BY–RAVI CHAUHAN
भारत में चल रहे महिला सशक्तिकरण के आंदोलनों में यदि आप गौर करेंगे तो माता सावित्री बाई फुले फातिमा शेख मुक्ता साल्वे इन का जिक्र कभी नहीं पाएंगे।
कहीं ना कहीं इन को दरकिनार करना और बिल्कुल हाशिए पर धकेल देना जातीय दुर्भावना एवं इनकी क्रांतिकारी होना हो सकती है ।
हम सबको पता है कि बाबा साहब अंबेडकर के 3 गुरुओं में से एक गुरु ज्योतिबा फुले थे । जब ज्योतिबा फुले ने जाना की मूलनिवासी बहुजन के पतन का कारण शिक्षा है तो उन्होंने शिक्षा पर काम शुरू किया इस दिशा में जब उन्होंने स्कूल खोलने की सोची तो उसके लिए अध्यापक मिलना मुश्किल था। बस यहींं से महिला सशक्तिकरण एवं बहुजनो में शिक्षा की क्रांति की नीवं पड़ती है । ज्योतिबा फुले अपनी पत्नी सावित्री बाई को पढ़ा कर तैयार करते हैं । अथक मेहनत और चुनौतियां को पार करके 1848 में पहला स्कूल मात्र 9 छात्राओं के साथ शुरू होता है ।
लेकिन इससे पहले जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले इस क्रांति की शुरुआत कर रहे थे तो उन्हें उनके पिता घर से निकाल देते हैं क्योंकि ज्योतिबा अछूतों और महिलाओं को शिक्षा देने का काम कर रहे थे । जो तथाकथित वेदों शास्त्रों के विरुद्ध था। धार्मिक और सामाजिक ठेकेदारों के दबाव में उनके पिता उन्हें घर से निकाल देते हैं
इसी समय फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख का बहुजन आंदोलन में प्रवेश होता है । घर से निकाल दिए गए फुले दंपत्ति को उस्मान नाम के मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपने घर में रहने के लिए जगह दी जाती है इसी बीच उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख भी सावित्रीबाई फुले के साथ आकर बच्चों को पढ़ाने में अपना योगदान देती है। दलित पिछड़ा मुस्लिम एकता का एक अनोखा उदाहरण था ।
दोनों ने मिलकर सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षित किया बाबा साहब अंबेडकर के समय में भी इतिहास बताता है महान क्रांति मार्च के दौरान बाबा साहब अंबेडकर को उच्च वर्गीय हिंदुओं ने सभा करने के लिए भी जगह नहीं दी थी तब भी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति ने बाबा साहब को जगह दी थी।
आज उभर चुके बहुजन आंदोलन ने सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को प्रथम शिक्षिका के रूप में मानना शुरू कर दिया है आज परंपराएं टूट रही हैं और इतिहास में दफन कर दिए गए बहुजन नायक नायिका वीरांगना को स्थापित क्या जा रहा है ।
मुक्ता साल्वे जोतिबा सावित्री फातिमा के स्कूल से निकली प्रथम दलित प्रथम दलित लेखिका थीं । मुकता साल्वे क्रांतिकारी उस्ताद लहू जी पोती थी।लहू जी ने ज्योतिबा की मदद स्कूल खोलने में की थी।.तीसरी कक्षा की साढ़े ग्यारह वर्षीय छात्रा मुक्ता सालवे उसके लिखे निबंध में प्रश्न करती है कि Mang Maharanchya Dukhavisatha (About the Grief of Mahar and Mangs) ;- ब्राह्मणों के देवता अगर हमारे छूने से प्रदूषित हो जाते हैं तो ब्राह्मणों और हमारा धर्म एक कैसे ।ब्राह्मणों के देवता अगर हमारी शिक्षा में बाधा डालते हैं तो ब्राह्मणों का और हमारा धर्म एक कैसे । ब्राह्मणों के देवता ब्राह्मणों को आत्मरक्षार्थ शस्त्र देते है और हमारे छीन लेते हैं तो ब्राह्मणों का और हमारा धर्म एक कैसे । ब्राह्मणों के देवता को ब्राह्मणों के सम्मान की चिंता है और हमारा अपमान हो सुनिश्चित करते हैं तो ब्राह्मणों का और हमारा धर्म एक कैसे ? ब्राह्मणों का देवता ब्राह्मणों की उन्नति और मनपसंद व्यवसाय के सारे दरवाजे खोलता है और हमारे बंद कर देता है तो ब्राह्मणों का धर्म और हमारा धर्म एक कैसे ?
“Sir, give us Library and no chocolates.” :-मुकता साल्वे , जब सर्वश्रेष्ठ निबन्ध के लिये मुकता साल्वे को अंग्रेज अफसर मेजर कैंडी प्रथम पुरस्कार देते है। तो मुकता साल्वे कहती है कि सर हमे चॉकलेट नही,लाइब्रेरी चाहिए।
3 जनवरी शिक्षक दिवस मनाने की पहल । आज लगातार हो रहे बदलाव हम देख रहे हैं 3 जनवरी जोकि माता सावित्री बाई फुले का जन्म दिवस है उसे आज बहुजन युवा शिक्षक दिवस के रूप में मनाने लगा है। जिसको लेकर काफी विवादित चर्चा भी लगातार देखी जा सकती है ।लेकिन लगभग कितने वर्ष पूर्व जब महिलाओं को बिल्कुल भी अधिकार नहीं थे उस समय में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलना और किसी जाति विशेष के लिए नहीं सभी वर्ग की महिलाओं लड़कियों के लिए शिक्षा के द्वार खोलना चमत्कार से कम नहीं था ।
आज जरूरत है यूनिवर्सिटी कॉलेज में ज्योतिबा , सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के अहम योगदान पर खुली चर्चाएं और सेमिनार आयोजित होंं।
भारत में महिला सशक्तिकरण एवं महिला शिक्षा के लिए काम कर रहे लोगो को थोड़ा सा इमानदारी दिखाकर इनके योगदान पर चर्चा करनी चाहिए ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई फुले फातिमा शेख को उनका असली सम्मान मिलना चाहिए।
खैर देर सवेर सही बहुजन नायक नायिकाओं को कब तक कलम कसाई रोके रखेंगे वह तो बीज है धरती में दबाओगे तो फिर नए पौधे बनकर उग जाएंगे।
डिस्क्लेमर:लेख में दिए गए संपूर्ण विचार लेखक के निजी विचार हैं। जानकारी और तथ्य को लेकर द फायर की किसी भी प्रकार से कोई जवाबदेही नहीं है।