Chhatisgarh: भई ये तो हद ही हो गयी हद से भी बद, एकदम सॉलिड बेइज्जती. बताइए, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार यानी नये प्रधानमंत्री, मोहम्मद यूनुस साहब ने हमारे मोदी जी को फोन कर के क्या किया?
अगले ने बांग्लादेश में हिंदुओं की और बाकी सब अल्पसंख्यकों की भी सुरक्षा का भरोसा दिलाया! किस की सुरक्षा का भरोसा दिलाया-अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का और भरोसा किस को दिलाया, हमारे यशस्वी PM नरेंद्र मोदी जी को.
अपनी ओर से खुद फोन कर के मोदी जी को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया! क्या समझे? इसे सिर्फ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भरोसा दिलाने का सीधा-सरल मामला समझने की गलती कोई नहीं करे.
यह तो सरासर हमारे प्रधानमंत्री जी की ट्रोलिंग का मामला है. बाकायदा तंजकशी की गयी है, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मुद्दे पर. ‘दुष्ट’ पड़ोसी हमारे यशस्वी जी को मुंह चिढ़ा रहा है?
इशारा यह है कि बांग्लादेश में हम तो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे, पर आप लोगों का क्या? क्या आप भी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने का ऐसा भरोसा दिलाते हैं, भरोसा दिला सकते हैं?
जुम्मा-जुम्मा दो दिन प्रधानमंत्री बने हुए नहीं, हमारे प्रधानमंत्री से बराबरी करने की जुर्रत हो गयी. कहां हमारे तीन-तीन बार के प्रधानमंत्री और वह भी चुने हुए और कहां आंधी के आमों
की तरह अचानक गोद में आ पड़े मौके वाला प्रधानमंत्री और वह भी टेंपरेरी, बिना चुना हुआ और जुर्रत बराबरी करने की -हम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भरोसा देते हैं, पर क्या तुम भी यही भरोसा दे सकते हो?
आखिरकार, उनके देश में काफी मार-काट तो हुई ही है और हो ही रही है. उस मार-काट के बीच, यहां-वहां अल्पसंख्यकों पर हमले भी हुए ही हैं.
पड़ोसी देश में उसी समुदाय की ज्यादा आबादी थी यानी जो वहां अल्पसंख्यक थे, वही पड़ोसी देश में बहुसंख्यक थे. पड़ोसी को चिंता हो ही सकती थी.
प्रधानमंत्री नया सही, टेंपरेरी सही, बिना चुना हुआ सही, उसने तो मंदिर में जाकर, अल्पसंख्यकों की हिफाजत का भरोसा दिला दिया ; क्या तुम मस्जिद में जाकर ऐसे ही भरोसा दिला सकते हो?
मोदी जी ने यूनुस साहब से इसका तकाजा किया था कि बांग्लादेश में हिंदुओं की हिफाजत की जाए. अगले ने भी तब यह नहीं कहा था कि अल्पसंख्यकों के बारे में पूछने वाले तुम कौन होते हो.?
हम तो पक्की दोस्ती के बाद भी अमेरिका तक से, संयुक्त राष्ट्र संघ तक से कह देते हैं, यह हमारा अंदरूनी मामला है. आप लोगों को न कुछ पता है, न कुछ समझ में आएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)