मोदी जी का तो खैर कहना ही क्या? चालू सदी में तो मोदी जी ही मोदी जी छाए हुए हैं। गांधी जी का हिसाब-किताब पिछली सदी में निपट लिया.
इस सदी में मोदी जी के आस-पास भी कोई नहीं है, न गांधी जी और न कोई और. चालू सदी के युगपुरुष तो सिर्फ और सिर्फ मोदी जी हैं.
2014 वाली आजादी की बात अगर बहस तलब मानकर छोड़ भी दें, तब भी अमृतकाल तो पक्के तौर पर मोदी जी ही लाए हैं.
माना कि वक्त किसी के लिए रुका नहीं रहता है, न गांधी जी के लिए और मोदी जी के लिए. मोदी जी के बिना भी 2021 के बाद, 2022 आता ही.
अंग्रेजों से आजादी का 75वां साल भी बीत ही जाता पर अमृतकाल आता क्या? अमृतकाल नहीं आता. अमृतकाल तो सिर्फ और सिर्फ मोदी जी लाए हैं, बिना अमृतकाल के देश कैसा लगता?
मृत्युकाल की अंधेरी सुरंग में चलता जाता, चलता जाता, बेसुध सिलक्यारा की सुरंग थोड़े ही थी कि रैट माइनर आकर निकाल लेते.
मृत्युकाल के अंधकार से अमृतकाल के प्रकाश की ओर तो देश को, बल्कि दुनिया को भी ले जाने के लिए मोदी जी की ही जरूरत थी.
धनखड़ जी ने कितने सुंदर तरीके से कहा है-मोदी जी ने हमें उस रास्ते पर ला दिया है, जहां हम हमेशा से पहुंचना चाहते थे, यही तो हैं युगपुरुष के लक्षण- नहीं क्या?
पर मोदी जी के विरोधियों को तो मोदी जी का विरोध करने का बहाना चाहिए. पड़ गए धनखड़ साहब के पीछे कि मोदी जी को गांधी जी के बराबर बता दिया.
गांधी जी को पिछली सदी का महापुरुष बताया तो बताया, पर मोदी जी को इस सदी का युगपुरुष बता दिया! पर यह गांधी जी को मोदी जी के बराबर बताने वाला इल्जाम निहायत बचकाना है.
धनखड़ साहब क्या मोदी जी को जानते नहीं हैं, जो उनकी किसी से भी बराबरी करेंगे, फिर चाहे गांधी जी से ही बराबरी क्यों नहीं हो?
गुजरी सदी का महापुरुष, चालू सदी के युगपुरुष से भला कैसे बराबरी कर सकता है? गुजरी सदी वाले का टैम कब का गुजर चुका है, उसकी मोदी से कैसी बराबरी, जिनका टैम इस टैम चल रहा है.
फिर बात सिर्फ इतनी ही थोड़े ही है- दोनों के पीछे पुरुष का पुछल्ला लगे होने से, महापुरुष और युगपुरुष बराबर थोड़े ही हो जाएंगे.
एक महा है, तो दूसरा तो युग है, पूरा का पूरा युग. माना कि धनखड़ साहब ने गांधी-गांधी करने वालों को थोड़ा कन्फ्यूज करने के लिए जान-बूझकर,
मोदी जी को युगपुरुष कहने के साथ, ‘चालू सदी का’ विशेषण जोड़ दिया है. विरोधी बराबरी पर ही अटके रहेंगे, जबकि मोदी जी युगपुरुष कहलवाकर निकल जाएंगे.
पर चालू सदी की बात, सिर्फ गुजरी सदी के महापुरुष से अलग करने के लिए है. वर्ना धनखड़ साहब क्या जानते नहीं हैं कि युग, युग होता है और सदी, सदी.
युग किसी एक सदी में नहीं समा सकता है, चाहे वह चालू सदी ही क्यों नहीं हो. गांधी जी शताब्दी पुरुष होंगे, पर युग पुरुष तो मोदी जी ही माने जाएंगे.
वैसे भी मोदी जी ने देश को उस रास्ते पर ला दिया, जिस पर हम हमेशा से, जी हां हमेशा से जाना चाहते थे! गांधी जी ने जो कुछ किया, उसमें कम-से-कम हमेशा से वाली बात तो नहीं ही थी.
गांधी जी तो अंगरेजों की गुलामी से आजादी पर ही अटके रहे, हजार-बारह सौ साल वाली गुलामी से आजादी दिलाने के लिए तो मोदी जी की ही जरूरत थी.
धनखड़ साहब की मेहरबानी है कि उन्होंने मोदी जी को युगपुरुष ही सही, पर पुरुष तो कहा। वर्ना सुनते हैं कि उन्हें तो रामलला से लेकर रामराज्य तक लाने का क्रेडिट मिलने लगा है.
पर भक्तों को इसका ज्यादा बुरा भी नहीं मानना चाहिए. आखिरकार, महाकवि बाल्मीकि ने तो बाकायदा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा था.
ओरीजिनल वाले पुरुषोत्तम कहलाने पर संतुष्ट हो सकते हैं, तो मोदी जी भी युगपुरुष कहलाने में गुजारा तो कर ही सकते हैं.
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)