BY–RAVI CHAUHAN
काँग्रेस के प्रवक्ताओं और फेसबुक आर्मी को याद दिला दूँ। 1971 राजनीति समझौता बाबा साहब की बनाई हुई पार्टी आरपीआई (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया) और कोंग्रेस में राजनीतिक समझौता हुआ था।
पूना की सन्त गाडगे धर्मशाला के अंदर आरपीआई के दादा साहब गायकवाड़ ओर कोंग्रेस के मोहन धारियां के बीच राजनीतिक समझौता फाइनल हो रहा था। लोग खिड़की से उत्सुकता से झांक रहे थे।
इसे गांधी और आम्बेडकर के बीच ऐतिहासिक समझौते का नाम दिया गया। गठबंधन में तय हुआ कि 521 लोकसभा की सीटों में से 520 सीटों गांधी लडेगा और 1 सीट आम्बेडकर लडेगा।
इस अपमानजनक समझौते का दलितों के राजनीति पर दीर्घकालीन विपरीत परिणाम हुआ कोंग्रेस आरपीआई को जिंदा निगल गयी। बाबा साहब की बनाई पार्टी को कोंग्रेस ने अधमरा कर के छोड़ दिया।उसके बाद से वो कौमा में चली गयी।
इस समझौते पर कांशीराम ने कहा था, ‘मुझे यह समझौता अच्छा नहीं लगा ये बाबा साहब का अपमान था। लेकिन उस दिन मैंने ठाना की पहले कोंग्रेस को ठिकाने लगाना होगा। ओर उस मैंने तय किया कि इस अपमान को बदला भी हम जरूर लेंगे।
उसके बाद यूपी में मान्यवर कांशीराम के नेतृत्व में 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा-कोंग्रेस के बीच समझौता हुआ। उसमे तय हुआ कि 425 सीटो में से आम्बेडकर 300 लडेगा ओर 120 पर गांधी लडेगा। तब हमने बाबा साहब के अपमान का बदला लिया।
उस गठबंधन के बाद कोंग्रेस यूपी से ऐसी गयी जैसे “”गए गधे के सींग”” कोंग्रेस ने उसके बाद कभी बसपा से गठबंधन के लिये मुँह नही किया। यूपी से कोंग्रेस बिल्कुल खत्म हो गयी। ये कोंग्रेस के सवर्णो ब्राह्मणों को ये बात आजतक ये बात चुभती है।
बसपा ने 10 साल बिना शर्त के कोंग्रेस की सरकार केंद्र में चलवाई है।कई बार कोंग्रेस को राज्यसभा में भी mp चुनकर भेजने के लिये मदद की। उसके बाद भी दशकों राज करने वाली कोंग्रेस अकड़ कर खड़ी हुई है। गुजरात, हिमाचल, गोआ में सब कोंग्रेस का हाल देख चुके है।
खैर जनभावना है कि भाजपा के खात्मे के लिये देश की 2 बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को साथ आना चाहिये। लेकिन आरोप प्रत्यारोप लगाते रहिये मत करिये गठबंधन आपकी मर्जी। अकेले अकेले पिटते रहिये। देश संविधान भाईचारे की किसी को कोई चिंता नही है।
सब 2014 से पहले भी घमण्ड में थे। जब मोदी ने सबकी धुलाई की ,तो सब एक हो गए। खैर समय रहते सम्भल जाइये। वरना 5 साल के लिये फिरसे मोदी तैयार है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यवहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति ‘द फायर ‘ उत्तरदाई नहीं है। इस आलेख में लेखक के विचारों को ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है। )