शिमला भाजपा में सुलगने लगी बगावत की चिंगारी, नियुक्तियों पर बवाल


BY-THE FIRE TEAM


हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही बोर्ड निगमों में ओहदे पाने के लिए नेताओं ने गोटियां फिट करनी शुरू कर दी थी। उसी कवायद को अब नवरात्र के पावन अवसर पर अंजाम तक पहुंचाया गया और 13 नेताओं को बोर्ड निगमों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पद से नवाजा गया। उसी के साथ निदेशक मंडल में भी दर्जनों लोगों को जगह मिली।

खुश थी कि अब नेताओं की नाराजगी दूर होगी और पूरा ध्यान 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर केंद्रित करेंगे लेकिन इसके उलट अंदर ही अंदर कुछ और ही चल रहा था। खासकर शिमला भाजपा में।

यहां बगावत की चिंगारी भीतर ही भीतर सुलगने लगी है। हाल ही में जुब्बल कोटखाई से संबंध रखने वाले एक निदेशक को नियुक्ति के 10 दिन बाद ही उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया गया। इसके पीछे वजह बताई गई कि अमुक व्यक्ति भाजपा का प्राथमिक सदस्य नहीं है। जबकि अंदर की वजह कुछ और ही बताई जा रही है।

जानकार बताते हैं कि जिला के ही एक बड़े ओहदेदार और सरकार के दो मंत्रियों में ठन गई थी क्योंकि ओहदेदार का कद इस नियुक्ति से कम हो सकता था। अब यहीं से बगावत के सुर उठने लगे।

समर्थक मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं। यही नहीं आवाज उठा रही है कि क्या पूरे प्रदेश में एक ही ऐसी नियुक्ति हुई है। नहीं… शिमला जिला से दो और विवादस्पद तैनाती अब सरकार के गले की फांस बनती जा रही है।

सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के एक खास सिपहसालार ने बोर्ड निगमों में अपने करीबी रिश्तेदारों को एडजस्ट कर दिया है। सूचना तो यह आ रही है कि इनमें एक तो पार्टी का सदस्य ही नहीं है। और तो और वह शख्स भाजपा के बजाय कांग्रेस परिवार का बताया जा रहा है।

इससे भाजपा का एक बड़ा धड़ा नाराज हो गया है। जो यह कह रहा है कि सत्ता भाजपा को मिली है और मलाई विपक्षी पार्टी के लोग कह रहे हैं।

सूत्र यह भी कह रहे हैं कि एक ही क्षेत्र से कई लोगों को ओहदे दिए गए जबकि चौपाल, कुसुम्पटी, रामपुर बुशहर और रोहड़ू जैसे विधानसभा क्षेत्रों के नेता इंतजार के साथ कड़वा घूंट पीकर चुप बैठे हैं लेकिन इनके अंदर भरा ज्वालामुखी का लावा कभी भी फूट सकता है।

सूत्रों की मानें तो रुष्ट नेता जल्द मुख्यमंत्री और पार्टी आलाकमान के समक्ष तथ्यों सहित यह सारी जानकारी पेश करने वाले हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि प्रदेश भर में कई भाजपा के नेता और पदाधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने खुलेआम विधानसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ काम किया लेकिन अब उन्हें मलाईदार पदों से नवाजा गया है।

इन पर न कोई एक्शन लिया गया न ही किसी तरह की कार्रवाई। ऐसे आने वाले समय में भाजपा के लिए अपनों को शांत रखना और मनाना मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
कमोबेश यही स्थिति प्रदेश के कई हिस्सों में है। जहां अपने ही अपनों के खिलाफ मुखर हो गए हैं।

यही नहीं यदि यह चिंगारी भड़क गई तो फिर आने वाले लोकसभा चुनावों में अपनों के लिए ही मुसीबत बन सकती है।

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