BY–THE FIRE TEAM
आधार पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने बहुमत से इतर अपने फैसले में कहा कि आधार योजना संवैधानिक खामियों से ग्रस्त है क्योंकि यह निजता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
उन्होंने कहा कि निजी कंपनियों द्वारा बिना सहमति के व्यक्तिगत सूचनाओं के इस्तेमाल से इसका कारोबारी मकसद से इस्तेमाल हो सकता है। उन्होंने आदेश दिया कि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा संग्रहित बायोमेट्रिक सूचना और आधार विवरण को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए और उन्हें या किसी अन्य को किसी भी उद्देश्य से सूचना का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
अपने अलग फैसले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सरकार को निर्देश दिया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत संग्रहित डाटा को एक साल तक नष्ट नहीं करना चाहिए या किसी अन्य उद्देश्य से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस दौरान सरकार को फैसले में परिभाषित सिद्धांतों के अनुरूप एक नया कानून बनाना चाहिए।
कुल 1448 पन्नों के फैसले के तहत उनके द्वारा लिखित 481 पन्नों के फैसले में कहा गया है कि एक साल बाद अगर सरकार नया कानून नहीं बनाती है तो डाटा को नष्ट करना होगा।
उन्होंने कहा कि आधार विधेयक को लोकसभा में धन विधेयक के रूप में पारित नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह संविधान के साथ धोखा के समान है और निरस्त किये जाने के लायक है।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपना फैसला अलग लिखा है जिसमें उन्होंने बहुमत से अलग अपने विचार व्यक्त किये हैं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी के बहुमत वाले फैसले को न्यायमूर्ति सीकरी ने पढ़ा।
न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि आधार कानून को पारित कराने के लिए राज्यसभा को दरकिनार करना एक प्रकार का धोखा है और इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन करने के लिये निरस्त कर दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक के लिए विशेष आधार हैं। आधार कानून उससे आगे चला गया। इस कानून को मौजूदा स्वरूप में संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने कहा कि महज कानून बना देने से केन्द्र की आधार योजना नहीं बच सकती है।
मोबाइल फोन के जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन जाने और उसे आधार से जोड़ने को निजता, स्वतंत्रता, स्वायत्तता के लिए गंभीर खतरा बताते हुए न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़़ ने मोबाइल सेवा प्रदाताओं से कहा कि वे ग्राहकों का आधार डाटा नष्ट कर दें।
उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई ने स्वीकार किया है कि वह महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र और जमा करता है और यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इन आंकड़ों का व्यक्ति की सहमति के बगैर कोई तीसरा पक्ष या निजी कंपनियां दुरूपयोग कर सकती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि आधार नहीं होने तक सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं देना नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि आधार योजना अपने अंदर की खामियों को दूर करने में असफल रही है। आंकड़ों की मजबूत सुरक्षा के लिए नियामक प्रणाली मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि नागरिकों के डाटा की रक्षा के लिये यूआईडीएआई की कोई सांस्थानिक जवाबदेही नहीं है।
(पीटीआई-भाषा)