समय की मांग है कि हम राजनीतिक रूप से जागरूक हों


BYसुशील भीमटा


अजीब सी दास्तां है हिन्दोस्तान की 545 नेताओं को, भारत देश को संविधान द्वारा देश चलाने का अधिकार दिया गया है जो देश की जनता के हितों की सुरक्षा के लिए मतदान द्वारा चुने व चयनित किए जाते हैं।

इतनी बड़ी जिम्मेदारी इन लोगों को सौंपी गई है ताकि लोकतंत्र ज़िंदा रहे और देश में अमनों चैन से लेकर प्रगति और उन्नति के लिए सुरक्षा व विकास की नीतियों का निर्माण हो और लोकतंत्र की मर्यादा में रहकर देश की सेवा यह माननीय कर सकें।

ऐसा संविधान में वर्णित है और यही लोकतंत्र का नियम है। मगर सेवा कम मेवा ज्यादा खानें की आदत ने वतन को इस अधिकार नें इसलिए अपाहिज कर दिया कि ये चयन पांच साल में किया जाता है और जनता के लिए संविधान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं किया गया कि अगर कोई जनप्रतिनिधि अपने घोषणा पत्र को पूरा करने में असफल होता है या लोकतंत्र की अवहेलना करता है या उसपर कोई आपराधिक मुकदमा न्यायालय में चले तो उसे हटा सकें। बस यही कमजोरी संविधान की हिंदुस्तान को हाशिये पर ले आई और पांच साल तक लाचार कर गई।

मैं जनता की ओर से भारतीय सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन करना चाहूँगा कि हर राजनीतिक दल के उम्मीदवार को चुनाव नामांकन पत्र भरने से पहले उसके चुनावी घोषणा पत्र को न्यायलय में जमा करने के लिए कानून बनाया जाए और अगर चुनाव जीत जाने के बाद वो नेता अपने घोषणा पत्र में किए वादों को 75 से 80% तक पूरा करनें में विफल होता है तो उसे अगला चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित कर दिया जाये।

75 से 80% इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि कभी परिस्थितियां साथ नहीं देती जैसा प्राकृतिक आपदा,जनता की किसी कार्य में मंजूरी ना मिलना, जमीन से जुड़े मामले सड़क,सार्वजनिक भवन, हॉस्पिटल, क्रीड़ास्थल,ऑफिस, आदि।

दूसरा- अपने देश विदेश के क्षेत्र के दौरों पर होनें वाले खर्चों पर अंकुश लगाया जाया इससे देश पर बहुत आर्थिक बोझ पड़ जाता है जरूरी स्टाफ और प्रतिनिधि के आलावा किसी को इनके साथ जानें कि इज्जत न्यायलय के अधीन ही रहे।

तीसरा- विधानसभा व लोकसभा सेशन में शिष्टता के लिए भी कानून बनाया जाये। जब सदनों के अंदर लड़ाई होती है तो आप सब जानतें हैं कि किस तरह शिष्टाचार के चिथड़े उडाये जातें हैं और समस्त देश लज्जित हो रहा होता है।

चौथा- सभी राजनीतिक दलों के उन प्रतिनिधियों को तब तक चुनाव लड़नें से न्यायलय द्वारा मनाही कर दी जाये जब तक वो चल रहे मुकदमों से बहाल नहीं हो जाते। अगर किसी के पास और सुझाव हो तो जरूर प्रतिक्रिया दें।

अपने लिए और अपने वतन के लिए अवश्य पहल करें वरना हम कटपुतली थे, हैं और रहेगें और एक दिन 545 लोग 125 करोड़ को बेचकर गुलाम बना देंगे और फिर वही होगा जो मुगलों और अंग्रेजों के समय हुआ था।

शुरुआत तो हो चुकी आप सबके सामनें है कर्णधार राजनितिक आग में धर्म जाति वर्ग की सामग्री बनाकर आहुति देकर विनाश का यज्ञ करवानें लगें हैं। दो मात्र विकल्प बचे हैं हमारे लिए-एक देश की जनता को जागना होगा। दूसरा न्यायलय (कानूनदानों )को अपना फर्ज निभाना होगा। प्रतिक्रिया (comment )और सुझाव अवश्य दें। वतन 125 करोड़ हिंदुस्तानियों का है सिर्फ 545 लोगो का ही नही?

लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।

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