Gorakhpur: आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रेरणादायक, साहसी क्रांतिकारी, शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्मदिवस है. उनके जीवन, विचारधारा, और साहस ने न केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष को नया मोड़ दिया,
बल्कि भारत के भविष्य के लिए एक आदर्श समाज की नींव रखी. भगत सिंह का नाम क्रांति का पर्याय बन चुका है, और उनकी सोच, जिसने साम्प्रदायिकता, जातिवाद, साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ
आवाज बुलंद की, आज भी हमारे लिए उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है. उनका क्रांतिकारी सफर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” (HSRA) से जुड़ने के बाद शुरू हुआ.
इन्होनें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना. उनका उद्देश्य केवल अंग्रेजों से आजादी पाना नहीं था, बल्कि एक समतावादी और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना करना था,
जहां सभी को समान अधिकार मिलें और समाज में कोई भी आर्थिक या सामाजिक शोषण न हो. HSRA का नारा था “इंकलाब जिंदाबाद,” यह नारा उस समय युवाओं की जुबां पर चढ़ गया जो आज भी स्वतंत्रता, संघर्ष और न्याय के प्रतीक के रूप में जीवित है.
भगत सिंह की छवि को केवल बम-पिस्तौल तक सीमित करने का काम शोषक वर्ग द्वारा किया जाता रहा है, जबकि उन्होंने कहा था: “क्रांति से हमारा मतलब यह नहीं है कि बम और पिस्तौल चलाकर खून की नदियां बहाई जाएं.
क्रांति से हमारा अभिप्राय अन्याय पर आधारित व्यवस्था को उखाड़कर उसकी जगह एक नई व्यवस्था स्थापित करना है.” भगत सिंह के लिए क्रांति केवल हिंसक संघर्ष का नाम नहीं था;
यह सामाजिक ग़ैर बराबरी, और आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष का नाम था. उन्होंने जीवनभर जाति और धर्म के आधार पर समाज के विभाजन का दृढ़ विरोध किया.
साम्प्रदायिकता और जातिवाद को उन्होंने समाज की एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया. आज जब हम समाज में धर्म और जाति के नाम पर बढ़ते विवाद और विभाजन को देखते हैं तो भगत की ये बातें हमें गहरे सोचने पर मजबूर करती हैं.
भगत सिंह ने लिखा था: “मैं नास्तिक इसलिए हूं क्योंकि मैं खुद को विश्वास में नहीं बांध सकता। मेरा धर्म न्याय, समानता और तर्क है।” (संदर्भ: “मैं नास्तिक क्यों हूं”, 1930)
उनका यह दृष्टिकोण बताता है कि उन्होंने कभी धर्म को राजनीति में जगह नहीं दी और समाज में तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्व दिया.
वर्तमान समय में जब धार्मिक उन्माद और अंधविश्वास बढ़ रहे हैं, भगत सिंह की सोच हमें धर्मनिरपेक्षता और तर्क के महत्व की याद दिलाती है.
भगत सिंह पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के धुर विरोधी थे. उन्होंने आर्थिक शोषण और असमानता को समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना. उन्होंने लिखा: “जो भी समाज में शोषण और अन्याय का विरोध करता है, वह मेरा साथी है.”
23 मार्च, 1931 को जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई, तब भगत सिंह केवल 23 साल के थे, लेकिन इतने कम उम्र में उन्होंने जो विचारधारा और आंदोलन छोड़ा, वह आज भी जीवित है.
उनका जीवन हमें सिखाता है कि आजादी का मतलब केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है; इसका अर्थ है समाज के हर व्यक्ति को समान अधिकार, न्याय और स्वतंत्रता मिलना.