BY–नरेन्द्र चौहान
खबर हिमाचल से-
महामहिम,
“धोती पहन के बागवानी नहीं होती ”
हे महामहिम, आपको सादर प्रणाम, मैं आपकी प्रखर कार्यशैली व आक्रामक रूख क कायल हूं। आपने जीरो बजट खेती का जबरदस्त फार्मूला खोजा उसके लिए आपको अनेकों साधूवाद।
श्रीमान आप जो सेब बागवानी को भी यकायक अपने इस फार्मूले के दायरे में लाए हैं उससे मुझे आपत्ति है। आपकी अच्छी सोच पर मुझे कितनी आपत्ति है और क्यों है? गौर फरमाइएगा।
जैसा कि मैंने कहा है कि धोती पहन कर बागवानी नहीं होती। मेरी इस पंक्ति को अन्यथा न लें और न ही धोती के अपमान के नजरिए से देखें इसे प्रायोगिक रूप में लिजिएगा।
जीरो बजट खेती के लिए जो आपका देसी गाय के गोबर व कीटनशकों के पूर्ण प्रतिबंध का फार्मूला है वह गेंहू, चावल, दालों व सब्जियों जैसी फसलों में सफल हो सकता है शायद सफल रहा भी है जिसके आधार पर आपने हिमाचल प्रदेश की अार्थिकी की रीढ़ की हड़्डी के साथ यह प्रयोग करने का फैसला लिया है।
जीरो बजट खेती का यह फार्मूला निःसंदेह स्वागत योगय है। लेकिन हे महामहिम बागवानी व खेती दोनों में बहुत अंतर है। आसान शब्दों में कहूं तो जिस प्रकार से धोती पहन कर सेब के पौधे पर चडकर प्रुनिंग करना, फल तोडना आसान नहीं उसी प्रकार बागवानी को यकायक जीरो बजट खेती के फार्मूले के साथ जींवत बनाए रखना भी आसान नहीं है।
इस फार्मूले में आप देसी गाय वह भी सहवाल किस्म की गाय की गोबर के इस्तेमाल की बात करते हैं लेकिन यहां तो बागवान गऊ विहीन है। तो फिर जीरो बजट खेती कैसे हो?
इसके लिए बागवानों को पहले पशु पालक बनना पडेगा या बनाना पडेगा। दूसरी बात कीटनशकों व फफूंदनाशकों को पूर्णतः बंद करने की।
तो हे सम्मानीय, सेब की जिस पैदावार के बूते प्रदेश खुशहाल है जरा कल्पना करिए कि अगर बागवान की फसल पर अल्ट्रनैरिया मार्सोनिना फफूंद या फिर माईट जैसे कीट का हमला हो जाए तो बागवान कहां जाएगा क्या करेगा?
आपके जीरो बजट खेती के फार्मूले में इन समस्याओं से निपटने का जो विश्वसनीय तरीका है कृपा कर पहले उससे बागवानों को प्रदान करें। मैं मानता हूं कि रसायनिक खादों व कीटनाशकों का अत्याधिक छिडकाव इंसान के लिए घातक साबित हो रहा है लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि जब देश भुखमरी के कगार पर था तो रासायनिक उर्वकों के दम पर ही देश ने हरित क्रांति की ब्यार देखी और जिन जर्सी गायों की जगह आप सहवाल गायों को प्रस्तुत कर रहे हैं उन्हीं जर्सी गायों जैसी उन्नत नस्लों ने देश में श्वेत क्रांति लाई ।
यह सही है कि रसायनिक खादों, कीटनशाकों , फफूंदनाशकों का इस्तेमाल समाप्त होना चाहिए लेकिन इसके लिए पहले हमें व्यापक तैयारी करनी होगी। कहीं ऐसा न हो आपका यह प्रयोग बागवानी को एकदम लील ले और सेब बागवानी के बूते फल-फूल रहे इस खुशहाल प्रदेश को उसके वीभत्स परिणाम भूगतने पड़ें।
सेब की उत्पादन की लागत जीरो बजट हो तहेदिल से स्वागत है फल फफूंदनाशकों ,कीटनाशकों व रसायनिक खादों के इस्तेमाल के बिना तैयार हो इस पहल में हम सब आपके साथ हैं लेकिन माफ करिएगा आपके जीरो बजट फार्मूले में बहुत रिस्क नजर आ रहा है।
इसलिए विनम्र निवेदन है आपके सामने हां में हां भरने वाले और आपके जीरो बजट खेती के फार्मूले को सुपर हिट बताने वाले बिन पैंदों के लोटों के अलावा इस विषय पर उन बागवानों की राय जरूर ले लीजिये जिनके घर के चूल्हे का जलना सेब की पैदावार पर निर्भर करता है।
एक तरफ जहां साल दर साल सेब की किस्मों व गुणवत्ता की कड़ी प्रतिस्पर्धा ने बागवानों की नींदें उड़ा रखी है। दूसरी तरफ आपकी जीरो बजट खेती का फार्मूला अब बागवानों की चिंता बढ़ाने लगा है।
आप महामहिम हैं उम्मीद है जीरो बजट खेती के इस फार्मूले में आप सेब बागवानी को ध्यान में रखते हुए संशोधित और सुरक्षित करने की दिशा में उचित कदम उठाऐंगे। जिसको प्रदेश का बागवान न केवल सहर्ष स्वीकार करेगा बल्कि स्वागत भी करेगा।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।