BY– रवि चौहान
रजनीकांत जेल में एक किताब “माय फादर बलिया'” my father balliah
पढ़ रहे हैं। जो दलित प्रोफेसर वाईबी सत्यनारायण की जिंदगी की कहानी है। इससे संकेत मिल जाता है कि फ़िल्म का मकसद क्या है?
जिसमें प्रोफेसर बताता है कि जब उसकी माँ की मौत हो जाती है तो उसके पिता और वो अधनंगे होते हैं और उसकी माँ का शव कंधे पर उठाकर कई किलोमीटर हरिजनवाड़ा में आकर अकेले संस्कार करते हैं।
उन्हें so called उच्च जातीय लोगों द्वारा संस्कार जाता है। तब वे दूर जाकर ये सब करते है। उनके संघर्स को इसमें दिखाया गया है।
किताब ओर रजनीकांत की कबाली मूवी का कुछ कनेक्शन है। मलेशिया में तमिल बागान मजदूरों के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार और उन्हें देशद्रोही की नज़रों से देखने की मानसिकता के खिलाफ कबलिस्वर्न खड़ा होता है।
एक डायलॉग में कबाली कहता है कि- “हमारे पूर्वज सदियों से गुलामी करते आए हैं, लेकिन मैं हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ हूं। आंखों में आंखें डाल कर बात करना, सूट-बूट पहनना, टांग के ऊपर टांग रख कर बैठना तुमको खटकता है, तो मैं ये सब जरूर करूंगा। मेरा आगे बढ़ना ही मसला है, तो मैं आगे बढूंगा।”
ये सब इशारा करता है कि कबाली पूर्वजों के साथ हुए अन्याय की बात करते हैं।
साथ ही साथ ये भी जाहिर करते हैं कि वो ये सब सहन नहीीं करेंगे। आने वाली पीढ़ी के लिये सब कुछ झोंक कर उन्हें स्वाभिमान से रहना सिखाएंगे।
कबलिस्वर्ण से कब कबाली बनते हुए परिवार तक दांव पर लगा कर कबाली डॉन के रूप में विख्यात होकर रजनीकांत लोगो के लिये मशीहा बन जाते हैं।
फ़िल्म का एक एक डायलॉग वर्चस्ववादी घमंडी लोगों को ललकारता है ओर दबे कुचले वर्गों में प्रतिशोध पैदा करता है।
अब पीए रंजीथ की काला मूवी ने तो तहलका मचा दिया था। कबाली से भी ज्यादा प्रतीकात्मक रूप से डॉ आंबेडकर ओर संघर्ष से जुड़े तथ्यों को दिखाया गया था।
आमतौर पर हिंदी बॉलीवुड की फिल्मों में हीरो को मन्दिर , घर, देवालयों से निकलता दिखाया जाता है। लेकिन काला में रजनीकांत बुद्ध विहार से निकलते हुए दिखते हैं।
बाबा साहब के जीवन से जुड़े उनके 1956 को हुए महापरिनिर्वाण को जीप के नम्बर के रूप में दिखाया गया है।
नाना पाटेकर एक राजनीतिक आदमी व सुपरस्टार रजनीकांत एक दूसरे के विरोध में खड़े दिखाया गया था।
रजनीकांत और नाना पाटेकर के बीच हो रहे संवाद में नाना पाटेकर कहते हैं काला कैसा नाम रखा है रे,,मुँह का स्वाद भी खराब हो गया।
रजनीकांत जवाब में कहते है कि “काला रंग मेहनत का रंग है। मजदूरो का रंग है। आओ कभी हमारी बस्तियों में कचरे से इंद्रधनुष बना पाओगे”
काला मूवी में रजनीकांत एक डायलाग बोलते है- Katrvai patravai जिसका मतलब है। संगठित बनो संघर्ष करो। जो बाबा साहब की फिलॉसफी है। बॉलीवुड के बस की बात नहीं है ऐसी फिल्में बनाना, उम्मीद भी मत रखिये।
और हाँ कबाली, काला नहीं देखी है तो जरूर देख लीजिये।
पीए रंजीत सबसे सफल फ़िल्म निर्माता हैं। उनकी फिल्में बेधडक करोडों का कारोबार करती हैं।
बाबा साहब को मानने वाले पिए रंजीत हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में बोलते हुए कहते हैं कि
“जब तक जातिवादी समाज रोहित वेमुलाओं की हत्या करता रहेगा, तब तक मैं अपनी फिल्मों के जरिए जाति व्यवस्था पर चोट करता रहूंगा.” – कबाली फिल्म के डायरेक्टर पीए. रंजीत,
एक अन्य जगह वे कहते है(कबाली के डायरेक्टर पीए रंजीत) – “बाबा साहेब से मैंने जो सीखा है, उसे मैं सिनेमा के पर्दे पर उतारता हूं. जाति का दंश बचपन से मेरे जीवन का हिस्सा है.”
कबाली और काला भारत में किसी भी भाषा की सबसे सफल फिल्म बनी थी।. दलित डायरेक्टर नागराज मंजुले की सैराट मराठी फिल्म इतिहास की सबसे सफल फिल्म बन चुकी है.
हिंदी फिल्मों में ऐसी कोई क्रांति हो रही है क्या?
अब जननायक बिरसा मुंडा को लेकर पीए रंजीत मूवी बनाने जा रहे हैं। इंतजार रहेगा।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं।