मनमोहन सरकार में दूसरे नंबर पर था भारत, अब मोदी सरकार में पहुंचा छठें स्थान पर

BY-THE FIRE TEAM

सूचना अधिकार अधिनियम के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत को झटका लगा है. देश की रैकिंग नीचे गिरकर अब छह नंबर पर पहुंच गई है. जबकि पिछले साल भारत पांचवे नंबर पर था.

आपको बताते चलें कि दुनिया के प्रमुख 123 देशों में आरटीआई कानून लागू है. इस सम्बन्ध में सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी(कनाडा) और

स्पेन की संस्था एक्सेस इन्फो यूरोप ने बीते दिनों 28 सितंबर को इंटरनेशनल राइट टू नो(जानने का अधिकार) डे के दिन इन सभी देशों की रैकिंग जारी की थी. जिसमें भारत को पिछले साल की तुलना में नुकसान उठाना पड़ा है.

खास बात है कि जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला है, उनमें ज्यादातर देश भारत के बाद इस कानून को अपने यहां लागू कराए हैं.भारत में इस कानून को सूचना का अधिकार जहां नाम से जानते हैं.

वहीं दुनिया के कई देशों में इसे राइट टू नो के रूप में जानते हैं. ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने भारत में 12 अक्टूबर 2018 को आरटीआई डे के मौके पर जारी रिपोर्ट में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग गिरने का जिक्र किया है.

देश में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों की निगरानी करने वाली इस संस्था ने देश में आरटीआई एक्ट के पालन को लेकर चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है. संस्था ने आरटीआई एक्ट से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सेक्शन, मसलन 25(2), सेक्शन 19(1) और सेक्शन 19(2) पर फोकस कर रिपोर्ट पेश की है.

ग्लोबल लेवल पर राइट टू नो के तहत जारी रैकिंग में भारत से कहीं छोटा अफगानिस्तान जैसा देश पहले स्थान पर है. अफगानिस्तान ने कुल 150 में से 139 प्वाइंट के साथ मैक्सिको को पीछे छोड़ नंबर 1 का तमगा हासिल किया है.

खास बात है कि भारत ने आरटीआई कानून 2005 में बनाया था तो अफगानिस्तान ने नौ साल बाद यानी 2014 में इस पर अमल किया. बावजूद इसके कानून की खामियों और क्रियान्वयन में लापरवाहियों के चलते भारत को अफगानिस्तान से पीछे छूटना पड़ा.

सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मनमोहन की यूपीए सरकार में वर्ष 2011 में 130 अंकों के साथ दूसरे नंबर पर था, जबकि 135 अंकों के साथ सर्बिया पहले स्थान पर था. 2012 में भी भारत की रैकिंग उसी स्तर पर बरकरार रही.

मगर 2014 में भारत 128 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गया. जबकि छोटे से देश स्लोवेनिया ने 129 अंकों के साथ भारत को पीछे छोड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया. फिर 2016 में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया.

जबकि मैक्सिको नंबर वन पर कायम रहा. अगले साल 2017 में भारत और फिसलकर पांचवें स्थान पर पहुंच गया.  चौंकाने वाली बात रही कि भारत से 11 साल बाद आरटीआई कानून बनाने वाला श्रीलंका 131 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर पहंच गया.

दरअसल सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी  नामक संस्था आरटीआई लागू करने वाले सभी देशों के यहां बने कानूनों और उसके पालन की हर साल समीक्षा करती है.

आपको बता दें कि जिस देश का कानून ज्यादा मजबूत होता है, जहां सूचनाएं छिपाने की जगह अधिक से अधिक सूचनाएं पब्लिक डोमन में सरकारी विभाग और मंत्रालय रखते हैं, जहां आरटीआई आवेदन से पहले ही सरकारी संस्थाओं की ओर से जरूरी सूचनाएं वेबसाइट पर उपलब्ध रहतीं हैं,उन देशों की रैकिंग मजबूत होती है.

भारत में सूचना न देने पर 2005-2016 के बीच 18 लाख से ज्यादा लोगों को सूचना आयोगों का दरवाजा खटखटाना पड़ा. इससे पता चलता है कि देश में सूचनाएं छिपाईं जातीं हैं.

इसके अलावा भारत में सीबीआई सहित कई संस्थाएं आरटीआई के दायरे से बाहर हैं, वहीं गोपनीयता और निजता का हवाला देकर उन सूचनाएं को बाहर आने से रोका जाता है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्ति की निजता कतई भंग नहीं होती.

इसके लिए आरटीआई कानून को कुछ उपबंधों को अफसर ढाल बनाते हैं. जबकि भारत से काफी बाद में अफगानिस्तान ने आरटीआई जैसा कानून बनाया, जिसमें सूचनाओं की सहज और सामान्य उपलब्धता जनता के लिए होती है.

यहां तक कि श्रीलंका ने भी भारत से बाद में मगर बेहतर कानून बनाया और लागू किया है. नीचे आर टी आई से जुड़ी सूची में दस प्रमुख देशों की स्थिति-

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भारत में क्या हैं आरटीआई की राह में रोड़े:

इंडिया टीवी के हवाले से पता चला है कि ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के डायरेक्टर आर एन झा एनडीटीवी से कहते हैं कि कानून लागू होने के 13 साल बाद भी देश में शक्तिशाली कुर्सियों पर बैठे लोगों का माइंडसेट नहीं बदला है.

वो सूचना देने की जगह पर्देदारी करने में यकीन रखते हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरटीआई अर्जियां गांवों से पहुंचीं. डेटा से खुलासा हुआ कि ज्यादातर अर्जियां आम आदमी ने डालीं न कि आरटीआई कार्यकर्ताओं ने.

बिना मतलब की अर्जियों की संख्या महज दो प्रतिशत ही रही. बावजूद इसके जिम्मेदारों ने सूचना देने में उदासीनता दिखाई. झा के मुताबिक, राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते आरटीआई एक्ट का ठीक से पालन नहीं हो रहा है.

मोदी सरकार में एक्ट के कमजोर होने के सवाल पर डायरेक्टर आरएन झा कहते हैं कि सरकार ने संशोधन करने की कोशिश तो की थी, मगर विरोध के चलते मंशा कामयाब नहीं हुई.

इस प्रकार यह नहीं कह सकते कि आरटीआई एक्ट कमजोर हुआ है, मगर यह तो है कि पारदर्शिता को लेकर सरकार जरूरी कदम नहीं उठा रही.

क्यों कमजोर हो रहा कानून ?

  • सूचना आयोग को मजबूत बनाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव
  • राज्य सूचना आयोगों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधन की कमी
  • सूचना आयोगों में उच्च संख्या में लंबित केस और खाली पदों की संख्या
  • आरटीआई अर्जियों पर कार्रवाई की समीक्षा तंत्र का अभाव
  • अप्रभावी रिकॉर्ड मैनेजमेंट सिस्टम
  • राज्यवार असमान आरटीआई कानून

कैसे आरटीआई हो मजबूत ?

  • आरटीआई एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए तकनीक की मदद ली जाए. ऐप से ही ऑनलाइन आवेदन की सुविधा दी जाए
  • सभी जिम्मेदारों को एक्ट के पालन से जुड़ी विधिवत ट्रेनिंग मिले
  • आरटीआई एक्ट को लेकर व्यापक जागरूकता फैलाई जाए
  • उन सभी सार्वजनिक संस्थाओं को आरटीआई के दायरे में लाया जाए, जिन्हें सरकार से धनराशि मिलती है
  • गोपनीय आवेदनों पर भी कार्रवाई हो, अधिक से अधिक आंकड़ों का खुलासा हो

 

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