स्पेशल रिपोर्ट: ई-कचरे की बढ़ती समस्या को क्या हम रोक पाएंगे?

BYTHE FIRE TEAM

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तैयार की गई एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट (e-waste) पुनर्चक्रण केंद्र (recyclers) कचरे का पुनर्चक्रण नहीं कर रहे हैं और कुछ तो खतरनाक परिस्थितियों में इसे संगृहीत कर रहे हैं, जबकि अन्य के पास इस तरह के कचरे का प्रबंधन करने की क्षमता भी नहीं है।

भारत में पुनर्चक्रण केंद्र 

  • भारत में अब तक 178 पंजीकृत ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण केंद्र हैं जिन्हें ई-कचरे को संसाधित करने के लिये राज्य सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • भारत एक साल में लगभग दो लाख टन ई-कचरे का उत्पादन करता है और इसकी अधिकांश मात्रा को अनौपचारिक क्षेत्र में संसाधित किया जाता है।

ई-कचरा प्रबंधन नियम 

  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अक्तूबर 2016 से प्रभाव में आया।
  • ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होंगे।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, न कि उसमें से कीमती धातुओं को निकालने के बाद।
  • इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 प्रभावी था।
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ई-कचरा प्रबंधन संशोधन नियम 

  • ई-कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्‍य 1 अक्‍तूबर, 2017 से प्रभावी माने जाएंगे। विभिन्‍न चरणों में ई-कचरे का संग्रहण लक्ष्‍य 2017-18 के दौरान उत्‍पन्‍न किये गए कचरे के वज़न का 10 फीसदी होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से बढ़ता जाएगा। वर्ष 2023 के बाद यह लक्ष्‍य कुल उत्‍पन्‍न कचरे का 70 फीसदी हो जाएगा।
  • यदि किसी उत्‍पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्‍पादों की औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे में नए ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण हेतु अलग लक्ष्‍य निर्धारित किये जाएंगे।
  • उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी।
  • हानिकारक पदार्थों से संबधित व्‍यवस्‍थाओं में आरओएच के तहत ऐसे उत्‍पादों की जाँच का खर्च सरकार वहन करेगी यदि उत्‍पाद आरओएच की व्‍यवस्‍थाओं के अनुरूप नहीं हुए तो उस हालत में जाँच का खर्च उत्‍पादक को वहन करना होगा।
  • उत्‍पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिये खुद को पंजीकृत कराने हेतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा।
  • 22 मार्च, 2018 को अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा नियमों के अनुपालन की जाँच

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को यह जाँचने के लिये अधिकार दिया जाता है कि रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) एजेंसियाँ नियमों का पालन कर रही हैं अथवा नहीं।
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पर्यावरण मंत्रालय द्वारा की गई जाँच

  • पर्यावरण मंत्रालय ने मई 2018 में 11 पंजीकृत केंद्रों और एक गैर-नियंत्रित पुनर्चक्रण केंद्र की जाँच की।
  • पर्यावरण मंत्रालय ने जिन पुनर्चक्रण केंद्रों की जाँच की वे कानपुर, ठाणे (मुंबई), वापी (गुजरात), कोलकाता, बंगलूरू और अलवर (राजस्थान) में स्थित हैं।
  • इन जाँचों के बाद मंत्रालय में अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि इन पुनर्चक्रण केंद्रों में कई तरह के उल्लंघन पाए गए जैसे- ई-कचरे का भंडारण, हैंडलिंग और प्रसंस्करण के गैर-पर्यावरणीय तरीके अपनाना और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों का पालन न करना आदि। इसके अलावा कुछ पुनर्चक्रण केंद्र ऐसे थे जो परिचालन में नहीं थे या ई-कचरे का प्रबंधन करने के लिये ये केंद्र पर्याप्त नहीं थे।

कचरा निपटान के लिये कोई निश्चित स्थान नहीं

  • पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कानपुर स्थित पुनर्चक्रण केंद्र खान ट्रेडर्स का भी निरीक्षण किया गया जिसे वार्षिक रूप से 7,190 टन ई-कचरा इकट्ठा करने, भंडारण करने, सभी विभिन्न प्रकार के कचरे को अलग करने और उसका निपटान करने के लिये अधिकृत किया गया है।
  • विभिन्न प्रकार के ई-कचरे में एयर कंडीशनर कंप्रेसर, टेलीविज़न सेट, कंप्यूटर और सर्किट बोर्ड आदि शामिल हैं। लेकिन जाँच में पाया गया गया कि यह कंपनी किसी भी प्रकार के ई-कचरे का पुनर्चक्रण नहीं करती है बल्कि केवल मैन्युअल रूप से उनमें उपस्थित घटकों को हटा देती है। इसके अलावा, यहाँ खतरनाक कचरे के निपटान के लिये कोई निश्चित स्थान नहीं है।

क्या है ई-कचरा? 

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण और टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
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स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव

  • ई-कचरे में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।

भले ही ई-कचरा प्रबंधन के संदर्भ में नियम लागू किये गए हैं लेकिन ये नियम केवल तभी सफल हो सकते हैं जब इन्हें सही ढंग से लागू किया जाए। लेकिन पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट को देखकर यही कहा जा सकता है कि नियमों को सही ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है।

Source-The Hindu

 

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