BY– नरेंद्र चौहान (सहयोगी- सुशील भीमटा)
एन्टी ड्रग फोर्स देश के भविष्य और हमारे युवाओं को लील रहे ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। ड्रग माफिया के छद्म युद्ध में हम उसकी साज़िशों का मुक़ाबला, जागरूकता और सतर्कता के माध्यम से शांतिप्रिय तरीके से कर रहे हैं।
जिस तेजी से हमारे युवा चिट्टे, नशीली दवाओं की चपेट में आ रहे और ड्रग माफिया हमारे शांत संपन्न प्रदेश में घुसपेठ कर रहे हैं, क्या वह छद्म युद्ध नहीं है?
अगर है तो इसके खिलाफ जंग में आम सहभागिता क्यों नहीं? क्या ड्रग के खिलाफ पुलिस या ऐंटी ड्रग फोर्स जैसा संगठन ही लडाई लडेगा? क्या युद्ध के हालात में दुश्मन का सामना करने के लिए केवल सैनिक शस्त्र उठाएगा?
याद करिए हमारी इसी प्रवृति के चलते इतिहास में मुहम्मद गजनी लुटेरों को इकट्ठा कर हमें लूट गया था। अंग्रेजो ने भी हमें हमारी इसी आपसी फूट व प्रवृत्ति के चलते हमको गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा तब समाज के हर वर्ग ने स्वतन्त्रता की अलख जगाई और तब हम आजादी का जशन मना सके।
आज नशा विश्व के इस सबसे युवा देश पर धावा बोल चुका है। लेकिन हम पुलिस की तरफ या दंतविहीन समाजिक संगठनो की तरफ देख रहे हैं। सोशल मीडिया पर ड्रग के खिलाफ बुदबुदा रहे संगठनों व ड्रग माफिया के प्यादों को पकड रही पुलिस को “वैरी गुड “कीप इट अप,, “वी आर विद यू” जैसे कमेंट लिख कर अपनी जिम्मेदारी निभा लेते हैं। क्या इन कमेंट्स को करने भर से ड्रग्स एडिक्शन व ड्रग्स समगलिंग का बढता जहर रूक जाएगा?
बढते संगीन अपराधों, चोरियों, सड़क हादसों, आत्महत्याओं व बदहाली की बडी वजह अगर कोई है तो वह यही नशे का रक्तबीज है। जो पनपता ही जा रहा है। लेकिन अफसोस हमारे पास वक्त नहीं है। न ही अपने बच्चों को समय देने का, न ही गंभीर होती इस समस्या को रोकने के लिए एकजुट होने का।
नशे के खिलाफ अपने घर से अपने गांव व कस्बे से मोर्चा खोलना तो दूर ड्रग माफिया से जूझ रही पुलिस व एंटी ड्रग फोर्स को सहयोग देने का भी समय नहीं। हां सोशल मीडिया पर कमेन्ट करके समाज के प्रति अपनी चिंता दर्शाने में देरी नहीं करेंगे। बस इतना कहना चाहूंगा हमको सहयोग दो न दो हमको उत्साहित करो या हतोत्साहित लेकिन हालात युद्द से कम नहीं हैं। आपसी मतभेदों, राजनैतिक प्रतिद्वंदिता से उपर उठकर हम सभी को अपने-अपने स्तर पर अपने घर से लेकर प्रदेश तक को ड्रग के संक्रमण से बचाने के लिए सुरक्षा चक्र तैयार करना होगा।
नशे के विरूद्घ इस युद्ध में भले ही हम सभी सैनिक की भूमिका न निभा सकें लेकिन इस रण में उतरे हर समाजिक संगठन, पुलिस व सरकार को भरपूर सहयोग तो दे सकते हैं। क्योंकि जब बात देश के भविष्य पर आ जाए तो तमाशबीन बन कर नहीं रहा जा सकता, बंदूक उठानी ही पड़ती है।
आओ हम सभी मिलकर नशे के खिलाफ जागरुकता का ब्रह्मास्त्र चलाकर ड्रग्स के इस भस्मासुर को भस्म करें।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।