पॉलिथीन बंद के विरुद्ध चला चेकिंग अभियान, छोटे दुकानदारों से वसूला भारी जुर्माना

लखनऊ: पॉलिथीन को हमारे प्रदेश और देश में प्रतिबंधित इसलिए किया गया है क्योंकि पॉलिथीन प्लास्टिक नाम के ऐसे पदार्थ से बनता है,

जिसका अपघटन शीघ्र नहीं हो पाता, इस पदार्थ को अपघटित होने में लाखों वर्ष का समय लगता है, प्लास्टिक पर्यावरण के अनुकूल भी नहीं है.

इसी के चलते राजधानी लखनऊ के लालबाग में नगर निगम की टीम ने पॉलिथीन चेकिंग अभियान के तहत धावा बोला, थोड़ी पॉलिथीन निकलने पर

छोटे दुकानदारों से भारी जुर्माना वसूला, 100 ग्राम पर एक हजार रुपए का जुर्माना वसूला, 2 किलो निकलने पर 5 हजार और 4 किलो निकलने पर 10 हजार का जुर्माना वसूला गया.

दुकानदारों का कहना है कि प्रदेश में रोजगार है नहीं, किसी तरह से घर परिवार का पेट पालने के लिए दिनभर दुकान में मेहनत करते हैं.

शाम को उतनी भी दुकानदारी नहीं होती कि घर की जरूरतें पूरी हो सके, ऐसे में अगर नगर निगम द्वारा हम गरीबों पर भारी जुर्माना लगाया जाता है तो हम अपने बीवी बच्चों का पेट कैसे पालेंगे?

अब सवाल यह उठता है कि जब पूरे देश और प्रदेश में पॉलिथीन पर प्रतिबंध है तो फिर ज्यादातर पॉलिथीन का इस्तीमाल क्यों हो रहा है?

क्या पॉलिथीन पूरी तरह से प्रतिबंध हो चुकी है? सरकार पॉलिथीन तो प्रतिबंध करना चाहती है लेकिन पॉलिथीन बनाने वाली कंपनी क्यों नहीं बंद करती?

छोटी दुकानों की पॉलिथीन पर प्रतिबंध है पर बड़ी चिप्स कंपनियां अपने प्रोडक्ट पॉलिथीन पाउच में दे तो उन पर कोई रोक नहीं ऐसा क्यों?

पॉलिथीन बंद करने के नाम पर चेकिंग अभियान अधिकारी दुकानदारों को पॉलिथीन चेक कर के परेशान कर रहे हैं क्या यह सही है या फिर सरकार को

पॉलिथीन बनाने वाली फैक्ट्री को ही क्यों न बंद कर देनी चाहिए? सरकार प्लास्टिक की थैलियों को बैन करने की बजाय प्लास्टिक की फैक्ट्री को बंद क्यों नहीं कर देती?

नगर निगम द्वारा ठेले और कुंचे वाले गरीब लोगों पर भारी जुर्माना लगाकर भारी धन तो वसूला जाता है लेकिन मेडिकल कॉलेज के बाहर बड़ी संख्या में मेडिकल स्टोर जैसी जगहों पर कोई कार्यवाही नहीं?

अयागंज जैसे बाजारों में थोक में पॉलिथीन धड़ल्ले से बिक रही है लेकिन छोटे दुकानदारों के पास मात्र थोड़ी से पॉलिथीन निकलने पर नगर निगम एक, पांच और 10 हजार रुपए वसूलती है.

काश कि हमारे समाज में सबको एक ही चश्मे से देखकर इंसाफ किया जाता, काश कि कानून का पालन कराने के साथ साथ इंसानियत भी जिंदा होती?

{साभार- लखनऊ संवादाता अब्दुल बासित राष्ट्रीय जजमेंट हिंदी दैनिक अख़बार}

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