BY– THE FIRE TEAM
पटना, 26 नवम्बर, 2018.
संविधान दिवस के मौके पर बिहार की राजधानी पटना में विभिन्न संगठनों के साझा मंच ‘सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार’ के बैनर तले राज्यस्तरीय सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन का संचालन न्याय मंच, बिहार के रिंकु यादव ने और अध्यक्षता आरक्षण बचाओ- संविधान बचाओ के अध्यक्ष विष्णुदेव मोची ने की।
सम्मेलन की प्रस्तावना रखते हुए रिंकु यादव ने कहा कि आज देश में राज और समाज पर मनुवादी ताकतों का शिकंजा मजबूत हुआ है। फासीवादी ताकतें मजबूत हुई हैं। सामाजिक न्याय का एजेंडा आज भी अधूरा है। नब्बे के दशक में जब पिछड़ों को आरक्षण की शुरुआत हुई तो उसी वक्त ब्राह्मणवादी-प्रतिक्रियावादी शक्तियां कमंडल आंदोलन लेकर सामने आई।
एक तरफ तो राम मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू हुआ तो दूसरी तरफ आर्थिक उदारीकरण व निजीकरण की भी शुरुआत होती है। इस दशक में बहुजन चेतना व नेतृत्व अपनी ऊंचाई पर पहुंचती हैं, फिर बिखराव व पतन का दौर शुरु जाता है. इसी दौर में बीजेपी-आरएसएस भी नये दौर की शुरुआत करता है और अपने चरम पर पहुंचता है।
उन्होंने कहा कि आज इस कठिन समय में सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर नए सिरे से संघर्ष की बुनियाद पर बहुजनों की सामाजिक- राजनीतिक दावेदारी खड़ा करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय आंदोलन को जाति उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ाना होगा। यह बहुजनों के हक-अधिकार व आत्मसम्मान की लड़ाई है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि सामाजिक न्याय को महज आरक्षण तक सीमित कर दिया गया है। किन्तु आज भी आरक्षण को मुकम्मल ढंग से लागू नहीं किया जा सका है। आरक्षण को 50 प्रतिशत के दायरे में सीमित कर दिया गया है! इसके लिए मुख्यधारा की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां दोषी हैं।
उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का अर्थ समता, स्वतंत्रता, न्याय व भाईचारे के मूल्यों के आधार पर देश-समाज को गढ़ना है। आज भी देश में जाति-वर्ण-लिंग-धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर भेदभाव कायम है। देश में जाति के आधार पर आज भी उत्पीड़न का सिलसिला बदस्तूर जारी है। देश में बेरोजगारी, भ्र्ष्टाचार व भयानक आर्थिक विषमता कायम है। देश के 73 फीसदी संसाधनों पर एक फीसदी आबादी का कब्जा बना हुआ है।
भूमिसुधार का एजेंडा अनुत्तरित है, जबकि आजादी के सात दशक बाद भी ज्यादातर दलित भूमिहीन बने हुए हैं। इसके लिए आज जरूरी है कि सामाजिक न्याय व सेकुलरिज्म के समग्र एजेंडे पर नए सिरे से मुकम्मल संघर्ष व राजनीति खड़ा करने के लिए पुरजोर प्रयास करना होगा।
‘पसमांदा मुस्लिम महाज’ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष मुख्तार अंसारी ने कहा कि धर्म की आड़ लेकर हमेशा गरीबों- दलितों- वंचितों के सवालों को दबाया जाता है। लोकतंत्र किसी धर्म शास्त्र से नहीं चलता है, बल्कि वह संविधान से चलता है। अगर कोई संविधान के स्थान पर धर्मशास्त्रों को थोंपना चाहता है तो वह सबसे बड़ा देशद्रोही है।
जब पसमांदा मुस्लिम अपने हक-हकूक,भागीदारी की बात करते हैं तो अपर कास्ट मुस्लिम इन सवालों के खिलाफ खड़ा हो जाता है। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा कि मुस्लिमों में भी दलित तबका है, सामाजिक न्याय का तकाजा है कि उन्हें भी अनुसूचित जाति की कैटेगरी में शामिल किया जाना चाहिए।
वंचित समाज विकास मंच के नवीन प्रजापति ने कहा कि दलितों-वंचितों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य का एजेंडा सामाजिक न्याय का अहम एजेंडा है। भूमंडलीकरण के मौजूदा दौर में उदारीकरण, निजीकरण व बाजारीकरण का संकट उपस्थित हुआ है, इसने दलितों-वंचितों के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। हासिये के समुदाय को नए सिरे से संगठित करते हुए उनके राजनीतिक भागीदारी के सवाल को संघर्ष का एजेंडा बनाना होगा।
उन्होंने कहा कि आज सफाई मजदूरों का ठेका प्रथा के जरिये शोषण किया जा रहा है, इसे भी नए दौर के संघर्ष का सवाल बनाना होगा।
बिहार के सिवान से आए अमर कुमार ने कहा कि हमें बाबा साहब से प्रेरणा ग्रहण करते हुए सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा। बिहार में दलित-पिछड़ों की बात करने वाले लालू-राबड़ी-नीतीश की पिछले तीन दशक से सरकार चल रही है किंतु दलितों-वंचितों के ज्यादातर बच्चे राज्य के जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, उन स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी तक नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि दलित-पिछड़ों के इन फर्जी हितैषियों को पहचानने व सबक सिखाने की जरूरत है।
शोषित वंचित समाज के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रवेश राम ने कहा कि देश में दलित-पिछड़ों व आदिवासियों की संख्या 85 फीसदी के करीब है किंतु आज भी देश में 15 फीसदी सवर्णों का एक तरह से एकाधिकार कायम है। उन्होंने कहा कि दलितों-पिछड़ों-अति पिछड़ों को बांटकर रखा गया है, उन्हें ज्ञान व धन-संपत्ति से मरहूम रखा गया है। आज बहुजन तबके को जाति की संकीर्णता से ऊपर उठकर एकजूट होकर संघर्ष करना पड़ेगा तभी उन्हें हक-अधिकार मिल सकेगा। आज आरक्षण, संविधान पर हमले किए जा रहे हैं, इसे रोकने के लिए आगे आना होगा।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय के आंदोलन को सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की मांग करनी होगी। इस कमेटी ने समान अवसर आयोग गठित करने की अनुशंसा की थी, किन्तु न तो केंद्र सरकार और न ही किसी राज्य की सरकार ने इसे लागू नहीं किया है। हमें सामाजिक न्याय की नई राजनीति की पूरी रूपरेखा तैयार करनी होगी, अन्यथा सामाजिक न्याय की पतित हो चुकी धारा में समाहित होने का खतरा बना रहेगा। सामाजिक न्याय की समतामूलक संस्कृति गढ़नी पड़ेगी। इसी की बुनियाद पर नए दौर के सामाजिक न्याय की नई राजनीति खड़ी होगी। आगे उन्होंने कहा कि दबे-कुचले हासिये के समुदाय और ब्राह्मणवाद व औपनिवेशिक अनुकूलन से अब तक बचे रहे तबके ही सामाजिक न्याय के नए दौर की लड़ाई को नेतृत्व करेंगे। अंत में उन्होंने कहा कि अगर भारत में संविधान का राज कायम रहना है तो विध्वंश की गई मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया जाना आवश्यक है और विध्वंश के सभी दोषियों को सजा की गारंटी करना होगा।
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. विलक्षण रविदास ने कहा कि सिंधु सभ्यता के पतन के बाद से ही भारत में ब्राह्मणवादी विषमता का दौर प्रारम्भ हुआ। इस विषमता के खिलाफ महात्मा बुद्ध से लेकर संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले, माता सावित्री बाई फुले, बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर, पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर आदि हमारे नायकों ने संघर्ष किया। जिस दिन 26 नवम्बर 1949 को आजाद भारत ने संविधान को अंगीकार किया, वह दिन ब्राह्मणवादी शक्तियों के पराजय का दिन था।
उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस, विश्वहिंदू परिषद व बजरंग दल आदि ब्राह्मणवादी संगठन बहुजनों के हक-अधिकार व संविधान को कुचलना चाहती हैं। भाजपा मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक को खत्म करने की बात करती है किंतु दूसरी तरफ सबरीमाला मंदिर में हिन्दू महिलाओं के प्रवेश का विरोध करती है।
कांग्रेस भी उसी के सुर में सुर मिला रही है। आगे उन्होंने कहा कि भाजपा-कांग्रेस बाबा साहब का नाम तो लेती है किंतु उनके विचारों को लागू करने से भागती है। बाबा साहब देश में आर्थिक व सामाजिक समानता लाना चाहते थे किंतु ये राजनीतिक शक्तियां इससे भागते हुए सामाजिक- आर्थिक असमानता को बढ़ाने के लिए ही काम करते हैं। आज भी देश में छुआछूत की भावना व्याप्त है, ब्राह्मणवादी उसूलों से ही समाज संचालित हो रहा है।
इसे उखाड़ फेंकने के लिए हर मोर्चे पर समतामूलक संस्था खड़ी करनी होगी। लोगों को सामाजिक शिक्षा के प्रति जागरूक करना होगा। बहुजन बुद्धिजीवियों, नौकरी-पेशा लोगों को नए सिरे से संगठित करना होगा। दलितों- आदिवासियों- वंचितों, अल्पसंख्यकों व महिलाओं के सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष को तेज करना होगा। अंत में उन्होंने एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ 2 अप्रैल के संवैधानिक आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
‘आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ’ मोर्चा के संरक्षक इंजीनियर हरिकेश्वर राम ने कहा कि बहुजनों का हजारों वर्षों से जो हकमारी चली आ रही है वही बहुजनों की दुर्दशा का मुख्य कारण है। आज भी भारतीय समाज में असमानता कायम है, आरक्षण इसी को खत्म करने और दलितों-वंचितों को व्यवस्था में समुचित भागीदारी के लिए है। किंतु आज भी बहुजनों को तरह-तरह से रोका जा रहा है।
निजीकरण उसी षड्यंत्र का हिस्सा है, जहां आज तक आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। न्यायपालिका में आज भी आरक्षण नहीं है, वहां परिवारवाद व जातिवादी कोलेजियम सिस्टम ही चल रहा है। यही कारण है कि इन जगहों पर बहुजनों की भागीदारी नहीं है। देश की व्यवस्था पर मुठ्ठी भर सवर्णों का कब्जा है।
जब भी देश में सामाजिक न्याय के लिए बहुजनों का संघर्ष शुरू होता है तो ये मनुवादी शक्तियां राम मंदिर का मुद्दा सामने लाकर मूल मुद्दों से ध्यान भटकाते हैं। उन्होंने कहा कि अपने आपको सेकुलर व सोशल जस्टिस से जोड़ने वाली बहुजन नेतृत्व वाली राजनीतिक पार्टियां भी इस षड्यंत्र में साझीदार बन गई हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय के नए दौर का संघर्ष शुरू हो चुका है। सामाजिक न्याय से गद्दारी करने वाली शक्तियों में जहां आज टूट-फुट मची हुई है वहीं बिहार में अब तक राज्य के विभिन्न हिस्सों के तीन दर्जन संगठन सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर संघर्ष के लिए एकजुट हो रहे हैं। सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर जुझारू संघर्ष के जरिये ही देश में फासीवादी- मनुवादी- पूंजीवादी- कोर्पोरेटपरस्त शक्तियों को ठिकाने पर लगाया जा सकता है। हमारे पास बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर, पेरियार, कर्पूरी ठाकुर से लेकर शहीद जगदेव प्रसाद और कांशीराम जैसे नायकों की सामाजिक न्याय के संघर्ष की विरासत मौजूद है।
जेएनयू से आए छात्र नेता सह न्याय मंच के राष्ट्रीय संयोजक प्रशांत निहाल ने कहा कि सामाजिक न्याय का यह सम्मेलन ऐसे वक्त में हो रहा है जब अयोध्या में धर्म संसद हो रहा है और केंद्र-राज्य में फासीवादी सरकार काबिज है।
बिहार में भी साम्प्रदयिक हिंसा व मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि फासीवाद अपने मूल चरित्र में न केवल साम्प्रदायिक होता है बल्कि यह जातिवादी भी होता है। इसलिए इन दोनों से एक साथ निपटने की जरूरत है।
जब-जब देश में दबे-कुचले लोग अपने हक-अधिकार के लिए सामने आते हैं तब-तब ब्राह्मणवादी शक्तियां धर्म को आगे कर देती हैं। आगे उन्होंने कहा कि फासीवाद से लड़ने के नाम पर जातिवादी- स्वार्थी- अवसरवादी गठबंधन के जरिये फासीवाद को निर्णायक शिकस्त देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि महागठबंधन आरएसएस-बीजेपी का विकल्प नहीं बन सकता है। सामाजिक न्याय केवल हिन्दू केंद्रित नहीं हो सकता है, इसे विभिन्न धर्मों के लोगों में भी लागू करना होगा। उन्होंने बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि उन्होंने जाति को गैंग बताते हुए उसे समाजविरोधी करार दिया था। उन्होंने सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हुए उसे विभिन्न जाति-वर्ण-लिंग-धर्म-सम्प्रदाय के आरपार विकसित करने की जरूरत को भी रेखांकित किया। उन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में सामाजिक न्याय पर जारी हमलों व जातिगत आधार पर हो रहे उत्पीड़न की घटनाओं की चर्चा करते हुए उच्च शिक्षा के केंद्रों में सामाजिक न्याय आंदोलन की जरूरत को जरूरी बताया।
भारतीय अति पिछड़ा महासंघ के अध्यक्ष राजेश चंद्रवंशी ने कहा कि सामाजिक न्याय आंदोलन का विस्तार गांव-गांव में करना होगा। आज भी अति पिछड़ों को पूरे देश में वंचित रखा गया है, पूरे देश में आरक्षण के कर्पूरी फार्मूले को आज तक लागू नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि सोशल जस्टिस के नाम पर खड़ी फर्जी राजनीतिक शक्तियों से भी सावधान रहने की जरूरत है।
सोशलिस्ट युवजन सभा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष गौतम कुमार ‘प्रीतम’ ने कहा कि सामाजिक न्याय आंदोलन ही देश को नया राजनीतिक विकल्प देगा। सामाजिक न्याय की सभी ईमानदार व लोकतांत्रिक शक्तियों को सूबे बिहार और राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होना होगा। उन्होंने समतामूलक देश-समाज बनाने हेतु सामाजिक न्याय आंदोलन के विस्तार की जरूरत को भी रेखांकित किया।
बहुजन मुक्ति मोर्चा के उमा शंकर साहनी ने कहा कि पढ़े-लिखे बहुजनों ने जरूरी फर्ज अदा नहीं किया इसलिए आज भी बहुजनों का बदस्तूर शोषण जारी है। बहुजनों को अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति सजग होना होगा। उन्होंने कहा कि भारत के बहुजन हिन्दू नहीं बल्कि यहां के मूल निवासी हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बहुजन समाज से आने वाला नेता मात्र नहीं बल्कि बहुजन आंदोलन का बहुजन नेतृत्वकर्ता बहुजनों का राजनीतिक नेतृत्व भी करेगा।
सेवा स्तंभ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. एल. भंडारी ने कहा कि शोषितों की आबादी 85 फीसदी होने के बाद भी 15 फीसदी परजीवी सवर्णों के हाथों शोषित हैं। दलितों-पिछड़ों के साथ छलावा हुआ है। आज भी ज्यादातर दलित-पिछड़े सामाजिक भेदभाव तथा गरीबी व बेकारी की मार झेल रहे हैं। इस शोषणकारी व्यवस्था को बदलने और बराबरी के मूल्यों के आधार पर नवनिर्मित करने की जरूरत है। इसके लिए सामाजिक न्याय के आंदोलन को धारदार तरीके से आगे बढ़ाना होगा।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विष्णुदेव मोची ने कहा कि संगठन और आंदोलन को निचले स्तर तक ले जाने व मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। आज बिहार और देश को सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर नए राजनैतिक विकल्प की तरफ बढ़ने की जरूरत है।
उक्त सम्मेलन को पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, ‘जनसंसद’ के नेता रामानंद पासवान, न्याय मंच के अर्जुन शर्मा, पीएसओ के नेता अंजनी, आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ मोर्चा के भोजपुर से आए प्रेमशंकर पासवान, शैलेश पासवान, सिवान से आए अमिष कुमार चंदन,शिवनन्दन कुमार, राजेश्वर पासवान, जितेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया।
सम्मेलन के अंत में धन्यवाद ज्ञापन वाल्मिकी प्रसाद ने किया।
सम्मेलन में दीप प्रिया, जमशेद आलम,डॉ. अक्षय कुमार, प्रमोद पासवान, अनिल कुमार, अरुण रजक, रविनाथ राम, प्रदीप पासवान, मिथिलेश, सोनम राव, संजीव कुमार, रवींद्र कुमार सिंह, मो. आकिब, आशीष, सूरज कुमार, गोपाल कुमार, पिंटु, बबलू दास, अभिषेक आनंद, आशीष अनुपम, मो. सद्दाम, राजेश मण्डल, मो. मुंतजिर, शाकिब आलम, निरंजन सिंह, हीरा कुमार, अमरजीत कुमार, टुनटुन पंडित, कुणाल कुमार सहित राज्य के विभिन्न जिलों के सैकड़ों प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में पश्चिम बंगाल के इंकलाबी छात्र यूनिटी के मानसी, सविता, सायन्ती, छंदक चटर्जी भी शामिल थे।
सम्मेलन का समापन 24 जनवरी, 2019 को जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर बिहार की राजधानी पटना में सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर राज्यस्तरीय विशाल ‘बहुजन महापंचायत’ किए जाने के ऐलान के साथ किया गया।