं कि देश एक विदेशी जैैसे लगने वाले नाम से ही चिपका रहे.
बताइए, मोदी से नफरत करते-करते ये विरोधी तो, स्वदेशी नाम से भी नफरत और विदेशी नाम से प्यार करने लगे. संघ वाले गलत नहीं कहते हैं, मोदी से नफरत तो बहाना है,
असल में इन्हें हर स्वदेशी चीज से नफरत दिखाना है- स्वदेशी संस्कृति, स्वदेशी भाषा, स्वदेशी धर्म, स्वदेशी राजा और स्वदेशी नाम.
पर सत्तर साल परदेशी प्रेम चला तो चला, अब और नहीं. अमृतकाल में तो किसी भी तरह नहीं. गाड़ी-वाड़ी में चले तो चले, पर उसके नाम में विदेश निर्भरता अब भारत हर्गिज बर्दाश्त नहीं करेगा.
पल भर बर्दाश्त नहीं करेगा, नाम में अब पूर्ण-आत्मनिर्भरता से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा. विरोध करने वाले मोदी के नाम का विरोध करने का कितना ही दिखावा कर लें,
इस सचाई को छुपा नहीं सकते हैं कि वे जिस नाम का विरोध कर रहे हैं, उसमें अगर मोदी का नाम है, तो उसके साथ ही भारत का नाम भी तो है.
जी हां, इंडिया नहीं, भारत ये मोदी के नाम का नहीं, भारत के नाम का विरोध कर रहे हैं. नहीं, ये भारत के साथ इंडिया का भी नाम में प्रयोग किए जाने या इंडिया दैट इज़ भारत ही रखे जाने की मांग भी नहीं कर रहे हैं.
ये तो भारत और इंडिया, दोनों का ही, देश के नाम का ही विरोध कर रहे हैं. मोदी जी क्या इन्हें यूं ही एंटीनेशनल कहते हैं? बताइए, भारत की रेल है.
भारत द्वारा रेल है, भारत के लिए रेल है लेकिन उसके नाम में भारत का नाम नहीं आ सकता! अब भारत का नाम भारत की नयी रेल में नहीं आएगा, तो क्या पाकिस्तान की रेल में आएगा?
कहीं भारत की नयी रेल में ये विपक्षी पाकिस्तान के नाम की उम्मीद तो नहीं कर रहे थे! मोदी जी की सरकार को ऐसी एंटीनेशनल उम्मीदों पर पानी फेरने में तो खासतौर पर मजा आता है
प्लीज कोई ‘‘नमो भारत’’ के बीच, इसका बखेड़ा खड़ा करने की कोशिश नहीं करे कि इसमें भारत तो पीछे है, नमो ही आगे है.
पर इसमें गलत क्या है? इंजन तो गाड़ी के आगे ही लगता है और यह तो विपक्षी भी मानेंगे कि साढ़े नौ साल से देश की गाड़ी को तो इंजन बनकर मोदी जी ही खींच रहे हैं.
अब नयी गाड़ी के नाम में इस यथार्थ का प्रतिबिंबन हो रहा है तो उसका स्वागत होना चाहिए या उसमें मीन-मेख निकाली जानी चाहिए.
जैसे गाड़ी को इंजन का, वैसे ही भारत को नमो का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसे नाम में जगह दी गयी है. वर्ना मोदी जी ने जिस नयी रेल का उद्घाटन किया,
उसका नाम सिर्फ नमो ही कर दिया जाता, तो कौन रोक लेता? पर नहीं, मोदी जी ने बड़े दूर की सोच कर, साथ में नाम में भारत रखवाया.
खुदा-न-खास्ता कभी कोई और राज आ जाए और वह भी नाम बदलने पर उतर आए, तो कम से कम भारत का नाम हटाने की जुर्रत नहीं करेगा.
नमो इसलिए भी आगे रखा गया है कि नाम बदलने वालों का ध्यान नमो पर ही जाए और नमो हटे भी तो भी, कम से कम भारत सुरक्षित रह जाए!
मोदी जी खुद को ऐसे ही इंडिया सॉरी भारत फर्स्ट वाला थोड़े ही कहते हैं. खैर, ‘‘नमो भारत’’ में डबल एडवांटेज है, भारत का भारत तो खैर है ही.
इसके साथ ही, गुजरात के नरेंद्र मोदी स्टेडियम के नामांतरण से राष्ट्रीय एकीकरण की जो शुरूआत हुई थी और जिसे इस बीच दूसरी कई चीजों के नाम नमो रखे जाने ने आगे बढ़ाया था, उसे अब एक नयी गति मिलेगी.
आखिर, एक देश, एक भाषा, एक विधान, एक निशान, एक धर्म आदि से शुरू कर के देश में अब तक क्या कुछ एक नहीं किया जा चुका है.
-एक पहनावा, एक आहार, एक परिवार से, एक टैक्स तक, एक राशन कार्ड, एक वोटर कार्ड से लेकर, एक चुनाव तक की तैयारियां जारी हैं सो ऊपर से.
राशन के थैलों पर तस्वीर तक एक हो चुकी है तब रेल, तेल, खेल, जेल, ठेल, सब पर एक ही नाम क्यों नहीं हो? नमो; बस एक नाम, अब दूसरे किसी का क्या काम!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)