हवाई जहाज के कैबिन की तरह होंगे बिलासपुर-लेह ट्रैक पर चलने वाली ट्रेन के कोच


BYसुशील भीमटा


मोदी-जय राम सरकार में आखिर इस तरह आई काम में तेज़ी:


सालों साल से लटके इस महत्वपूर्ण रेल लाइन को आखिर में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद वैल्यू मिल ही गयी. सत्ता में इतने साल कांग्रेस रही लेकिन उन्होंने इस तरफ कोई रूचि नहीं दिखाई वही हाल रोहतांग टनल का है। अटल जी का सपना था उन्होंने नीव रखी थी और मोदी सरकार के आने पर सपना पूरा हुआ।

विश्व के सबसे ऊंची रेलवे लाइन में शुमार होने जा रही बिलासपुर-लेह ट्रैक में चलने वाली रेल के कोच भी स्पेशल होंगे. ऊंचाई में भी यात्रियों को कम ऑक्सीजन वाली जगहों से गुजरने पर, सांस लेने में परेशानी नहीं होगी.

इस ट्रैक पर चलने वाली रेलगाड़ी के कोच हवाई जहाज के कैबिन जैसे होंगे, खास तकनीक होने से, अधिक ऊंचाई पर होने से लोगों को सांस लेने में परेशानी नहीं होगी. इस ट्रैक पर रेलवे प्रेशराइज्ड कोच का इस्तेमाल करेगा.

उत्तर रेलवे के चीफ इंजीनियर डीआर गुप्ता ने बताया कि इस ट्रैक में यात्रियों को ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए प्रेशराइज्ड तकनीक से केबिन के अंदर ऑक्सीजन का स्तर बनाया रखा जाएगा. उन्होंने बताया कि इस तरह की तकनीक विमानों के केबिन बनाने में किया जाता है. देश में पहली बार इस तरह के कोच इस्तेमाल में लाए जाएंगे.

गुप्ता ने कहा कि रेलवे ने कनाडा की चीनी रेलवे के कोच डिजाइन करने वाली कंपनी बॉमबार्डियर इंक से कोच डिजाइन करवाए जा सकते हैं, लेकिन अभी ये स्पष्ट नहीं है कि कोच भारत में बनाए जाएंगे या बाहर.

गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से लेह तक बनने वाली रेललाइन का सर्वे पूरा हो चुका है. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में करीब 83 हजार 360 करोड़ की लागत का अनुमान है. ये प्रोजेक्ट कई मायनों में देश के लिए महत्वपूर्ण हैं.

बिलासपुर से शुरू होने वाली यह रेल लाइन दुनिया के सबसे ऊंचे ट्रैक में से एक होगी. चीन की तिब्बत में बिछाई गई रेल लाइन भी इससे नीचे होगी. इस रेललाइन की सबसे खास बात ये होगी की देश में पहली रेल लाइन होगी जिसमें अंडर टनल रेलवे स्टेशन बनाया जाएगा, जो कि लाहौल स्पीति के केलांग में निर्मित किया जाएगा.

465 किलोमीटर लंबे रेल मार्ग पर 244 किलोमीटर तक सुरंगे बनेंगी. कुल 74 टनल्स में से सबसे लंबी टनल 27 किलोमीटर की रहेगी. रेलवे अधिकारियों ने बताया कि बिलासपुर से लेह तक 30 रेलवे स्टेशन बनाए जाएंगे. इस रेल मार्ग पर 124 बड़े पुल और 396 छोटे पुलों का निर्माण होगा.

इस रेललाइन के बनने से दिल्ली से लेह तक जाने के लिए 20 घंटे की बचत होगी. वर्तमान में सड़क मार्ग से दिल्ली से लेह जाने के लिए करीब 36 घंटे लगते हैं. ये रेललाइन सेना के हिसाब से भी अहम साबित होगी. सेना को लेह तक चीन बॉर्डर तक पहुंचने में आसानी रहेगी. सामरिक दृष्टि से यह मार्ग सेना के लिए काफी अहम है.

सत्ता में मोदी सरकार के आने के बाद से इस रेल लाइन के सर्वे में तेज़ी आई और इसे पूरा किया गया अब एक अंतिम सर्वे रहता है जिसे पूरा करने में अभी कुछ वक़्त लगेगा।

अंतिम सर्वेक्षण 30 महीने में पूरा होने की उम्मीद है, जिसके बाद एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा. नार्दन रेलवे के जीएम विश्वेश चौबे ने बताया कि कुछ स्टेशनों का निर्माण डिफेंस के मुताबिक भी कुछ स्टेशनों का होगा. यह दुनिया की सबसे ऊंची (5360 मीटर) रेलवे लाइन होगी.

रेलवे लाइन से हिमाचल के सभी महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन जम्मू से जुड़ेंगे, इसमें हिमाचल में मंडी, मनाली, केलांग, कोकसर, दारचा और जम्मू एवं कश्मीर के उपसी और कारू शामिल हैं. चीन-भारत सीमा से इसकी निकटता के कारण यह प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण है.

यह कार्य तीन चरणों में पूरा किया जाएगा. पहले फेस में डिजिटल माध्यम से मॉडलों का मूल्यांकन होगा, दूसरे फेज में बेहतर अलाइनमेंट को लेकर काम होगा. तीसरे फेज में पुल और सुरंगों की एक परियोजना रिपोर्ट बनेगी.

इसमें अधिकतर पुल और सुरंगे होंगी. फिलहाल इस मार्ग में 74 सुरंग में प्रस्तावित हैं और 124 बड़े पुल और 396 छोटे पुलों का निर्माण किया जाएगा.

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