अमेरिका को वर्ष २०५० तक पीछे छोड़ देगी भारतीय अर्थव्यवस्था

 

BY-THE FIRE TEAM

अंतरराष्ट्रीय थिंकटैंक लोवी इंस्टीट्यूट की एक स्टडी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि जिस रफ़्तार से भारतीय अर्थव्वस्था बढ़ रही है उसके कारण वह साल 2050 तक अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगी.

आपको बता दें कि अब दुनिया की आर्थिक और सामरिक ताकत अपना रुख पूरब की ओर कर चुकी है.

 वर्ष 2025 तक दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में होंगी और 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगी.

वैश्विक स्तर पर यह परिवर्तन एशियाई देशों की मजबूत होती स्थिति की वजह से अब ये देश अपनी अर्थव्वस्था को विकास शील से विकसित बनाने के लिये प्रयास का परिणाम है.

गौरतलब है कि अपनी घटती ताकत के बावजूद अपने राजनयिक और आर्थिक ताकत की वजह से अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव के मामले में अन्य देशों को पीछे छोड़ देता है.

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, इस स्टडी में अर्थव्यवस्था, सेना, राजनयिक और सांस्कृतिक प्रभाव आदि से जुड़े 114 सूचकांकों पर हर देश को मापा गया.

स्टडी में कहा गया है कि चीन के साथ जीडीपी में जो खाई बढ़ रही है उसे पूरा करना तो मुश्किल है लेकिन अगले 11 साल में ही भारत इस मामले में अमेरिका के बराबर पहुंच जाएगा और 2050 तक तो वह अमेरिका से भी आगे हो जाएगा.

इस स्टडी में उत्पादकता और आरऐंडी खर्च के मामले में भारत को काफी निचले पायदान पर रखा गया है. इसका संकेत यह है कि भारत अपने संसाधनों और मानव श्रम का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है.

यद्यपि अब भारत अपने मानवीय पूंजी को कौशल युक्त बनाने के लिए निरन्तर नई – नई योजनाएं चला रहा है है ताकि उसके नागरिक उत्पादकता को बढ़ाने में सफल हो सकें.

इस स्टडी में एशिया-प्रशांत में ताकतवर देशों की सूची में भारत को चौथे स्थान पर रखा गया है. अमेरिका, चीन और जापान इस मामले में क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर है.

रिपोर्ट में इस तथ्य का भी खुलासा हुआ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार साल 2016 में 8.7 लाख करोड़ डॉलर का था, लेकिन यह साल 2050 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए 44.1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा.

हालांकि, तब तक चीन की अर्थव्यवस्था 58.5 लाख करोड़ डॉलर और अमेरिका की अर्थव्यवस्था 34.1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगी.

वर्तमान समय में भारत के वित्तीय वर्ष २०१७-२०१८ में महँगाई काफी उच्च स्तर पर पहुँच चुकी है. खाद्य सामग्री हो या पेट्रोलियम पदार्थ अथवा अंतरास्ट्रीय जगत में रुपये के मूल्य में निरन्तर गिरावट आदि सोचनीय बिंदु हैं.

अब यह रिपोर्ट भारतीयों को कितना सुकून देगी यह तो आने वाला समय ही तय करेगा.

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